गोंडा के इस गांव में रावण दहन के बाद मनाई जाती है होली, पीढ़ियों से रामलीला का मंचन
गोंडा (हि.स.)। उत्तर प्रदेश में एक ऐसा गांव जहां करीब 500 वर्षों से नवरात्र पर्व पर नहीं, बल्कि होली त्यौहार से पूर्व रामलीला का मंचन किया जाता है। यहां रावण दहन के बाद ही होलिका दहन होती है। ऐसी लोक परंपराएं व धार्मिक मान्यता है कि एक बार विपरीत परिस्थितियों में रामलीला का मंचन नहीं हो सका तो अचानक लगी और आग से गांव के कई दर्जन घर जलकर राख हो गए। वहीं, गांव के अधिकांश लोग गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो गए।
जनपद के हलधर मऊ विकासखंड की ग्राम पंचायत पहाड़पुर ऐसी अनोखी धार्मिक मान्यताओं को सजोए हुए है। टेढ़ी नदी के तट पर बसे इस गांव के पश्चिमी छोर पर एक विशालकाय तालाब के किनारे एक प्रसिद्ध राम चबूतरा बना हुआ है। गांव के लोग तालाब के उस पार खाली पड़ी जमीन को लंका मानते हैं।
यहां की रामलीला की विशेषता यह है कि 10 से 15 वर्ष आयु के के बच्चे भगवान राम बनते हैं। 10 वर्ष की बच्चियों को सीता बनाया जाता है। रामलीला में 6 अलग-अलग परिवार के लोग 200 वर्षों से हनुमान, अंगद, सुग्रीव, जामवंत नल व नील का किरदार निभा रहे हैं।
रामलीला मंचन में हनुमान का किरदार निभा रहे विनायक राम ने बताते हैं कि करीब 200 वर्षों से उनके परिवार के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी हनुमान जी का किरदार निभाते चले आ रहे हैं। अब वर्तमान समय में वे खुद हनुमान का अभिनय कर रहे हैं। इसी तरह चंद्रभान शुक्ला बताते हैं कि उनके परिवार के लोग 150 वर्षों से अंगद का मंचन करते आ रहे हैं। 150 से वर्ष से ही सुग्रीव की भूमिका निभा घनश्याम के घर से होती है।
500 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा के तहत पहाड़पुर के लोग होली पर्व के पूर्व रामलीला का मंचन करते आ रहे हैं। यहां अभिनयकर्ता बताते हैं कि जिस परिवार से जो व्यक्ति जिस किरदार की भूमिका अदा करता है, यदि उसके स्थान पर किसी दूसरे परिवार के लोगों ने उस किरदार की भूमिका निभाई तो कुछ ना कुछ अनहोनी घट जाती है।
रामलीला न होने के कारण 1992 में लगी आग !
1992 में गांव लगी आग का हवाला देते हुए स्थानीय लोग बताते हैं कि 29 वर्ष पहले 1992 में दैवीय प्रकोप के कारण गांव में रामलीला का कार्यक्रम रोक दिया गया। इसका नतीजा रहा कि गांव में अचानक आग लग गई और लगभग 200 घर जलकर राख हो गए। गांव के बुजुर्ग लायक राम शुक्ल बताते हैं कि जिस तरह हनुमान जी ने लंका जलाई थी। ठीक उसी तरह रावण का किरदार निभाने वाले हनुमान प्रसाद शुक्ल का घर अचानक धू-धू कर जलने लगा। इसके बाद आग सीधे पश्चिमी छोर से पूर्वी छोर पर पहुंच गई। इस तरह गांव के सभी घर जल गए, लेकिन विभीषण का किरदार निभाने वाले निलांबुज शुक्ला का घर बच गया।
फागुन मास में होती है रामलीला
ग्रामवासी श्रीनाथ रस्तोगी बताते हैं कि रामलीला समिति के नेतृत्व में हर साल बसंत ऋतु के बाद फागुन मास में रामलीला का कार्यक्रम होता है। वर्तमान में समिति के अध्यक्ष शांतीचंद्र शुक्ला के अगुआई में रामलीला सम्पन्न हो रही है। वैसे तो पूरे रामलीला मंचन के दौरान आसपास के लोग बड़ी संख्या में जुटते हैं, किन्तु लंका दहन और रावण वध के दिन यहां विशाल मेला लगता है। मेले में दूर दूर से व्यवसायी आकर दुकानें लगाते हैं। शाम 04 बजे से शुरू होकर कार्यक्रम रात भर चलता है।
विमान उठाने को लगती होड़
पहाड़ापुर गांव के निकट तालाब और टेढ़ी नदी के बीच बने रामलीला मैदान में ही लीला का मंचन है। गांव के तमाम बुर्जुग बताते हैं कि पहले तालाब के पानी से होकर ही मैदान तक पहुंचा जा सकता था। लिहाजा गांव में ब्रहमादीन के घर से सज धजकर भगवान निकलते थे तो उन्हें कंधे पर बिठाकर तालाब पार कराया जाता था। फिर उन्हें 15 सीढ़ी वाले एक भारी भरकम विमान में बिठाया जाता था। तब भगवान को कंधे पर बिठाने के लिए होड़ लगी रहती थी। अब छोटा सा पुल बन जाने के बाद भी यह परम्परा कायम है और अब भी भगवान को कंधे पर बिठाने और सात सीढ़ी वाले विमान को उठाने की होड़ लगती है।