पर्यावरण संरक्षण की चिंताओं के बीच बढ़ रहा है इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रति रुझान

निशांत

भारत समेत पूरी दुनिया में इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर आकर्षण बढ़ रहा है मगर विशेषज्ञों का मानना है कि इस सकारात्मक पहलू के बीच कई बुनियादी और व्यावहारिक समस्याएं भी मौजूद हैं जिनकी वजह से इन वाहनों को अपनाने के प्रति लोगों में हिचक भी बरकरार है। क्लाइमेट ट्रेंड्स ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार-विमर्श के लिये गुरुवार को एक वेबिनार आयोजित किया, जिसमें इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर लोगों के रवैये और उपयोग सम्बन्धी व्यवहार को समझने के मकसद से किये गये एक सर्वे की रिपोर्ट भी जारी की गयी। इस सर्वे के जरिये उन खामियों को पहचानने, उस मनोदशा और अन्य कारकों को समझने की कोशिश की गयी जो लोगों को इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने के लिये प्रेरित या हतोत्साहित करते हैं। क्लाइमेट ट्रेंड्स की मधुलिका वर्मा ने इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रति लोगों के रवैया और उपयोग संबंधी बर्ताव को समझने के लिए दो पहिया तथा चार पहिया वाहनों के उपयोगकर्ताओं पर किए गए सर्वे के निष्कर्षों को सामने रखा। सर्वे के मुताबिक इन दोनों ही श्रेणियों के लोगों ने इलेक्ट्रिक वाहनों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति अनुकूल और वायु प्रदूषण को कम करने वाला बताया। इसके अलावा लोगों में नई प्रौद्योगिकी को लेकर काफी उत्साह भी देखा गया। उनका मानना था कि आधुनिक और स्मार्ट टेक्नोलॉजी की वजह से लोग इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ रुख कर रहे हैं।

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हालांकि अध्ययन में कुछ रुकावटों का भी जिक्र किया गया है। सर्वे के दायरे में लिए गए उत्तर दाताओं ने इलेक्ट्रिक वाहनों को बार बार चार्ज करने की जरूरत को लेकर आशंकाएं जाहिर की। इसके अलावा उनकी रीसेल वैल्यू और पिक अप पावर को लेकर कुछ चिंताएं भी व्यक्त की। साथ ही लंबी दूरी तय करने के मामले में मूलभूत ढांचे की कमी और उसके गैर भरोसेमंद होने की बातें भी सामने आयीं। बहरहाल, दोनों ही वर्गों में इलेक्ट्रिक वाहन के मालिकों ने अपने चार्जिंग अनुभव पर गहरा संतोष व्यक्त किया जो इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग को लेकर उभरने वाले सामान्य भ्रमों को तोड़ने के लिए एक अच्छा प्रमाण है। सर्वे में फोर व्हीलर के वर्ग में यह यह पाया गया कि इलेक्ट्रिक कारों को स्वीकार करने वालों में से ज्यादातर लोग पुरुष हैं और अपेक्षाकृत अधिक उम्र के हैं। इसके अलावा नकारात्मक जवाब देने वाले लोगों में से 17 फीसद के पास अभी कोई कार नहीं है। इससे यह संकेत मिलता है कि पहली बार कार खरीदने जा रहे लोगों की नजर में इलेक्ट्रिक कार कम आकर्षक विकल्प है। वहीं इसके ठीक विपरीत टू व्हीलर सेगमेंट में इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने वालों में से ज्यादातर महिलाओं के होने की संभावना है। मगर फोर व्हीलर सेगमेंट के मुकाबले अधिक उम्र के लोगों में इलेक्ट्रिक दो पहिया वाहन की स्वीकार्यता अधिक नजर आती है। सर्वे के मुताबिक पर्यावरण संरक्षण के प्रति जिम्मेदारी और आधुनिक टेक्नोलॉजी को लेकर उत्साह इलेक्ट्रिक वाहनों के बारे में सोचने के दो प्रमुख कारण हैं। नीति आयोग के सीनियर स्पेशलिस्ट रणधीर सिंह ने वेबिनार में कहा कि कोई भी चीज़ आसान होने से पहले मुश्किल ही होती है। ठीक यही बात इलेक्ट्रिक वाहनों के मामले में हमारे देश पर लागू होती है। वर्ष 2021 में बैटरी की कीमत 135 डॉलर प्रति किलो वाट के स्तर को छूने लगी है। भारत के मामले में यह बहुत उपयुक्त नहीं है। हमें 50 गीगावॉट जैसे बड़े कार्यक्रम की जरूरत है। उत्पादन के इस स्तर पर इकोनॉमिस्ट सेल को हासिल किया जा सकता है और हम भी इसी मूल्य बिंदु पर आ सकते हैं। इस वक्त हमारे देश में बैटरी की कीमत 165 से 200 डॉलर प्रति किलोवाट है। उन्होंने कहा कि हाल के एक अध्ययन के मुताबिक 40 फीसद उपभोक्ताओं का कहना है कि वह जब अगला वाहन खरीदेंगे तो वह इलेक्ट्रिक ही होगा। इसका सबसे बड़ा कारण पर्यावरण संरक्षण की भावना है। इसके अलावा उपलब्ध वित्तीय प्रोत्साहन भी एक बड़ा कारण है। कॉस्ट ऑफ ओनरशिप भी एक बड़ा मसला है। वर्ष 2035 तक इंजन से चलने वाले इंजनों के निर्माण को पूरी तरह से रोकने की बात हो रही है। ऐसे में वाहन निर्माताओं के सामने इलेक्ट्रिक विकल्प को चुनने के अलावा और कोई चारा नहीं होगा। भारत में भी यही स्थिति पैदा हो सकती है।

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सिंह ने कहा कि भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल क्षेत्र के सामने पर्याप्त चार्जिंग व्यवस्था ना होना, महंगे वाहन तथा कुछ अन्य मसले हैं। सबसे पहले तो हमें चार्जिंग की व्यवस्था को बेहतर करना होगा। भारत में 81 फीसद वाहन बाजार दोपहिया वाहनों का है और 3 फीसद तिपहिया वाहनों का है। इन वाहनों का रोजाना औसत उपयोग 17 से 21 किलोमीटर के बीच है। फेम-2 के तहत सड़क पर जो भी इलेक्ट्रिक वाहन उतारे जाएंगे उनकी न्यूनतम रेंज 80 किलोमीटर और रफ्तार 45 किलोमीटर प्रति घंटा होनी चाहिए। अगर दो पहिया वाहनों को देखें तो 90 फीसद से ज्यादा वाहनों की न्यूनतम रेंज कवर हो जाती है, इसलिए ऐसे वाहनों को घर या दफ्तरों में ही चार्ज किया जा सकता है। इसके लिए बिल्डिंग बाइलॉज में बदलाव की जरूरत होगी और पार्किंग स्थल का 20 फीसद हिस्सा इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए आरक्षित करना होगा। फेम-2 के तहत 1000 करोड़ रुपए चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च किए जाने हैं। हमारा मुख्य ध्यान चार्जिंग स्टेशंस नहीं बल्कि चार्जिंग पॉइंट पर है। उन्होंने कहा कि दूसरा मुद्दा मानकीकरण का है मानकीकरण इसलिए जरूरी है ताकि उसका अनुकूलतम उपयोग किया जा सके। इस वक्त हम बसों तथा सार्वजनिक परिवहन के वाहनों की सार्वजनिक खरीद योजना पर ध्यान दे रहे हैं। साथ ही उद्योगों को इस बात की अनुमति दी गई है कि वे बल्क ऑर्डर का उत्पादन कर उनकी सप्लाई भी करें। पिछले महीने हमने कोविड-19 महामारी से लिए गए सबक के आधार पर फेम-2 में बदलाव किए हैं। सबसे पहले तो दोपहिया वाहनों के लिए सब्सिडी को 10,000 रुपए प्रति किलो वाट से बढ़ाकर 15000 प्रति किलोवाट किया गया। इस तरह 3 किलोवाट बैटरी वाले वाहन पर कुल सब्सिडी 45000 रुपए हो जाएगी। हमें लोगों को इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने के प्रति जागरूक करना होगा। पर्यावरण संरक्षण तो एक मुद्दा है लेकिन लोग स्वामित्व के कुल मूल्य रूपी वित्तीय प्रभाव के बारे में भी जानना चाहते हैं। हमें उन्हें इसके बारे में बताने की जरूरत है। ऐसे में नीतिगत उपाय करना जरूरी है।
इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्र की अग्रणी कंपनी ‘आथेर एनर्जी’ के चीफ बिजनेस ऑफिसर रवनीत फोकेला ने इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने को लेकर उपभोक्ताओं के मन में व्याप्त आशंकाओं का जिक्र करते हुए कहा कि वैसे तो उपभोक्ताओं में पर्यावरण के प्रति जागरूकता है और वे इलेक्ट्रिक वाहनों को पसंद भी कर रहे हैं मगर निश्चयात्मकता के नजरिए से देखें तो इन वाहनों को अपनाने के प्रति उनका रवैया कुछ दूसरा ही होता है। बहुत कम लोग ही ‘इको वारियर’ होते हैं और अगर हम एडॉप्शन के नजरिए से देखें तो जागरूकता का स्तर बहुत कम है। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रिक वाहनों की भरोसेमंद आपूर्ति की कमी एक मूलभूत मुद्दा है। अगर हम इलेक्ट्रिक वाहनों के बाजार को देखें और कोई भी कैटेगरी ले लें तो फर्क नजर आता है। अगर हम पेट्रोल या डीजल से चलने वाले किसी वाहन को खरीदने जाएं तो हमारे पास 40-50 विकल्प होते हैं लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों के मामले में अभी ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। रवनीत ने सरकार द्वारा फेम-टू के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों पर सब्सिडी को बढ़ाए जाने की सराहना की लेकिन साथ ही यह भी कहा कि आपूर्ति श्रंखला को और विस्तार दिया जाना भी बहुत महत्वपूर्ण पहलू है। इसके अलावा इलेक्ट्रिक वाहनों की रीसेल का मुद्दा भी बहुत बड़ा है। वर्तमान में कोई भी इलेक्ट्रिक व्हीकल रीसेल मार्केट नहीं है। हमें होड़ में बने रहने के लिए बेहतर ’बाई बैक पॉलिसी’ की जरूरत है।

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क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि इलेक्ट्रिक वाहनों की घरेलू स्तर पर ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी स्वीकार्यता लगातार बढ़ रही है। अब इलेक्ट्रिक वाहनों का इको सिस्टम सुर्खियों में है और सरकारें भी इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर जोरदार नीतियों के साथ सामने आ रही हैं। पिछले कुछ समय में इलेक्ट्रिक वाहनों को बाजार में उतारे जाने और चार्जिंग नेटवर्क को विस्तार दिए जाने के काम में उल्लेखनीय रूप से तेजी आई है। हालांकि इन सकारात्मक पहलुओं के बावजूद भारत में वाहनों के कुल विक्रय में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी एक प्रतिशत से भी कम है। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने की धीमी रफ्तार और उपभोक्ताओं में इन वाहनों की स्वीकार्यता की कमी की समस्याएं बरकरार हैं। इस रूपांतरण के प्रति उपभोक्ताओं का विश्वास बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इसके अलावा इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा देने के लिए इन वाहनों की उपलब्धता का दायरा भी बहुत बढ़ाने की जरूरत होगी। एनआरडीसी के लीड कंसलटेंट नीतीश अरोरा ने कहा कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग का इन्फ्राक्चर बेहतर हो रहा है। मगर जब हम इलेक्ट्रिक वाहनों के वाणिज्यिक इस्तेमाल के परिप्रेक्ष्य में बैटरी स्वैपिंग की बात करते हैं तो मानकीकरण एक बहुत बड़ी समस्या है। क्योंकि जब सरकार जब बैटरी पैक्स के मानकीकरण की बात करती है तो कुछ शर्तें लगा देती है। उन्होंने कहा कि अगर हम फोर व्हीलर सेगमेंट की बात करें तो ऐसा भ्रम है कि इसमें चार्जिंग की मूलभूत सुविधा की स्थापना करने का काम धन कमाने के लिहाज से बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं है, क्योंकि इसमें बेतहाशा निवेश की जरूरत है और चार्ज करने वाले वाहनों की तादाद बहुत कम है। ऐसे में इस क्षेत्र को लेकर दूरदर्शिता का पहलू बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। सरकार को इस दिशा में दूरगामी नीतियां बनानी चाहिए।

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सीईईडब्ल्यू के प्रोग्राम एसोसिएट अभिनव सोमन ने इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर लोगों की राय का जिक्र करते हुए देश के छह महानगरों समेत 60 शहरों में किए गए सर्वे को सामने रखा। उन्होंने कहा कि सर्वे के दायरे में लिए गए 90 फीसद लोगों ने बताया कि वे इलेक्ट्रिक वाहनों के बारे में अच्छी तरह जानते हैं। इसके अलावा 70 फीसद लोगों ने कहा कि अब वे जब भी अगला वाहन खरीदेंगे तो वह इलेक्ट्रिक ही होगा। वहीं, 95 फीसद लोगों ने इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों की नीतियों को सराहा। हालांकि सर्वे में यह भी बात सामने आई कि इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी चार्ज करने का मूलभूत ढांचा पर्याप्त नहीं है। इसके अलावा चार्जिंग में लगने वाला समय भी बहुत ज्यादा है। इसके अलावा बाजार में इलेक्ट्रिक वाहनों के विकल्प भी बहुत कम हैं। साथ ही डीजल और पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के मुकाबले इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमत भी ज्यादा है। उन्होंने बताया कि ज्यादातर लोगों की नजर में कार खरीदते वक्त उसकी कीमत और माइलेज को सबसे ज्यादा अहमियत होती है। हमने वैल्यू एडिशन चेंज को लेकर के कुछ ऐस्टीमेशन किए हैं। कुछ नकारात्मक पहलू भी है लेकिन अगर ओवरऑल पिक्चर को देखें तो यह सकारात्मक ही है। जहां तक रीसेल वैल्यू की बात है तो यह निश्चित रूप से एक मुद्दा है। अखिलेश मागल ने कहा कि गुजरात सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर नीति जारी किए जाने के बाद न सिर्फ इन वाहनों के प्रति दिलचस्पी बढ़ी है बल्कि उनकी मांग भी बढ़ी है। यह बहुत महत्वपूर्ण है। डिमांड इंसेंटिव भी एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है। अब मसला इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रति जागरूकता का नहीं है बल्कि अवसर का है। लोग इंतजार कर रहे हैं कि कब सही मौका मिले और वह इलेक्ट्रिक वाहन को अपना लें। उन्होंने उपभोक्ताओं की मनः स्थिति का जिक्र करते हुए कहा कि अक्सर दो चीजों को ध्यान में रखकर वाहन खरीदे जाते हैं। पहला यह कि यह मेरे भाई के पास भी है और दूसरा उसका अनोखापन। इलेक्ट्रिक वाहनों के मामले में इन दोनों पहलुओं का खास ख्याल रखने की जरूरत है। मुझे लगता है कि आने वाले दो साल में तस्वीर बहुत बदल जाएगी।

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