….जब चित्रगुप्त ने कॉल किया!

ज्ञान सिंह

कोरोना की इस लहर ने बड़ों बड़ों को डरा रखा है और वह घर के अंदर क़ैद होकर रह गये हैं। बुजुर्ग लोगों पर तो घर के लोग बारी बारी से पहरा देते हैं कि कहीं महाशय चुपके से घर के बाहर निकल कर चहलक़दमी न करने लगें। हमारे एक मित्र बता रहे थे कि गेट की घंटी बजने पर जब वह बाहर झाँकने के लिए निकलते हैं तो पीछे पीछे पत्नी या बच्चे भी चेहरे पर सवालिया निशान लेकर निकल आते हैं जैसे वह भाग कर कहीं जाने वाले ही थे। घरों में इस कदर दहशत का माहौल बन गया है कि जब फोन की घंटी बजती है तो सभी के चेहरों पर किसी अनहोनी की आशंका के निशान नजर आने लगते हैं। हमने कहीं पढ़ा था कि एक बीमारी होती है जिसमें कुछ लोगों को फ़ोन की घंटी बजने पर ही घबराहट होने लगती है और किसी अप्रिय घटना की आशंका से दिल बैठने लगता है। हमें अब ऐसा लग रहा है कि हो न हो यह बीमारी हमें भी लग गई है क्योंकि हमें नींद में भी फ़ोन की घंटी सुनाई देती रहती है।ताज़ा वाकया अभी कल का ही है। आप लोग ही बतायें माजरा क्या है। रात का खाना खाने के बाद नींद ने हमें अपने आग़ोश में लपेटा ही था कि हमें फ़ोन की घंटी की आवाज़ सुनाई दी। सदैव की भाँति मन घबराहट से भर गया. ज़रूर कोई बुरी खबर होगी .डरते डरते हमने फोन उठाया तो दूसरी तरफ़ से भारी किन्तु सधी हुई आवाज़ में हेलो सुनाई दिया।
इस भारी भरकम हैलो को सुनते ही हमारा मन भारी हो गया फिर भी हमने हिम्मत जुटा कर बात शुरू किया, “हलो ! कौन बोल रहा है ?” उधर से आवाज़ आई, “मैं चित्रगुप्त बोल रहा हूँ, तुमसे कुछ बात करनी है।” हमारी समझ में नहीं आया कि यह कौन महाशय हैं, हमने सवाल दागा, “भाई कौन चित्रगुप्त, मैं किसी चित्रगुप्त को नहीं जानता। लगता है कि आपने कोई गलत नम्बर डायल कर दिया है।” चित्रगुप्त, “मैं यमराज का मुख्य सचिव चित्रगुप्त बोल रहा हूँ और मैंने सही नम्बर मिलाया है, तुमसे ज़रूरी बात करनी है।” चित्रगुप्त और यमराज का नाम सुनते ही हमारे माथे पर पसीने की बूँदे छलकने लगी और लगा कि अब हृदय की गति जाम होने वाली है। लड़खड़ाती आवाज़ में हिम्मत बटोर कर हमने कहा, “महराज! प्रणाम आपको। आपको कौन नहीं जानता। आप ही तो मनुष्य सहित सभी जीवों का डाटा रखते हो और उनका समय पूरा होने पर परवाना काटते हो। पर मुझ जैसे नाचीज़ को आपने फ़ोन क्यों किया? क्या मुझसे कोई अपराध हो गया है?”
चित्रगुप्त, “नहीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। यह नार्मल कॉल है। यूँ ही रजिस्टर पलट रहा था तो तुम्हारे खाते पर नजर पड़ गई। सोचा बता दूँ कि तैयारी रखो, अपने काम समेट लो, कभी भी पर्ची कटने का समय आ सकता है। वैसे पिछली कोरोना की लहर को तुम अपने अच्छे कर्मों के कारण पार कर गये थे पर अब लहर पर लहर आ रहीं हैं, आखिर कब तक बचे रहोगे।” जिसका डर था वही हुआ। यह खबर सुनाने के लिए इन जनाब को हमें कॉल करने की क्या जल्दी पड़ी थी और पहले से बता कर हमारा ब्लड प्रेशर बढ़ाने की क्या ज़रूरत थी। हमने ठान लिया कि जो होगा सो होगा, क्यों न इन महाशय से खरी-खरी बात कर ली जाये, “महाराज! अभी तो हम सत्तर भी नहीं पार कर पाये हैं और आप पर्ची काटने की बात कर रहे हैं। यहां तो तमाम अभी 90-95 साल वाले जगह छेंके जमे हुए हैं। हमें तो आपके यहाँ का हिसाब ही नहीं समझ में आ रहा है। किसी को जवान होने के पहले ही रुख्सत कर देते हो तो किसी की 100 साल तक भी खबर नहीं लेते हो। पाप पुण्य का भी कोई तालमेल नहीं, कोई कोई पापी लम्बे समय तक छाती में मूँग दलता रहता है तो कोई पुण्यात्मा कच्ची उमर में ही रवाना हो जाता है। यह तो अजब तानाशाही है। कोई नियम क़ानून या तरीक़ा ही समझ में नहीं आ रहा है।” लगता है कि चित्रगुप्त जी इस तरह की भड़की हुई प्रतिक्रिया के लिए तैयार नहीं थे, रक्षात्मक लहजे में वह बोले, “भाई ! मैं तो केवल हिसाब किताब रखता हूँ, बाक़ी सारे फ़ैसले तो यमराज खुद लेते हैं। वैसे तुम्हारी बात मे दम है पर मेरे हाथ में ज़्यादा कुछ नहीं है।”
अब तक हमारी भी हिम्मत कुछ बढ़ चुकी थी, हमने सोचा आज पूरी भड़ास निकाल ही लेते हैं, “महराज ! हमारे यहाँ का मुख्य सचिव तो बहुत पावर फुल होता है और मुख्यमंत्री उनकी सलाह और सहारे पर ही काम करते हैं। वह पूरे प्रदेश को अपनी उँगली पर नचाये रहता है। यह बात अलहदा है कि कभी-कभी वह खुद भी मुख्यमंत्री के सामने नाचता दिखाई दे जाता है। आपसे हमारा केवल यह अनुरोध है कि आप अपने यहाँ कोई ऐसी नियमावली या कार्यप्रणाली बनायें जिसमें हर किसी के यहाँ से जाने की पारदर्शी और न्यायपूर्ण व्यवस्था हो। सीनियार्टी के नियम का कड़ाई से पालन हो। यदि किसी को प्रायर्टी देनी तो उसके भी नार्म्स निर्धारित हों। और हाँ, यह भी ज़रूरी है कि हर किसी को एक न्यूनतम उम्र तक जीने का अधिकार दिया जाये ताकि वह मनुष्य योनि में पैदा होने के सारे सुख और मजे ले सके। हम आशा करते हैं कि आप यमदेव तक हमारी इन चिन्ताओं और जायज़ इच्छाओं को ज़रूर पहुँचा देंगे।” थोड़ा विराम लेने के बाद हमने अपनी बात जारी रखी, “महराज! जहाँ तक हमारी बात है, जब भी पर्ची कटेगी हम चल देंगे, पर आप जानते ही हैं कि हमने भी आपकी ही तरह पूरी सर्विस के दौरान इधर से उधर फ़ाइलें सरकाईं हैं और तमाम फैसले अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ कराये हैं। आप हमारी फाइल एक बार ठीक से चेक कर लीजिए। अभी तो हम पूरी पेंशन भी नहीं पा रहे हैं जो 75 साल पूरा होने पर मिलती है। आप कोई ऐसा क्लाज ढूँढिए कि हम पूरी पेंशन का मजा भी कुछ साल ले सकें।” यह कहकर हमने आदर पूर्वक चित्रगुप्त जी को प्रणाम किया और अपनी बात ख़त्म कर दी। चित्रगुप्त, “पुत्र ! तुम्हारी सारी बातें बहुत जायज़ हैं। मैं कोई आश्वासन तो नहीं देता पर कोशिश करूँगा कि यमदेव तुम्हारी बातों और सुझावों पर अवश्य अनुकूल रवैया अपनायेंगे।” इस प्रकार हमारी और चित्रगुप्त जी की फ़ोन वार्ता समाप्त हो गई। हमें आभास हुआ कि अब सबेरा हो चुका है, बाहर चिड़ियों की चहचहाहट और कुत्तों के भौंकने की आवाज़ों ने हमें विस्तर छोड़ने को विवश कर दिया। आप सभी का दिन मंगलमय हो।

(लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं।)

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