धान की फसल से अधिक पैदावार लेने के लिए रोगों से करें बचाव : डॉ एस. के. विश्वास
कानपुर(हि.स.)। धान की फसल से अधिक पैदावार के लिए पादप रोगों से बचाव करना आवश्यक है। धान की खेती पर समय से ध्यान न देने पर किसानों को आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है। यह जानकारी मंगलवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कानपुर के पादप रोग विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर एस. के. विश्वास ने दी।
उन्होंने बताया कि किसानों को धान की फसल से अधिक पैदावार लेने के लिए पादप रोगों से बचाव करना बहुत जरूरी है। बीमारी का उपचार बचाव, प्रतिरोधी क्षमता, साफ सफाई एवं टीकाकरण इत्यादि पर निर्भर करता है। किसान भाई धान की नर्सरी डालकर रोपाई करते हैं। या फिर कुछ किसान भाई सीधी धान की बुवाई भी करते हैं, इन दोनों तरह की खेती में बीज उपचार, भूमि शोधन एवं धान की खड़ी फसल में दवाइयों का छिड़काव बहुत आवश्यक है, जिससे लगभग 15 से 20 प्रतिशत आय बढ़ जाती है।
उन्होंने बताया कि धान में प्रमुख रूप से सफेद रोग (नर्सरी में) जीवाणु झुलसा, भूरा धब्बा एवं खैरा रोग प्रमुखता से लगते हैं। धान की फसल में जड़ एवं तना गलन की समस्या के रोकथाम हेतु ट्राइकोडरमा विरिडी नामक जैविक फफूंदी नाशक लाभप्रद पाया गया है। ट्राइकोडर्मा विरिडी से बीजों में अंकुरण अच्छा होकर फसलें फफूंद जनित रोगों से मुक्त रहती हैं।
डॉक्टर एस. के. विश्वास ने बताया कि धान की नर्सरी डालने की पूर्व धान को जीवाणु झुलसा रोग से बचाव के लिए 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन प्रति 25 किलोग्राम बीज को पानी में रात भर रखें तथा सुबह छाया में सुखाकर खेत में नर्सरी डाल देते हैं।
डॉक्टर बिस्वास ने बताया कि धान की फसल में लगने वाले खैरा रोग की रोकथाम के लिए धान की नर्सरी में बुवाई से 10 से 14 दिन बाद 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट एवं 20 किलोग्राम यूरिया 500 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए। धान की फसल को सफेद रोग से बचाव हेतु 4 किलोग्राम फेरस सल्फेट का छिड़काव किया जाए तथा अन्य रोगों हेतु 2 किलोग्राम जिंक मैग्नीज कार्बामेट व प्रोपिकोनाजोल 500 ग्राम को 500 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए। इसके साथ ही धान की पौध रोपाई के समय 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी जैविक फफूंदी नाशक को प्रति लीटर पानी में घोलकर उसमें पौधों को डुबोकर रोपाई करना लाभकारी होता है।
उन्होंने यह भी कहा कि बुवाई एवं रोपाई के पूर्व 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडरमा विरिडी तथा 60 किलोग्राम गोबर की खाद में हल्की नमी के साथ 3 से 5 दिन तक छाया में रखकर प्रति हेक्टेयर खेत में मिलाना चाहिए। डॉक्टर बिस्वास ने किसानों को ध्यान दिलाते हुए कहा कि धान की फसल में रोगों के लक्षण दिखाई देने पर रसायनों एवं जैविक फफूंदनाशक का तुरंत छिड़काव करें, यदि रोग पूर्णतया समाप्त न हो तो 7 से 10 दिन के अंतराल पर पुन: छिड़काव करें।
राम बहादुर/राजेश