जनऔषधि केंद्रों के बंद होने का खतरा

गोरखपुर (हि.स.)। महानगर में मरीजों को सस्ती दवाओं के लिए भटकना पड़ सकता है। सस्ती दवाओं के लिए खोले गए जन औषधि केन्द्र के बंद होने का खतरा मंडरा रहा है। सप्लायर ने दवाओं की आपूर्ति को रोक दिया है। इन केन्द्रों पर दवाएं बाजार मूल्य से 35 से लेकर 70 फीसदी तक कम दाम पर मिलती हैं।
मंडल में कार्यदायी संस्था गुंजन इंटरप्राइजेज को जन औषधि केंद्र खोलने की जिम्मेदारी दी गई थी। वह सरकार की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। जिला व महिला अस्पताल में तो केंद्र खुले लेकिन मेडिकल कॉलेज सहित सीएचसी पर नहीं खोले गए। इससे गरीब मरीजों को सस्ती दवाएं नहीं मिल पा रही हैं। इधर, ओपीडी बंद होने से दवाएं बिक नहीं रही थीं। ओपीडी खुलने के बाद भी ज्यादातर चिकित्सकों ने ब्रांडेड दवाएं लिखनी शुरू की हैं। ये दवाएं मेडिकल स्टोरों पर ही मिल रहीं हैं। जन औषधि केंद्रों पर मिलने वाली जेनरिक दवाएं लिखने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। इतना ही नहीं, डिमांड के बाद भी समय से इन केंद्रों को दवाएं उपलब्ध नहीं हो रही हैं। इसे लेकर बेरोजगार फार्मासिस्ट उत्थान सेवा संस्थान ने आवाज उठानी शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर कार्यदायी संस्था का ठेका निरस्त कर इन केंद्रों का संचालन फार्मासिस्टों को सौंपने की मांग की है।
बेरोजगार फार्मासिस्ट उत्थान सेवा संस्थान के अध्यक्ष कृष्ण प्रताप साहनी का कहना है कि प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों के सुचारु संचालन के लिए कार्यदायी संस्था का अनुबंध निरस्त किया जाना चाहिए। बीआरडी मेडिकल कॉलेज, महराजगंज, सिद्धार्थ नगर व पडरौना में यह केंद्र अभी तक खुले ही नहीं। इससे गरीबों को सस्ती दवाएं तो नहीं ही मिल रही हैं, फार्मासिस्टों का भी नुकसान हो रहा है। केंद्र खुलते तो बेरोजगारों को काम मिलता।
गुंजन इंटरप्राइजेज के निदेशक दिवाकर सिंह का कहना है कि हमें 150 केंद्र हमें खोलने थे। प्रथम चरण में 25 केंद्र खोले गए। सरकार इन्हीं को दवाएं उपलब्ध नहीं करा पा रही है, इससे आय प्रभावित है। फार्मासिस्टों को अपने घर से वेतन दे रहे हैं। 15 केंद्र निरस्त कर दिए गए हैं। बैंक गारंटी जब्त कर ली गई है। ऐसी परिस्थति में भी हम काम करने की कोशिश कर रहे हैं, बावजूद इसके सरकार से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है।

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