नेहरु के निर्माण में कमला का उत्सर्ग

स्व. कमला नेहरू की 125वीं जन्मगांठ (1 अगस्त 2024) पर विशेष

के. विक्रम राव

जब मोतीलाल नेहरू ने अपने छब्बीस वर्षीय पुत्र जवाहरलाल नेहरू की शादी सोलह बरस की कमला कौल (7 फरवरी 1916) से की थी, तब उसकी तह में एक दैवी कारण था। भाई वंशीधर नेहरू, जो ज्योतिषी थे, की राय में पुरानी दिल्ली के सीताराम बाजार में जन्मी इस कश्मीरी कन्या के वंशजों को राजयोग बदा था, (पृष्ठ-66, ‘‘नेहरू डाइनेस्टी’’, वाणी प्रकाशन, लेखक के. एन.राव : कमला नेहरू की कुण्डली)। उनके पति, पुत्री और नाती भारत के प्रधानमंत्री बने। अब उनके नवासे की दुल्हन रह गई। उनका पुत्र भी कतार में दीखता है। लेकिन नेहरू परिवार और भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन की त्रासदी रही कि नियति पुरुष की इस पत्नी को उचित महत्ता नहीं मिल पायी। सौ साल पूर्व, 1 अगस्त 1899 को जन्मी कमला कौल एक आध्यात्मिक हस्ती थीं, जो सिर्फ सैंतीस वसंत ही देख पाईं। आधे से अधिक ये वसंत भी उनके जीवन में शिशिर ऋतु जैसे ही थे। उनका स्वास्थ्य पतझड़ जैसा था, क्योंकि टी.बी. (तपेदिक) से उन्हें कभी निजात नहीं मिली। हालांकि उनकी बेटी इंदिरा ने अपने तपेदिक पर काबू पा लिया था। कमला कौल की कुण्डली में राजयोग वाले ग्रहों का योग देखते समय मोतीलाल नेहरू ने गौर नहीं किया था कि शुक्र लग्न और अष्टम स्थान में राहु की दशा, फिर बृहस्पति छठे स्थान में रहा, तो स्वास्थ्य कभी नहीं सुधर सकता है, भले ही हकीम लुकमान और वैद्य धन्वंतरि कोशिश कर डालें। कमला की अल्पायु के आसार के बावजूद उसके राजयोग वाले सितारों के प्रभाव से ही नेहरू परिवार ज्यादा आकृष्ट रहा। वर्ना अपनी पत्नी स्वरूप रानी, जो ताउम्र बीमार रहीं, को देखकर मोतीलाल नेहरू उनकी कुण्डली का पूरा आकलन करने के बाद कमला को अपनी बहू बनाने में अवश्य हिचकते। मगर जब स्वरूपरानी नेहरू ने दिल्ली की एक कौटुम्बिक विवाहोत्सव पर इठलाती हिरनी जैसी एक स्वस्थ सलोनी कन्या को देखा तो उन्होंने प्रथम दृष्टि में ही तय कर लिया था कि इंग्लैंड में पढ़ रहे उनके बेटे के लिए यही माफिक पत्नी रहेगी। यह कमसिन कन्या कोई अन्य नहीं, बारह-वर्षीया कमला ही थीं। उस वक्त जवाहरलाल नेहरू बाइस वर्ष के थे।
कैसी विद्रूपता है कि नेहरू परिवार के सभी लोगों, विजयलक्ष्मी पंडित से सोनिया गांधी तक, पर कई किताबें छपीं है, लेकिन इस वंश की गौरव कमला नेहरू पर शुरू में केवल एक पतली सी पुस्तक छपी थी। वह भी सुनी सुनाई बातों पर। भारत के नियति की इस नियामिका का उसके भाग्य के बूते पर फलने वालों ने बस हल्का, सतही उल्लेख ही किया। उपेक्षा का मंजर तो ऐसा रहा कि कमला के पिता का नाम ही इन आत्मजनों को याद न रहा। नेहरू वंश के इतिहास के लेखक बी.आर. नन्दा के अनुसार, कमला के दादा पंडित किशनलाल अटल के पांचवें पुत्र जवाहरमल कौल की प्रथम संतान थीं वह। मगर कमला के पिता का नाम अर्जुनलाल कौल लिखा कृष्णा हठीसिंह ने, जो जवाहरलाल नेहरू की सगी छोटी बहन थी। अपने ससुर के परिवार वालों के बारे में जवाहरलाल नेहरू ने कहीं भी उल्लेख करने की आवयकता तक नहीं महसूस की। बस इतना पता चलता है कि जवाहरमल कौल चांदनी चौक में आटे की चक्की के मालिक थे। तब लाल किले के पास वाले थाने में मोतीलाल नेहरू के पिता गंगाधर नेहरू मुगल निजाम में चौकीदार रह चुके थे।
कमला से जवाहरलाल नेहरू का पाणिग्रहण दिल्ली में एक वाकया बनी थी। प्रयाग से एक विशेष रेल में तीन सौ बराती 1916 की बसन्त पंचमी पर दिल्ली आये। सप्ताह भर समारोह चला। उन्हीं दिनों कुछ ही दूर भारत की राजधानी के रूप में नयी दिल्ली का निर्माण कार्य चल रहा था। दुल्हेराजा (जवाहरलाल) का होने वाला आवास (तीन मूर्ति भवन) आधा बन चुका था। शादी के तुरंत बाद कमला के ग्रहों ने जलवा दिखाया। तीन माह बाद पति पत्नी मधुचन्द्र के लिये श्रीनगर गये थे। वहीं कारगिल के निकट जार्जीला दर्रें में बर्फीली चट्टान खिसकने से जवाहरलाल फिसले और बह गये। शोधकर्ता स्टेनली वोलपोर्ट ने अपनी पुस्तक ‘नेहरू ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी’ (आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1996) में उल्लेख किया कि नवविवाहित जवाहर लाल द्वारा यह आत्महत्या का प्रयास भी माना जाता है। कमला का भाग्य था कि पति बच गया, बर्फीले बहाव से उबर आया। पति-पत्नी के शुरुआती रिश्ते में नव विवाहितों की सहज ऊष्मा कभी नहीं रही। खुद जवाहर लाल ने कमला से शादी पर नाखुशी व्यक्त करते हुए अपने पिता को लंदन से (22 दिसम्बर 1911) पत्र में लिखा था कि ‘मैं उस लड़की से विवाह करना नहीं चाहूँगा जिसे मैं जानता तक नहीं हूँ।‘ उन्होंने पिता से सवाल भी किया था ‘क्या आपकी राय में उससे मैं शादी करूँ जिससे मैं प्यार भी न कर पांऊ?’ बाद में जवाहर लाल नेहरू की सगी भांजी नयनतारा सहगल ने अपनी किताब ‘इंदिरा गाँधी सी इमर्जेंस एण्ड स्टाइल’, (विकास प्रकाशक, दिल्ली, पृष्ठ 27) में लिखा कि उनके माता-पिता की बेमेल शादी की छाया इंदिरा गांधी में प्रतिबिम्बित होती रही। कमला कौल की चाची और मोतीलाल नेहरू द्वारा तय किया गया जवाहरलाल-कमला का विवाह एक भयावह भूल थी। दो एकदम विपरीत व्यक्तियों का असंगत योग था। यह तथ्य पुख्ता भी हो जाता है, जब अपनी जेल डायरी में नेहरू केवल इक्का-दुक्का उल्लेख ही कमला का करते है। यूं तो 1930 से 1935 तक एक हजार दिन कारागार में बिताने वाले नेहरू ने मौसम और पक्षियों के वर्णन में कहीं अधिक लिखा। हालांकि अपनी आत्मकथा उन्होंने समर्पित की कमला को, जो तब तक नहीं रही। दिसम्बर 1930 में जवाहरलाल नेहरू जेल में थे। उन्होंने कमला को भी जेल जाने का आदेश दिया। पर वे नहीं गयी। अस्वस्थ ससुर शैय्या पर थे। उनकी सुश्रुषा करना कमला ने धर्म समझा। हालांकि पति काफी कुपित रहे। जब कमला महात्मा गाँधी के साथ साबरमती आश्रम में (1921) थी तो कस्तूरबा को अपना आदर्श बनाया। वैभवपूर्ण, खर्चीली जीवन पद्धति के बजाय रेल के तीसरे दर्जे में यात्रा करना, चटाई पर सोना उनकी आदत बन गयी थी। प्रार्थना सभा में बापू को सुनना उनका नित्यकर्म था। कस्तूरबा की भांति कमला का प्रण था कि वह पति की परछाई नहीं, बल्कि साथी बनेगी। अग्नि के समक्ष खायी कसम का निर्वाह पूरा करेगीं। एक बार अपने पति के जन्म दिवस (14 नवम्बर) को जब जवाहर लाल जेल में कैद थे, तो पत्नी ने उसे संकल्प दिवस के रूप में मनाया था।
अपने बीस वर्ष के दाम्पत्य जीवन में प्रथम पन्द्रह वर्ष तो कमला एकाकी रहती थी। पति से अपने हक का प्यार नहीं मिला था। इस बात को स्वयं नेहरू ने स्वीकारा कि कमला को उन्होंने उसकी मृत्यु के बाद जाना। तब तक बड़ी देर हो गयी थी। मोतीलाल नेहरू के निधन के बाद कमला और जवाहरलाल निकट आये थे। कमला हमेशा ससुर की लाड़ली रही। जवाहरलाल नेहरू ने लेखक जान गुंथर को कमला के निधन के दो वर्षो बाद (1938) लिखा था कि ‘कमला ने मेरे जीवन पर प्रभाव छोड़ा है। हालांकि वह परोक्ष रूप से ज्यादा था।’ यह बात सच थी। जब लखनऊ के अस्पताल में ठीक चिकित्सा न हो पायी, तो कमला नेहरू को मार्च 1936 में पश्चिम यूरोप ले जाया गया। वहां नेहरू युगल अठारह माह साथ रहा। अपनी छात्रावस्था के यूरोप और प्रौढ़ उम्र के इस महाद्वीप को नेहरू ने फिर से परखा। तब एडोल्फ हिटलर सत्ता की ओर रेंगता हुआ बढ़ रहा था। मानवता को दहशत हो रही थी। रोग शैय्या से कमला ने सुझाया था कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को भी अन्तर्राष्ट्रीय विषयों पर रूचि और महारत हासिल करनी चाहिए। शीध्र ही आनन्द भवन में कांग्रेस अध्यक्ष ने पार्टी का विदेशी विषयों वाला प्रकोष्ठ बनाया। इसके सचिव थे बर्लिन में शिक्षित युवा डा. राममनोहर लोहिया। फिर पति के साथ कमला सोवियत संघ गयीं। नवम्बर 1937 में समाजवादी क्रांति का दूसरा दशक मनाया जा रहा था। उसी समय पति जवाहरलाल नेहरू को योजना आयोग, समाजवादी समाज आदि की आज़ाद भारत में आवश्यकता का आभास हुआ था। कमला ने पति के प्रगतिवादी दर्शन का हमेशा समर्थन किया। लाहौर अधिवेशन के पहले वृद्ध पिता भारत को ब्रिटिश साम्राज्य में ही एक औपनिवेशक राज्य रहने देना चाहते थे। पुत्र तब पूर्ण स्वराज के पक्ष में था। दोनों में मतभेद तीव्र थे। नौबत यहां तक आई कि पिता ने पुत्र को घर छोड़ने का आदेश दिया। कमला पति के साथ चट्टान जैसी जुड़ी रही। मोतीलाल बेटा-बहू को मनाते रहे।
एक घटना अप्रैल 1936 की है। तब यूरोप में कमला अत्यधिक रुग्ण थी। तभी जवाहरलाल नेहरू फिर कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। उन्हें कलकत्ता सम्मेलन में पद संभालना था। कमला की जिद थी कि नेहरू भारत चले जायें। पुत्री इन्दिरा देखभाल कर लेगी। पर नेहरू को सप्ताह भर ही ठहरना पड़ा क्योंकि 28 फरवरी 1936 को कमला का निधन हो गया। पति ने दाहकर्म किया। कमला ने कभी अपने मित्र डा. सैय्यद महमूद को लिखा था कि उनकी बीमारी से अब मृत्यु ही छुटकारा दिला सकती है। मगर मौत आने से शर्माती रही। वह आई भी और सैतीस-वर्षीया कमला को लेती गयी। इसका एहसास कमला को एक वर्ष पूर्व हो गया था जब एक बार वह पति से गले लगकर रोई थी। मानो अन्तिम बार हो। अपनी मौत मे कमला नेहरू प्रत्येक पति को अहसास करा गयी कि पत्नी को साथी मानिये, छाया नहीं। सदैव के लिए बिछुडने के पहले उसकी महत्ता जानिये। जवाहरलाल नेहरू की भांति नहीं, कि जब तक कमला को पहचाना, तब तक बड़ी देर हो चुकी थी। कमला जा चुकी थीं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं आइएफडब्लूजे के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)

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