बाराबंकी में बंगाल की तर्ज पर होती है दुर्गा पूजा
यूथ एसोसिएशन की पूजा में दिखती है कौमी एकता की मिसाल
दिलीप कुमार श्रीवास्तव
बाराबंकी। शरद ऋतु के आगमन होते ही हिन्दुस्तान के हर हिस्से में माता दुर्गा की पूजा धूमधाम से शुरू हो जाती है, जिससे जनपद बाराबंकी भी अछूता नही रहता। पूजा तो लगभग सभी प्रदेशों में होती है किन्तु जिले की पूजा का अपना खास पूजा का महत्व होता है। जिले की नगर पालिका परिषद में लगातार 53 वर्षो से यूथ्स एसोसिएशन परिवार के बैनर तले होती आ रही बीते 2020 व 2021 में कोरोना संक्रमण के कारण पूजा नहीं हो सकी थी। नगर पालिका में होने वाली शारदीय नौ दुर्गा पूजा महोत्सव पूरी तरह बंगाली पूजा की तर्ज पर होती है, जिसमें प्रत्येक वर्ष माता के 108 रूपों में हर वर्ष नौ स्वरूपों की पूजा होती है।
कृतिवास ’रामायण के अनुसार राजा सुरथ माता दुर्गा की पूजा वसन्त ऋतु में करते थे। इसी कारण इसे वासन्ती पूजा का नाम दिया गया। भगवान राम ने रावण के चंगुल से माता सीता को मुक्त कराने के लिए लंका पर आक्रमण करने से पूर्व आदि शक्ति भगवती दुर्गा का आहवान किया था। यह पूजा निधार्रित समय से पूर्व की गई थी। इसी कारण आकाल बोधन (असामयिक जागरण) का नाम दिया गया। एक अन्य मान्यता के अनुसार, माता दुर्गा प्रत्येक वर्ष अपने बच्चों गणेश, लक्ष्मी, कातिकेय एवं सरस्वती के साथ कैलाश पर्वत से अपने मायके पष्ठी, सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी को रहने आती है। दशमी के दिन वे सपरिवार वापस कैलाश पर्वत चली जाती है। शास्त्रों में उल्लेख है कि माता दुर्गा को मायके लाने के लिए भोले भण्डारी शिव से अनुमति ली जाती है। इसी परम्परा को सजीव करते हुए भारत में सिर्फ यूथ्स एसोसिएशन परिवार द्वारा भगवान शंकर जी का रुद्राभिषेक पष्ठी के दिन किया जाता है। वह भी पार्थिव पूजा के रूप में पंचमी को पूजा वेदी पर माँ के नौ रूपों की प्रतिमाओं को स्थापित कर दिया जाता और पष्ठी को रूद्र पूजा के उपरान्त माँ को आमंत्रण दिया जाता है। जिले के नगर में होने वाली पूजा का इसलिए भी खास महत्व है क्योंकि यहां पूजा पूरी तरह बंगाली तर्ज पर की जाती है, जिसमें मूर्ति शिल्पी, पूजन वाद्य तथा पुरोहित बंगाल के दुर्गापुर गांव से आते हैं। करीब 30 वर्षो से मूर्तिकार दिलीप पाल, बादल पाल तथा चितरंजन दास तथा पुरोहित चन्द्रशेखर भट्टाचार्य अपने दल के साथ प्रत्येक वर्ष पूजा महोत्सव में आते हैं। इससे पूर्व उनके वंशज यहां आते थे। अलका श्रीश की देखरेख में पष्ठी, सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी को माता जी की अलग रसोई स्थापित की जाती है, जिसमें प्रतिदिन माता दुर्गा के लिए दो समय की चाय व अल्पाहार तथा तीन समय का भोग प्रसादम् बनता है। रसोई में खास बात यह होती कि प्रतिदिन अलग-अलग व्यजंन बनते है। दोपहर व रात्रि में माँ के भोग के उपरान्त पडाल में भण्डारा चलता है।
पूजा महोत्सव से करीब 40 वर्षो से जुड़े सतीश चन्द्र गुप्ता (गुड्डू) व रामधन मुखर्जी बताते हैं कि पूजा नगर पालिका में 1980 शुरू हुई थी। इससे पूर्व 1964-65 में सार्वजनीन दुर्गोत्सव समिति के तत्वाधान में रेलवे स्टेशन के पीछे स्थित आरपीएफ कालोनी पार्क में माँ दुर्गा की पूजा की शुरूआत डॉ एसके बनर्जी, डॉ वर्मन, विश्वनाथ गुप्ता, सतीश चन्द्र मुखर्जी, धारा बाबू, तथा पाल ने बंगाली समुदाय के साथ प्रारम्भ की थी। पार्क में पूजा करीब तीन-चार साल चली तथा वहां से पूजा का स्तानान्तरण रेलवे अस्पताल में हो गया, जहां सिर्फ एक वर्ष पूजा हुई। आपसी विवाद के चलते कुछ बंगाली परिवारो ने स्व. रामसेवक यादव पार्क में उदीयन समिति के तत्वाधान में शुरू हुई। नगर पालिका के सेवानिवृत्त लेखाकार काशी प्रसाद वर्मा बताते हैं कि 70-71 में पूजा के दौरान वर्षा होने के कारण समिति के लोगों द्वारा तत्कालीन जिलाधिकारी से मिलकर पूजा के लिए नगर पालिका में स्थान की मांग की गई, जिसे जिलाधिकारी ने स्वीकार करते हुए नगर पालिका में पूजा की अनुमति प्रदान कर दी थी। किन्तु दूसरे वर्ष पूजा नगर पालिका में नहीं हुई थी। दादा निहार रंजन आचार्य, टीके राय, रामधन मुखर्जी, मीनू बनर्जी, सेन दादा के साथ ही कई बंगाली परिवारों एवं अन्य समुदाय के लोगो ने बैठक करके यूथ्स एसोसिएशन परिवार का गठन करके 1980 से विधिवत पूजा अर्चना शुरू कर दी। पूजा में सभी की भागीदारी सुनिश्चित करने में पत्रकार टीके राय का अहम योगदान था। 2014 में टीके राय के निधन हो जाने के बाद भी यूथ्स एसोसिएशन परिवार के पदाधिकारियों व सदस्यों ने पूजा महोत्सव में कोई कमी नहीं आने दी। इसके कारण प्रदेश में परिणामतः तीन बार पूजा को प्रथम स्थान प्राप्त करने का गौरव प्राप्त हुआ। कई वर्षों से समापति के रूप में बृजलाल सावलानी अपनी पूरी टीम के साथ पूजा महोत्सव में कुछ नया करने का प्रयास करते है। साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल है। बाराबंकी की शारदीय नौ दुर्गा पूजा क्योकि माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना में सभी समुदाय की भागीदारी बढ़-चढ़ कर होती है।
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