बायोमेडिकल वेस्ट का ढंग से निस्तारण न होने से पर्यावरण व मानव को खतरा : डॉ. सुरेन्द्र प्रताप सिंह

कानपुर (हि.स.)। बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के अनुचित निवारण से पर्यावरण में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सही ढंग से निस्तारण न होने से संक्रमण की संभावना होती है जो मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह जानकारी स्कूल ऑफ हेल्थ साइंसेज में आयोजित पांच दिवसीय कार्यशाला में कानपुर के क्वालिटी एश्योरेंस के डिवीजनल कंसलटेंट डॉ. सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने दी।

उन्होंने आगे बताया कि कई बार इन अपशिष्टों को अनुपचारित स्थिति में फेंक दिया जाता है, जला दिया जाता या नदी नालों में प्रवाहित कर दिया जाता है जो कि अनुचित है। अतः इन जैव चिकित्सा अपशिष्टों का समुचित प्रबंधन आवश्यक है। जैव चिकित्सा अपशिष्ट का मानव व पशुओं के उपचार के उपरांत उत्पन्न शारीरिक अपशिष्ट, सिरिंज तथा स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में उपयोग की जाने वाली अन्य सामग्रियों के रूप में उपलब्ध हैं।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन का शक्ति से अनु पालन व अपशिष्टों का वैज्ञानिक तरीके से निपटान सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है। बायोमेडिकल वेस्ट को जमीन की गहराई में दबाने के लिए सुनिश्चित कर लिया जाये कि भूजल संदूषित नहीं होना चाहिए।

संस्थान के निदेशक डा. दिग्विजय शर्मा ने बताया कि छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक के मार्गदर्शन में स्कूल आफ हेल्थ साइंसेज में 05 दिवसीय कार्यशालाओं की श्रृंखला में बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट व इन्फेक्शन कंट्रोल विषय पर कार्यशाला का आयोजन हो रहा है जो समाज के हित में है। स्कूल ऑफ हेल्थ साइंसेज इस प्रकार की कार्यशालाओं के आयोजन से सभी छात्र-छात्राओं को बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के उचित निस्तारण को समझने और उपयोग में लाने का प्रशिक्षण मिलेगा जो वर्तमान एवं भविष्य में उनके लिए बेहद लाभकारी होगा।

उन्होंने बताया कि इस प्रकार के व्यक्तिगत प्रशिक्षण मेडिकल एजूकेशन में बहुत उपयोगी है एवं संस्थान के छात्र-छात्राएं इस प्रकार के प्रशिक्षण से बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के उचित निस्तारण में कुशल होंगे।

जैव चिकित्सा अपशिष्ट के लिए जागरूकता जरूरी

कार्यशाला की कोऑर्डिनेटर डॉ. वर्षा प्रसाद ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि जैव चिकित्सा अपशिष्ट के सही निपटान के बारे में लोगों के जागरूकता उत्पन्न करने के लिए अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपयुक्त कार्यक्रम आयोजित किये जाने चाहिए एवं स्टार्टअप व इस्माल स्केल इण्टर प्राइजेज को इस तरह के अपशिष्टों का पृथक्करण एवं नवाचार के लिए आगे आना चाहिए।

संस्थान के सह निदेशक डा. मुनीश रस्तोगी ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि जैव चिकित्सा अपशिष्ट के वैज्ञानिक तरीके से निपटान एवं संग्रहण भविष्य में एक चुनौती है। इस क्रम में अपशिष्टों का सही तरीके से पृथककरण निहायत ही जरूरी है। सुरक्षा प्रोटोकाल का पालन किये बिना इनका संग्रहण संक्रमण को बढ़ा सकता है। उन्होंने बायो मेडिकल वेस्ट के सही तरीके से पृथक्करण की महत्ता को बताया, जिससे कि बायो मेडिकल वेस्ट का उचित तरीके से निवारण किया जा सके।

इस अवसर पर डॉ. रमेश यादव, एसो. प्रोफेसर, जालौन मेडिकल कालेज, उरई एवं पूनम यादव, इन्फेक्शन कंट्रोल ऑफिसर ने भी छात्र-छात्राओं को व्यक्तिगत प्रशिक्षण दिया। इस कार्यशाला में स्कूल ऑफ हेल्थ साइंसेस के लगभग 200 मेडिकल लेबोरेटरी टेक्नोलॉजी के छात्र-छात्राओं ने व्यक्तिगत प्रशिक्षण प्राप्त किया।

राम बहादुर

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