गोरखपुर : कार्तिक पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी
गोरखपुर (हि.स.)। कार्तिक पूर्णिमा पर सोमवार को श्रद्धालुओं ने राप्ती, घाघरा, आमी समेत विभिन्न नदियों में आस्था की डुबकी लगाई। साथ ही साथ यथाशक्ति दान भी दिया।
सिटी में राप्ती नदी के तट पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी और स्नान-दान की परमपुण्यदा कार्तिक पूर्णिमा परंपरागत श्रद्धा के साथ मनाई गई। अनेक श्रद्धालुओं ने कार्तिक पूर्णिमा पर मुंडन भी कराया और नदी के तट पर ही भगवान श्री सत्य नारायण की कथा सुनी। परंपरागत रूप से गो-दान भी किया गया।
राप्ती नदी के तट के साथ ही सरोवरों आदि पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ रही। सबसे ज्यादा श्रद्धालु राजघाट स्थित राप्ती तट पर जुटे। लोगों ने स्नान पूजन का भरपूर आनंद उठाया। श्री गोरक्षनाथ मंदिर स्थित मान सरोवर, हनुमान गढ़ी, सूर्यकुंड धाम समेत प्रमुख जगहों पर श्रद्धालुओं ने कार्तिक पूर्णिमा का स्नान किया।
ज्योतिषाचार्य अमित कुमार बताते हैं कि कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान करने दान करने से मन वांछित फल मिलते हैं। कार्तिक पूर्णिमा का माहात्म्य इस दिन गंगा व अन्य नदियों में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। सायंकाल दीपदान किया जाता है। इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था।
माना जाता है कि इसी दिन गंगा व गंडक नदी के संगम पर गज-ग्राह युद्ध भी हुआ था। भगवान शंकर ने त्रिपुर नाम राक्षस को भस्म किया था और मां दुर्गा ने महिषासुर के वध के लिए शक्ति अर्जित की थी। मान्यताओं के अनुसार कार्तिक माह में किए गए दान, व्रत, तप, जप आदि का लाभ चिरकाल तक बना रहता है। यदि संपूर्ण माह यह न हो सके तो आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा को स्नान-दान करना चाहिए। माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा को देवतागण दीपावली मनाने पृथ्वी पर आते हैं।
पुराणों के अनुसार, त्रिपुरासुर के नाश से प्रसन्न होकर देवताओं ने काशी में पंचगंगा घाट पर दीपोत्सव का आयोजन किया था। तभी से देव दीपावली की परंपरा शुरू हुई। एक अन्य मान्यता के अनुसार काशी के राजा देवदास ने अपने राज्य में देवताओं को प्रतिबंधित कर दिया था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन रूप बदलकर भगवान शिव ने काशी के पंचगंगा घाट पर स्नान और अर्चन किया। जब राजा को यह बात पता चली तो उन्होंने देवताओं पर से प्रतिबंध हटा दिया। इस खुशी में देवताओं ने दीपावली मनाई थी।