जरूर पढ़ें, एक की भक्त अंजनी नंदन से भावुक प्रार्थना
वीर विक्रम बहादुर मिश्र
हे अंजनी नंदन पवनकुमार! आकंठ त्रासदी में डूबी दुनिया तुम्हारा जन्मोत्सव मना रही है। त्रेता में दुर्दांत रावण की लंका जलाकर तुमने मानवता के प्रति जो उपकार किया था, उसका गुणगान हम आज भी करते हैं। वह तुम्ही हो जिसकी प्रतिमाएं धरती के हर छोर पर पूजी जाती हैं। आप मानवता की पीड़ा हरने के लिए आज भी चिरंजीवी हो। पर लोगों को त्रेता के रावण से कहीं अधिक पीड़ा आज का कोरोनासुर दे रहा है। आप इसके विनाश के प्रयास के लिए किसके आदेश की प्रतीक्षा कर रहे हैं। लंका में आप सीता का पता लगाने के लिए भेजे गये थे, पर वहां राक्षसों के संहार करने और लंक विध्वंस का निर्णय आपका खुद का था। आदेश पालन में लगे हुए लोगों को कई बार अवसरोचित निर्णय स्वयं भी लेना पड़ता है। परमेश्वर श्री राम के प्रतिनिधि के रूप में तुम आज भी धरती पर पूजे जाते हो। पर सब कुछ देखकर तुम्हारी चुप्पी संशय पैदा कर रही है। संशय ग्रस्त लोग अब तुम्हारे पर भी उंगली उठाने लगे हैं। हे संकटमोचन अब यह संशय दूर करो।
तुमने सुग्रीव जैसे विलासी संसारी व्यक्ति की जिस तरह सहायता की, उससे भरोसा है कि तुम हम संसारियों की सुरक्षा में भी कोई भेदभाव नहीं करोगे। हमें पता है कि तुमने वाल्यावस्था में सूरज को निगलकर राहु से उसकी रक्षा की थी। परंतु गोस्वामी तुलसीदास जी ने उसका उल्लेख रामचरितमानस में नहीं किया, क्योंकि तुम्हारा वह कृत्य सामर्थ्यवान के हित में था। परंतु जब तुम सुग्रीव के हितैषी के रूप में प्रस्तुत हुए, तो उन्होने मानस में तुम्हारा चरित्र प्रविष्ट कर दिया। सामर्थ्य को सम्मान तब मिलता ह,ै जब वह अस्मर्थजनों के हित में प्रयुक्त होता है। तुम तो सामने थे जब मयदानव का वध कर बालि किष्किंधा लौटा था और राज सिंहासन पर बैठे सुग्रीव को देखकर कुपित हो उसकी पिटाई की थी और पत्नी को भी छीनकर उसे राज्य की सीमा से बाहर खदेड़ दिया था। यह सब होते हुए भी तुमने बालि का बचाव नहीं किया। तुम सक्षम थे। तुम चाहते तो सुग्रीव को बालि से बचा सकते थे, पर तुमने कोई हस्तक्षेप नहीं किया। परंतु जब सुग्रीव वहां से भागा तो तुम उसके साथ हो लिए। तुम हर उसके साथ होते हो जो पराजित महसूस करता है और यही तुम्हे वंदनीय बनाता है। दुनिया उसके साथ होती है जो जीतता है। तुम उसके साथ होते हो जो हार स्वीकार करता है। फिर जब तुम साथ हो जाते हो तो यह हार उसे हारने नहीं देती। हे पवनपुत्र हे मारुतनंदन! कोरोनासुर की माया के वायुमंडल में व्याप्त होने की आशंका पैदा हो गयी है इसके निवारण में तुम्ही सक्षम हो कृपा करो.’को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो।’
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार रहे हैं।)
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