कानपुर में बसपा को 40 वार्डों में नहीं मिले उम्मीदवार
-कानपुर नगर निगम क्षेत्र के 110 वार्डों में से केवल 70 सीटों पर लड़ेगी चुनाव
कानपुर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश में 11 साल पहले पूर्ण सत्ता में रहने वाली बहुजन समाज पार्टी(बसपा) को नगरीय निकाय चुनाव के दौरान कानपुर नगर निगम क्षेत्र में पार्षद पद पर चुनाव लड़ने को चेहरे नहीं मिल रहे हैं। पार्टी को 110 वार्डों में से 40 पर चुनाव लड़ाने के लिए उम्मीदवार नहीं मिले हैं। केवल 63 फीसद पार्षद पदों के लिए ही बसपा अपने उम्मीदवार लड़ा पा रही है। इससे पार्टी में स्थानीय स्तर से लेकर शीर्ष नेताओं में खलबली मच गयी है।
बहुजन समाज पार्टी का गठन 1984 में हुआ था। इसके बाद से पार्टी का ग्राफ लगातार बढ़ रहा था। इस पर एक बार तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष कांशीराम ने पूर्ण विश्वास से कहा था कि बसपा ही एक ऐसी पार्टी है जिसका जनाधार हर चुनाव में बढ़ेगा। कांशीराम का यह वक्तव्य 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ही सही साबित नहीं हो रहा है। उस चुनाव के बाद से पार्टी का ग्राफ लगातार गिरता ही गया। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की आंधी में पार्टी 19 सीट पर जा सिमटी। हालांकि उस दौरान पार्टी का वोट प्रतिशत सम्मानजनक रहा। इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में तो एक ही सीट पर सिमट गई। वोट प्रतिशत भी इस कदर गिर गया कि लोग कहने लगे कि अब बसपा का जनाधार लगभग उत्तर प्रदेश में खत्म हो रहा है। इसका परिणाम यह रहा कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश में हो रहे नगर निकाय चुनाव में पार्टी को उम्मीदवार नहीं मिल रहें।
बसपा को लेकर अगर कानपुर महानगर की बात की जाये तो जहां अन्य चुनावों में उम्मीदवारों के बीच टिकट के लिए जबरदस्त टकराव होता था, वहीं अब उम्मीदवार ही नहीं आ रहे। शहर में 110 वार्ड हैं और पार्टी को सिर्फ 70 उम्मीदवार ही पार्षद चुनाव के लिए मिल सके। हाईकमान ने नाराजगी जाहिर करते हुए चुनाव के बीच में ही मुख्य जोन इंचार्ज मुनकाद अली को पद से हटा दिया और उनकी जगह पर शमसुद्दीन को जिम्मेदारी दे दी। सूत्र बताते हैं कि पार्टी मुखिया ने नये जोन प्रभारी को सख्त निर्देश दिया है कि बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करें ताकि आगामी लोकसभा चुनाव में मजबूती के साथ लड़ा जा सके।
बसपा के घटते जनाधार को लेकर राजनीतिक विश्लेषक डॉ. अनूप सिंह का कहना है कि बसपा का उदय आंदोलन के रूप में हुआ था और दलित एवं कमजोर वर्ग को पार्टी से अधिकारों को लेकर उम्मीद जगी थी। सत्ता में आने के बाद बसपा से इस वर्ग को कोई खास लाभ नहीं मिला और वर्तमान सत्ताधारी पार्टी भाजपा के जनकल्याणकारी योजनाओं से उनको लाभ मिल रहा है। इससे पार्टी का ग्राफ लगातार घटता जा रहा है। फिलहाल आगे भी इनको बसपा से लाभ मिलता नहीं दिख रहा है। दूसरी बात पार्टी हाईकमान संगठन पर ध्यान नहीं दे रहा और जमीनी स्तर पर संगठन बहुत कमजोर हो चुका है। इसके साथ ही जनता के बीच के मुद्दों की पार्टी आवाज भी नहीं बन पा रही है।
अजय सिंह