चित्रकूट में दीपदान के बाद देश-दुनिया में शुरू हुई थी ‘दीपावली’

– आदि तीर्थ चित्रकूट में प्रतिवर्ष 50 लाख श्रद्धालु मन्दाकिनी और कामदगिरि में करते हैं दीपदान
रत्न पटेल
चित्रकूट (हि.स.)। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर बसे विश्व के प्रमुख तीर्थ चित्रकूट की मंदाकिनी नदी और कामदगिरि पर्वत पर भगवान श्रीराम ने लंका विजय के बाद दीपदान किया था। त्रेतायुग में हुए इस प्रथम दीपदान में ब्रह्माण्ड के सभी देवी-देवता सम्मिलित हुए थे। दीपदान की भव्य आभा से अमावस्या का अंधकार दूर होकर पूर्णिमा के प्रकाश में बदल गया था। तभी से धर्म नगरी में दीपदान मेले की शुरुआत हुई थी और यह परम्परा आज भी जारी है।

अत्रि और वाल्मीकि जैसे महान ऋषियों के साथ-साथ भगवान श्रीराम की तपोस्थली होने के कारण समूचे विश्व में आदितीर्थ के रूप में विख्यात धर्म नगरी चित्रकूट में दीपावली (दीपदान) मेले का विशेष महत्व है। पांच दिनों तक चलने वाले विश्व के इस सबसे बड़े मेले में देश भर से करीब 50 लाख से अधिक लोग तपोभूमि चित्रकूट पहुंचकर माता सती अनुसुइया के तपोबल से निकली पतित पावनी मां मंदाकिनी और मनोकामनाओं के पूरक कामदगिरि पर्वत पर दीपदान कर अपने जीवन में फैले अमावस्या रूपी अंधकार को दूर कर पूर्णिमा रूपी सुख-समृद्धि के प्रकाश को प्रज्ज्वलित करते हैं।

कामदगिरि प्रमुख द्वार के महंत मदन गोपाल दास धर्म नगरी चित्रकूट में प्रतिवर्ष होने वाले दीपदान मेले की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताते हैं कि प्राचीन मान्यता है कि भगवान श्रीराम  लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद सबसे पहले चित्रकूट के कामदगिरी पर्वत पहुंचे थे और पर्वत और मंदाकिनी नदी में माता सीता और लक्ष्मण के साथ दीपदान किया था। इस दीपोत्सव में देवता, गंधर्व और ऋषि-मुनि सभी सम्मिलित हुए थे। दीपदान से अमावस्या का अंधेरा दूर हो गया था और पूरा चित्रकूट भव्य प्रकाश से जगमग नजर आने लगा था।

उल्लेखनीय है​ कि चित्रकूट में ही भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल के साढ़े 11 वर्ष से अधिक का समय बिताया था। चित्रकूट में दीपदान के बाद से विश्व में दीपावली पर्व की शुरुआत हुई थी।

भरत मंदिर के महंत दिव्य जीवन दास बताते हैं कि प्रभु श्रीराम के मंदाकिनी और कामदगिरि पर्वत पर दीपदान के बाद से चित्रकूट में दीपदान मेले की शुरू हुई परम्परा आज भी कायम है। दीपावली के दौरान आयोजित होने वाले पांच दिवसीय मेले में देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं और भगवान श्रीराम की तपोस्थली में मां सती अनुसुइया के प्रताप से उत्पन्न मंदाकिनी में आस्था की डुबकी लगाने के बाद दीपदान करते हैं। इसके साथ ही मनोकामनाओं के पूर्णता के लिए वनवास भगवान श्रीराम के निवास स्थान रहे कामदगिरि पर्वत की पंच कोसीय प्रदक्षिणा करते हैं।

कामतानाथ प्राचीन मंदिर के प्रधान पुजारी भरत शरण दास महाराज धर्म नगरी की महत्ता बताते हैं कि इस पावन भूमि को भगवान श्रीराम ही नहीं, लाखों ऋषि-मुनियों की तपोस्थली के रूप में जाना जाता है। उन्होंने बताया कि पांच दिन तक चलने वाले दीपदान मेले में 40 से 50 लाख श्रद्धालु प्रतिवर्ष पहुंचते हैं। दीपावली की पूरी रात मंदाकिनी और कामदगिरि पर्वत पर दीपदान और परिक्रमा का कार्यक्रम चलता है। धर्म नगरी में आयोजित होने वाले सबसे बड़े दीपदान मेले को सकुशल संपन्न कराने के लिए यूपी-एमपी शासन-प्रशासन मुस्तैदी के साथ जुटे हुए हैं।

जिलाधिकारी चित्रकूट शेषमणि पांडेय, जिलाधिकारी सतना (मध्य प्रदेश) अजय कठसेरिया तथा पुलिस अधीक्षक चित्रकूट अंकित मित्तल व पुलिस अधीक्षक सतना (मध्य प्रदेश) धर्मवीर सिंह ने कलेक्ट्रेट सभागार में बैठक कर कोरोना प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन कराते हुए मेले को सकुशल संपन्न कराने की रणनीति तय कर चुके हैं।

बैठक में जिलाधिकारी शेषमणि पांडेय ने बताया कि किसी भी दशा में कोविड-19 के प्रोटोकॉल को फॉलो करते हुए मेला सकुशल संपन्न कराया जाएगा। मास्क लगाना अनिवार्य है, मठ-मंदिरों में सैनिटाइजेशन के साथ-साथ सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराया जायेगा।

उन्होंने बताया कि दोनों प्रदेशों के अधिकारी यह सुनिश्चित कर लें कि सभी विभाग आपस में तालमेल अवश्य बनाकर मेला को सकुशल संपन्न कराएं। चित्रकूट उत्तर प्रदेश में मेला क्षेत्र को नौ जोन तथा 18 सेक्टर में विभाजित किया गया है। सभी जोनल व सेक्टर मजिस्ट्रेट तैनात कर दिए गए हैं।

जिलाधिकारी सतना (मध्य प्रदेश) अजय कठसेरिया ने कहा है कि कोरोना का खतरा अभी टला नहीं है। ऐसे में दीपदान मेले में ज्यादा भीड़ न हो, उसको रोकने की अपील करने की जरूरत है। संभावित भीड़ को देखते हुए मध्य प्रदेश प्रशासन द्वारा सभी व्यवस्थाएं की गई हैं।

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