पंचमुखी भगवान शिव के दर्शन कर प्राचीन कुंड में स्नान से मिलती है ‘चर्मरोग’ से मुक्ति

-चित्रकूट की ऊंची पहाड़ी पर स्थित है मडफा का ऐतिहासिक मंदिर

-प्रतिवर्ष लाखों शिव भक्त मड़फा पहुंच करते हैं भगवान नीलकण्ड की आराधना

चित्रकूट(हि.स.)। भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट अपनी धार्मिक, आध्यात्मिक और पौराणिक महत्ता के लिए समूचे विश्व में विख्यात है। धर्म नगरी के भरतकूप क्षेत्र में घने जंगलों के बीच करीब ढाई सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर मड़फा किले के रूप में विख्यात आदि ऋषि मांडव्य का आश्रम है।

इस प्राचीन मड़फा आश्रम में नृत्यमुद्रा में विराजमान पंचमुखी भगवान शिव की महिमा का बखान वेदों और पुराणों में भी मिलता है। इस दिव्य धाम की ऐसी महिमा है कि यहां स्थित कुंड के जल में आस्था की डुबकी लगाकर भगवान शिव का पूजन करने से ‘कुष्ठ’ रोग से निजात मिलने के साथ-साथ पुनर्जन्म से मुक्ति मिल जाती है। पंचमुखी शिव के दर्शन मात्र से ही सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है।

मार्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट विश्व के अनादि, अचल और ऐतिहासिक पावन तीर्थों में से एक है। इस प्राचीन धर्म स्थली में स्वयं सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा समेत अगस्त, अत्रि, बाल्मीकि आदि प्रख्यात ऋषि-मुनियों ने तपस्या की है। इसी वजह से ब्रह्माण्ड के सबसे श्रेष्ठ स्थल चित्रकूट की तुलना स्वर्गलोक से की जा सकती है। लगभग 84 कोस में फैले चित्रकूट में विविध प्रकार के शिखर (कूट) स्थित है। इस प्राचीन आश्रम में भगवान शंकर अपने पंचमुखी रूप में सशरीर विद्यमान हैं।

इस दिव्य स्नान को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां पर ऋषि मांडव्य ने तपस्या की थी। इसी तपोस्थली पर महाराज दुष्यंत की पत्नी शकुंतला ने पुत्र भरत को जन्म दिया था। इसी तालाब के पास चंदेलकालीन वैभवशाली नगर के ध्वंसावशेष भी देखे जा सकते हैं। जैन धर्म के प्रवर्तक आदिनाथ के भी यहां पर आने की बात कही जाती है। महाशिवरात्रि व प्रत्येक सोमवार को यहां सदियों से मेला लगता चला आ रहा है। इस धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्राचीन धरोहर को केंद्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है।

चित्रकूट के सुप्रसिद्ध संत भरत मंदिर के महंत दिव्य जीवन दास महाराज,रामायणी कुटी के महंत राम हृदयदास महाराज एवं गायत्री शक्ति पीठ के व्यवस्थापक डॉ रामनारायण त्रिपाठी मड़फा किले की महिमा बताते हैं कि देवराज इंद्र ने वेदवती नामकी अपूर्व सुंदरी अप्सरा को कोढ़ (कुष्ठ) होने का शाप दिया था। शापग्रस्त अप्सरा के अनुनय विनय करने पर इंद्र ने माण्डव ऋषि के आश्रम में स्थित न्यग्रोध कुंड में स्नान करके वहां विराजमान पंचमुखी भगवान शिव की उपासना से शापमुक्त होने का मार्ग बताया था। आज भी देश भर से लोग कुष्ठ निवारण के लिए यहां आते हैं। इसके अलावा यहां स्थित पंचमुखी शिव के दर्शन और उपासना करने से पुनर्जन्म से मुक्ति मिलने की मान्यता है।

मंदिर के विकास के लिए चिंतित समाजसेवी दिनेश कुमार सिंह ने शासन से मड़फा धाम में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए रोपवे बनवाने की मांग की है। इतिहासकार रमेश चौरसिया का कहना है कि मड़फा दुर्ग एक चन्देल कालीन किला है।

यह दुर्ग चित्रकूट से 30 किलोमीटर की दूरी पर है। भरतकूप मार्ग पर बरिया मानपुर के समीप दुर्ग एक पहाड़ी पर है। चन्देल शासन काल में इस दुर्ग का महत्वपूर्ण स्थान था। दुर्ग के भग्नावशेष यहां आज भी उपलब्ध होते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से इस दुर्ग का विशेष महत्व था। यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य बड़ा ही मनोरम है। इस दुर्ग में चढ़ने के लिए तीन रास्ते हैं। पहला मार्ग उत्तर पूर्व से मानपुर गाँव से है। तथा दूसरा मार्ग दक्षिण पूर्व से सवारियाँ गाँव से है तथा तीसरा मार्ग कुरहन गाँव से है।

यहाँ दर्शन को आये श्रद्धालु ओम प्रकाश केशरवानी,महेंद्र जायसवाल और ऋषि आर्य का कहना है कि मड़फा की ऊँची पहाड़ी पर विराजमान पंचमुखी भगवान शिव के दर्शन मात्र से व्यक्ति के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु देश भर से इस पौराणिक तीर्थ आकर भगवान शिव की आराधना करते हैं। इसके मंदिर के पास स्थित प्राचीन कुंड में स्नान कर चर्म रोगों से मुक्ति पाते हैं।

जिला पर्यटन अधिकारी अनुपम श्रीवास्तव का कहना है कि केंद्र और प्रदेश की सरकार चित्रकूट समेत पूरे बुंदेलखंड के धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व से जुड़े स्थलों को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने को संकल्पित है। कहा कि पर्यटन विभाग के माध्यम से मड़फा मंदिर को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने का काम किया जा रहा है।

रतन

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