पक्षियों में प्रबल हो रही है प्रतिस्पर्धा एवं हठ की भावना
गोरखपुर (हि.स.)। प्रख्यात पर्यावरणविद् ग्रीन आस्कर अवार्ड विजेता माइक हरिगोविंद पाण्डेय कहते हैं कि प्रवासी पक्षी शहरों से दूर होने लगे हैं। इधर, स्थानीय पक्षियों मसलन गौरैया, कबूतर समेत अन्य पक्षियों के स्वभाव में काफी बदलाव दिखन लगा है। रिसर्च में यह बात सामने आई है कि शहरी पक्षियों में प्रतिस्पर्धा एवं हठ की भावना प्रबल हो रही है। माइक हरिगोविंद पाण्डेय कहते हैं कि जो पक्षी पहले से शहर में रह रहे होते हैं, उनके व्यवहार में बहुत सख्ती देखने को मिलने लगी है। इनमें प्रतिस्पर्धा की भावनाएं आ जाने लगी हैं। हालात यह है कि अब वे प्रवासी पक्षियों को ठहरने ही नहीं देते।
पक्षियों में प्रजनन की समयावधि बढ़ रही
उन्होंने बताया कि शहरों में कृत्रिम प्रकाश के कारण पक्षियों में प्रजनन की समयावधि भी बढ़ रही है। ऐसा पक्षियों में लुटीनाइजिंग हार्मोन की मात्रा बढ़ने से हो रहा। यह हार्मोन पक्षियों की प्रजनन क्षमता को बढ़ा देता है। इधर, बढ़ते ध्वनि प्रदूषण या कहें शोर से शहरी पक्षियों की आवाज भी मधुर के बजाए कर्कश हो रही है।
नर एवं मादा चूजों को पिलाते हैं मिल्क
वाइल्ड लाइफ विशेष डिप्टी डायरेक्टर पशुपालन उत्तर प्रदेश डॉ. आरके सिंह कहते हैं कि पक्षियों के अण्डों को छूना नहीं चाहिए, अन्यथा पक्षी इन्हें पहचाने से इंकार देते हैं। स्वत: अण्डों को तोड़ देते हैं। उन्होंने बताया कि कबूतर साल में 08 बार अण्डे देते हैं। एक समय में दो अण्डे देते हैं। एक से दूसरे अण्डे के बीच 24 घंटे से ज्यादा का अंतराल भी हो सकता है। अण्डों को नर एवं मादा दोनों मिल कर सेते हैं। 18 से 19 दिन के बाद चूजे निकल आते हैं। चूजों का वजन अंडे से निकलने के दूसरे ही दिन दुगुना हो जाता है। उसकी आंखें 4 दिन बाद खुलती है। कबूतर अपने बच्चों को दो महीने तक घोंसले में ही रखता है। वहीं खाना-पानी देता है। स्तनपायी में केवल मादा ही अपने शिशुओं को स्तनपान करा सकती है लेकिन कबूतर में नर-मादा दोनों अपने बच्चे को दूध पिलाते हैं। कबूतरों की गर्दन में थैली जैसी बनावट होती है, जिससे तरल पदार्थ क्रॉप मिल्क निकलता है। काफी ज़्यादा प्रोटीन और वसा होता है। इसी थैली से कबूतर दूध पिलाता है।
मेरी बालकनी में कबूतर ने दिए अण्डे…बदल रहा शहरी पक्षियों का स्वभाव
बढ़ते शहरीकरण ने जैव विविधिता को सर्वाधिक प्रभावित है। एक ओर पक्षी शहरों से दूर जा रहे दूसरी ओर जो पक्षी शहरों में हैं, वे मनुष्यों के साथ सह-अस्तितव और सामंजस्य बढ़ा रहे हैं। इतना कि पक्षियों के स्वभाव तब्दील होने लगे हैं। यह पक्षी इस कदर दबंग या यूं कहें कि ढीठ हो चुके हैं कि अब बालकनी में रखे सूखे गमले को प्रजनन के लिए चुनने में इन्हें गुरेज नहीं है। वन्यजीव के क्षेत्र में कार्य करने वाली हेरिटेज फाउंडेशन की संरक्षिका साहित्यकार डॉ. अनिता अग्रवाल की 11वीं मंजिल की पूरब की ओर की बालकनी में पिछले दिनों कबूतर ने दो दिन में दो अण्डे दिए।
डॉ. अनिता रामगढ़झील के निकट जेमिनी गार्डेनिया सोसाइटी में निवास करती हैं। बकौल डॉ. अनिता घर में काम करने वाली महिला ने बताया कि गमले में कबूतर ने एक अण्डे दिए हैं। मैंने सभी को उधर जाने से मना किया, अगले दिन देखा कि वह अण्डा बड़ा हो गया, उसके साथ एक और छोटा अण्डा पड़ा है। कुछ लोगों ने कहा कि कबूतर का घर में रहना अशुभ है। लेकिन मेरे मन में विचार आया कि कबूतर और उसका अण्डा भी प्रकृति का हिस्सा है, एक जीव जो अभी अण्डे से बाहर भी नहीं आया, कैसे अशुभ हो सकता है? फिलहाल उनकी चिंता इस बात की है कबूतर उस स्थान को सुरक्षित स्थान मान अपना आवास न मान ले, क्योंकि ऐसा होने से उनकी शौच की प्रवृत्ति से दिक्कतें हो सकती हैं।
डॉ. आमोदकांत /सियाराम