बाबर से युद्ध में कनार गढ़ ध्वस्त होने के बाद बनाया गया था जगम्मनपुर का किला

औरैया (हि. स.)। राजाओं के समृद्धशाली इतिहास व शौर्य के प्रतीक जनपद जालौन के जगम्मनपुर का किला रखरखाव के कारण अब निरंतर क्षतिग्रस्त होता जा रहा है। लेकिन प्रधानमंत्री के द्वारा बुंदेलखंड की ऐतिहासिक धरोहरों व समस्त दुर्ग एवं किलों को संरक्षित किए जाने की घोषणा एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री की बात को अमलीजामा पहनाने हेतु कार्यवाही प्रारम्भ कर दी है।

ऐतिहासिक घटनाक्रम के अनुसार वर्ष 1528 में मुगल आक्रमणकारी बाबर द्वारा कनार राज्य के विशाल दुर्ग के ध्वस्त किए जाने के बाद कनारधनी महाराजा ईश्वरराज के पुत्र जगम्मनशाह ने लगभग 50 वर्ष उपरांत यमुना नदी से 3 किलोमीटर दक्षिण में वीरान स्थान पर जंगल को साफ करवा कर सन् 1580 के आसपास जगम्मनपुर नाम से नगर बसाया और अपने लिए नए किले का निर्माण करवाना प्रारंभ किया। कुछ समय उपरांत महाराजा जगम्मनशाह के देहावसान के बाद उनके उत्तराधिकारी महाराजा उदोतशाह ने किला के निर्माण कार्य को जारी रखा । उसी समय सन् 1603 के लगभग रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी पंचनद संगम तीर्थ स्थल पर पधारे।

महाराज उदोतशाह के आग्रह पर गोस्वामी जी जगम्मनपुर आए और निर्माणाधीन किला की देहरी रोपण किया जो आज भी किला के प्राचीन प्रमुख द्वार पर लगी है जो इस कथन को प्रमाणित करती है व गुसाईं जी ने राजा उदोतशाह को भगवान शालिग्राम जी की मूर्ति , दक्षिणावर्ती शंख एवं एक मुखी रुद्राक्ष प्रदान किया जो आज भी जगम्मनपुर किले के मंदिर में सुरक्षित है । प्राप्त अभिलेखों के अनुसार वर्ष 1840 ईश्वी तक जालौन में मराठा शासकों का आधिपत्य था । मराठा शासकों की ओर से जालौन में रईस राव गोविंदराव के द्वारा सभी राजाओं से कर वसूली की जाती थी किंतु सन 1840 में रईस राव गोविंद राव के निधन के बाद मराठों का आधिपत्य इस क्षेत्र से समाप्त हो गया और अंग्रेजों ने जालौन कमिश्नरी पर अपना अधिकार कर मिस्टर रावर्ड डूलन को जालौन का सुपरिटेंडेंट बनाया गया ।

15 अक्टूबर 1840 को सुपरिटेंडेंट मिस्टर रावर्ड डूलन ने जगम्मनपुर राज्य के तत्कालीन राजा महीपतशाह जूदेव को पत्र लिखकर आश्वस्त किया कि जगम्मनपुर राज्य के अधिकारों में दखलअंदाजी नहीं की जाएगी। सन 1853 में जब जालौन कमिश्नरी खत्म हुई उसी वर्ष जगम्मनपुर के राज्य के राजा महीपत शाह जूदेव का निधन हो गया इससे पूर्व इसी वर्ष सन् 1853 में जगम्मनपुर राज्य के उत्तराधिकारी के रूप में युवराज रूपशाह का जन्म हुआ था। उत्तराधिकारी नाबालिग होने के कारण जगम्मनपुर राज्य का प्रबंध सरकारी कोर्ट ऑफ वाइसराय के हाथों में चला गया, अट्ठारह सौ सत्तावन की गदर के समय जगम्मनपुर राज्य पर अंग्रेजी सरकार का प्रबंध था। उत्तराधिकारी राजा रूपशाह की उम्र उस वक्त 4 वर्ष थी । 14 जुलाई 1871 में राजा रूपशाह जूदेव को राज्य का अधिकार प्राप्त हुआ उस समय तक लगभग 270 वर्ष पूर्व निर्मित जगम्मनपुर का किला जीर्णशीर्ण होने लगा था। राजा रूपशाह जू देव ने बनारस से नक्शा मंगवा कर किले का जीर्णोद्धार व पुनर्निर्माण करवा कर उसे नया रूप प्रदान किया ।

जगम्मनपुर का किला लगभग 7 एकड़ में निर्मित है इसमें छोटे बड़े लगभग 250 कक्ष बने हैं इनमें राज दरबार हॉल, न्यायालय, भगवान लक्ष्मी नारायण जी का मंदिर, अभिलेखागार , रानी महल सहित छोटे बडे पांच चौक (आंगन) हैं। किला के मुख्य प्रवेश द्वार के अंदर मैदान में अष्टधातु की विशाल तोप व शिकार हुए अनेक वन्य व जल जंतुओं के अवशेष सुरक्षित हैं। विशेष पच्चीकारी एवं चित्रकारी युक्त वर्गाकार इस विशाल किला को राजमहल कहना न्यायोचित है क्योंकि महाराजा रूपशाह ने बनारस से नक्शा बनवा कर इस किला को महल का स्वरूप प्रदान किया था।

सन 1952 में जगम्मनपुर राज्य का भारत सरकार में विलय हो गया। इसके बाद राजाओं को होने वाली आय समाप्त हो गई। हालांकि जगम्मनपुर राज्य के राजा रहे वीरेंद्रशाह जूदेव आजादी से लेकर सन 1971 तक मृत्यु पर्यन्त विधायक रहे। तदोपरांत उनके जेष्ठ पुत्र राजेंद्रशाह एवं तृतीय पुत्र जितेंद्र शाह विधायक बने लेकिन विशाल किला के रखरखाव हेतु पर्याप्त आमदनी का स्रोत न होने से यह किला निरंतर जीर्ण-शीर्ण होता गया। तीन मंजिला किलानुमा महल में राजा के वंशज सुकृतशाह आज भी निवास करते हैं।

सुनील /सियाराम

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