बलरामपुर में आठ हजार बच्चे कुपोषण के शिकार

तहसील सभागार में समुदाय आधारित सैम बच्चों का प्रबंधन प्रशिक्षण आयोजित

संवाददाता

बलरामपुर। सीवियर एक्यूट मालन्यूटीशन ‘सैम’ कुपोषण की गंभीर चिकित्सीय अवस्था है। इसके चिकित्सीय उपचार की आवश्यकता होती है। इस स्थिति के कारण बच्चों में बाल्यावस्था की बीमारियां एवं उनसे होने वाली मृत्यु का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। प्रदेश में प्रत्येक पांच वर्ष से कम आयु के 100 बच्चों में से 05 बच्चे सैम से ग्रसित होते हैं। जिले में करीब आठ हजार बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।
तुलसीपुर तहसील सभागार में मंगलवार को यह बातें बाल विकास विभाग द्वारा आयोजित समुदाय आधारित सैम बच्चों के प्रबंधन प्रशिक्षण में नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर सैम चिल्ड्रेन नई दिल्ली से आये न्यूट्रीशियन कंसल्टेंट लेख चंद्र त्रिपाठी ने कही। उन्होने प्रशिक्षण को सम्बोधित करते हुए कहा कि सैम बच्चों की पहचान करने के लिए बच्चे की लम्बाई, ऊॅचाई के अनुसार वजन, एमयूएसी फीते द्वारा माप और दोनों पैरों की सूजन की ठीक से जांच करनी चाहिए। सैम व मैम बच्चों की पहचान करने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों को केन्द्र पर पांच वर्ष से कम सभी बच्चों की वजन जांच करते समय लाल व पीली श्रेणी की पहचान करनी चाहिए। सैम बच्चों की पहचान के बाद उनका सत्यापन एवं संदर्भन एएनएम/सीएचओ द्वारा वीएचएसएनडी के दिन, उपकेन्द्र या हेल्थ वेलनेस सेंटर पर किया जाएगा। जिसके बाद पुनः सैम बच्चों के सत्यापन के लिए जांच की जाएगी और सही पाये जाने पर उन्हे निकटम सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर संदर्भित किया जाएगा।
यूनिसेफ के डिविजनल कोआर्डिनेटर डा. प्रफुल्ल रंजन ने प्रशिक्षण में जानकारी देते हुए बताया कि स्वास्थ्य विभाग पोषण पुर्नवास केन्द्र पर चिकित्सीय जटिलता वाले सैम बच्चों का उपचार किया जा रहा है। बिना चिकित्सीय जटिलता वाले बच्चों का उपचार सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर हो रहा है। इनके उपचार में आरबीएसके टीम व चिकित्सा अधिकारियों को लगाया गया है। ये निर्धारित प्रोटोकाल के अनुसार इनका इलाज कर रहे हैं। उन्होने कहा कि यदि किसी कारण से सैम बच्चा एक सप्ताह में स्वस्थ नहीं हो पा रहा है तो उसे उपकेन्द्र व हेल्थ वैलनेस सेंटर से निर्धारित प्रोटोकॉल के अनुसार उपचार प्रदान किया जाएगा।
सीडीपीओ गैसड़ी गरिमा श्रीवास्तव ने मुख्य सेविकाओं को जानकारी देते हुए कहा कि जिन सैम बच्चों का उपचार हो चुका है उनके सहित सभी कुपोषित बच्चों का पोषण संबंधित प्रबंधन आंगनवाड़ी केन्द्रों पर किया जाएगा। जिसमें पौष्टिक आहार की विधि का प्रदर्शन, बाल पोषण एवं स्वास्थ्य का परामर्श और केन्द्र व गृह भ्रमण आधारित साप्ताहिक फालोअप भी किया जाएगा। इसके अलावा मासिक फालोअप एक बार किया जाएगा। उन्होने कहा कि इसके बाद भी यदि सैम बच्चों की स्थिति में कोई सुधार ना हुआ तो उसे चिकित्सा ईकाई पर रिफर किया जाएगा।
प्रशिक्षण के दौरान कुपोषण क्या है एवं उसकी अवस्थायें, सैम क्या है व उसका चिन्हांकन व प्रबंधन, तकनीकी सत्र में वजन, आयु गणना, वृद्धि निगरानी, लम्बाई/उँचाई मापना, सैम चार्ट से सैम चिन्हांकन का डेमोंस्ट्रेशन, ऊपरी आहार क्या है एवं खाद्य समूह, खाने की गुणवत्ता को बढ़ाने के तरीकों आदि के बारे में विस्तार से बताया गया। इस प्रोजेक्ट में तकनीकी सहायता यूनिसेफ और पीरामल फाउंडेशन सहयोगियों द्वारा दिया गया। प्रशिक्षण के दौरान कोविड-19 के गाइडलाइन को ध्यान में रखते हुए सीडीपीओ पचपेड़वा रेनू जायसवाल, पिरामल बीटीओ गैसड़ी कमलेश्वर मिश्रा, युनिसेफ के ऋषि मिश्रा व गैसड़ी, पचपेड़वा और तुलसीपुर ब्लाक की 19 मुख्य सेविकाओं ने प्रतिभाग किया।

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