जनजातियों की समृद्धि का द्वार खोलेगा ‘बांस’

गोरखपुर (हि.स.)। 28 जातियों और 100 से अधिक उपजातियों के रूप में भारत में पाये जाने वाले बांस के दिन बहुरने लगे हैं। ठोस, पोली, मोटी, पतली, लंबी, छोटी चाहे जैसा भी हो; अब इसको पहचान मिलने वाली है। यहां तक जनजातियों और बांस से काम करने वाले हुनर को भी मुकाम हासिल होगा। वजह, सरकार ने इसे बहुपयोगी बनाने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। सरकार के इस प्रयास से जहाँ किसानों में उम्मीद जगी है, वहीं बांस के शिल्पयों को भी अच्छा अवसर दिख रहा है।

इसकी खेती बढ़ाने के साथ किसानों और शिल्पियों को इससे जोड़ने को कॉमन फैसिलिटी सेंटर भी खुल रहे हैं। सरकार ने बांस उत्पादों की विस्तृत चेन और बाजार बनाने की योजना पर भी काम शुरू किया है। बांस उपचार संयंत्र लगाने की मुहिम भी शुरू है।

पांच जिलों में खुले हैं सीएफसी

राष्ट्रीय बांस मिशन योजना के प्रशिक्षण और जागरूकता के लिए पांच जिलों सहारनपुर, बरेली, झाँसी, मीरजापुर तथा गोरखपुर में सामान्य सुविधा केंद्रों (कॉमन फेसिलिटी सेंटर) की स्थापना की गई है। इनमें प्रशिक्षण के लिए क्रॉस कट, बाहरी गांठ हटाने, रेडियल स्प्लिटर, स्लाइसर, सिलवरिंग, स्टिक मेकिंग और स्टिक साइजिंग जैसी मशीनें स्थापित हैं।

इन्हें लाभ

ये केंद्र बांस कारीगरों के समूहों, स्वयं सहायता समूहों, कृषक उत्पाद संगठनों या वन विभाग की संयुक्त वन प्रबंधन समिति की स्थानीय इकाइयों द्वारा संचालित होंगे। इनमें क्षेत्र के कृषकों, कारीगरों, उद्यमियों को प्रशिक्षण दिया जायेगा। रोजगार सृजन के अवसर उपलब्ध कराये जाएंगे।

खेती से मार्केटिंग तक की हो रही व्यवस्था

बांस को रोजगार से जोड़ने के लिए सरकार ने खेती से मार्केटिंग तक की चेन तैयार करने की योजना पर काम शुरू किया है। राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत बांस की नई किस्मों को विकसित करने, अनुसंधान को प्रोत्साहन करने, हाईटेक नर्सरी लगाने, पौधों में कीट एवं बीमारी प्रबंधन, बांस से जुड़ी हस्तकला को बढ़ावा देने, बांस उत्पादकों की आय बढ़ाने, बांस उत्पादों के लिए विपणन नेटवर्क विकसित करने तथा कारीगरों को कच्चा माल उपलब्ध कराने के लिए शुरू किया गया है।

32 जिलों में हो रहा काम

फिलहाल, सरकार ने राष्ट्रीय बांस मिशन योजना को बुंदेलखण्ड और विंध्य क्षेत्र सहित 32 जिलों के 38 वन प्रभागों में लागू कर दिया है। इसके आलावा बिजनौर सामाजिक वानिकी, नजीबाबाद (बिजनौर), सहारनपुर सामाजिक वानिकी, शिवालिक (सहारनपुर), मुजफ्फरनगर, रामपुर, बरेली, शाहजहांपुर, सीतापुर, पीलीभीत सामाजिक वानिकी, पीलीभीत टाइगर रिजर्व, उत्तर खीरी, दक्षिण खीरी, बहराइच, बाराबंकी, रायबरेली, सुल्तानपुर, प्रयागराज, प्रतापगढ़, फतेहपुर, काशी वन्यजीव (चन्दौली), जौनपुर, वाराणसी, आजमगढ़, गोरखपुर, सोहागीबरवा वन्यजीव (महराजगंज), बलिया, ललितपुर, महोबा, हमीरपुर, बांदा, झांसी, उरई (जालौन), चित्रकूट, मिर्जापुर, सोनभद्र, ओबरा तथा रेनूकूट में भी लागू कर रही है।

कहते हैं पर्यावरणविद

पर्यावरणीय लाभों पर चर्चा करते हुए पर्यावरणविद प्रत्युष पिंगिता कहती हैं कि बांस को ऊसर या कम उपजाऊ जमीन पर लगाया जाना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि स्थानीय प्रजातियों को कोई नुकसान न पहुंचे। वैज्ञानिक गुण भी हैं। इसमें कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता किसी दूसरे पौधे के मुकाबले अधिक होती है। यह ऑक्सीजन भी अधिक उत्पन्न करता है।

डॉ. आमोदकान्त/मोहित

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