कानपुर टू कनाडा
संजय सिन्हा
अप्रैल 2001 की याद है। जेट एयरवेज से मैं कोलकाता की उड़ान पर था। साथ में अपने दत्तक पिता शंभूनाथ शुक्ला जी भी थे। मैं तब ज़ी न्यूज़ में था और शंभू जी जनसत्ता कोलकाता के संपादक। मुझे कोलकाता से सिलीगुड़ी जाना था, फिर लौट कर कोलकाता और दिल्ली वापसी के अगले दिन अमेरिका की यात्रा पर निकलना था। क्योंकि मेरी अमेरिका की वो यात्रा लंबे समय के लिए होनी थी तो मुझे बहुत तैयारी भी करनी थी। क्या लेकर जाएं, किन चीजों की जाते ही ज़रूरत पड़ेगी, वगैरह-वगैरह। आप सोचेंगे कि संजय सिन्हा क्यों अपनी कोलकाता और अमेरिका यात्रा को याद करने बैठ गए हैं? जहां तक मुझे लग रहा है, मैंने अपनी उस कोलकाता यात्रा की कहानी आपसे पहले शायद साझा की है। पर आज की कहानी में उस याद की चर्चा बनती है। दिल्ली से हम दोनों यानी मैं और शंभूजी साथ-साथ चले। मेरे आगे एक महिला खड़ी थी, जो कोलकाता ही जा रही थी, उसके पास सामान कुछ अधिक था। काउंटर पर बैठे बाबू से उसकी झिकझिक हो रही थी। अपनी आदत वश मैं बीच में पड़ा तो पता चला कि बाबू अतिरिक्त सामान के अतिरिक्त पैसे मांग रहा था। दयालु और बुद्धिमान संजय सिन्हा ने बिना उस महिला से पूछे बाबू से कहा कि इनके कुछ सामान मेरे नाम पर बुक कर लो। मतलब महिला की समस्या खत्म। बाबू को मेरे इस प्रस्ताव से कोई समस्या नहीं थी और महिला को तो खुश होना ही था। अब तीन बोर्डिंग पास साथ-साथ मिले। संजय सिन्हा, शंभूनाथ शुक्ला और वो महिला। शंभू जी ने पूछा कि संजय हम बैठेंगे कैसे? मतलब सीट की सेटिंग किस तरह होगी? मैंने शंभू जी की ओर देखा और आइडिया दिया कि महिला को विंडो सीट दे देते हैं, बीच में आप बैठ जाइए और सबसे किनारे वाली यानी आपके बाजू में मैं। और कोई मौका होता तो बीच की सीट पर कौन बैठता? पर भोले शंभू जी मान गए। हमने इतनी देर की बातचीत में अंदाज लगा लिया था कि महिला है तो हिदुस्तानी, पर आंग्लभाषी है। शंभूजी बैठने बैठ तो गए, पर बातचीत शुरू नहीं हो पा रही थी। तो वो मुझसे दुनिया जहान की बातें करते रहे। हम दोनों उस महिला के बारे में भी खूब बातें करते रहे। ठीक से याद नहीं है, पर इतना याद है कि उस महिला ने कुछ ऐसी बात कही, जिससे हमें पता चला कि मैडम तो परफेक्ट हिंदी बोलती और समझती हैं। अब हमारी बातचीत शुरू हो गई। क्योंकि मैं सबसे किनारे था और महिला विंडो वाली सीट पर तो बातचीत उचक-उचक कर हो रही थी। बात ही बात में उसने बताया कि वो अमेरिका में रहती है और अभी इंडिया आई है। तो मैंने उसे बताया कि तीन-चार दिनों में मैं भी अमेरिका जा रहा हूं। बस कहानी का धागा यहीं है। उस महिला ने इंगलिश में एकदम सहज भाव से कहा, “वाऊ, समवन इज ट्रैवेलिंग टू द यूएस?” मैं हैरान था। मैं दुनिया के पता नहीं कितने देश पहले घूम चुका था। पर अमेरिका जाने पर उस महिला के चेहरे की खुशी देखने लायक थी। फिर हमारी लंबी बात हुई। मैंने उससे पूछा कि हमें वहां क्या ले जाना चाहिए, क्या नहीं तो उसने कहा था कुछ मत ले जाइएगा। वहां सब मिलता है। सस्ता मिलता है।
“मिठाई वगैरह?”
“किसके लिए?”
“अपने इंडियन फ्रेंड्स के लिए।”
“यू विल गेट एवरीथिंग। ट्रैवेल लाइट।”
पर तब तक हम अमेरिका यात्रा की ढेर सारी शॉपिंग कर चुके थे। लेदर के बड़े-बड़े जैकेट, खूब सारे मसाले और पता नहीं क्या-क्या। पता नहीं किसने कह दिया था कि अमेरिका में सब महंगा मिलता है तो हम प्रेशर कूकर तक खरीद कर ले गए थे। खैर, आज कहानी शंभूनाथ शुक्ला जी की। कल शंभू जी का फोन आया कि संजय आज रात मैं कनाडा जा रहा हूं। शंभू जी सबसे छोटी बेटी टोरंटो में रहती है। शंभू जी बहुत दिनों से कनाडा जाने का मन बना रहे थे। जैसे ही उन्होंने बताया कि संजय सारी तैयारी हो गई है, आज रात मैं निकल रहा हूं तो मेरे मुंह से निकला, “वाऊ, समवन इस ट्रैवेलिंग टू कैनेडा।” बस इतना कहते ही मुझे वो महिला याद आ गई। शंभू जी ने विस्तार बताया कि क्या-क्या सामान वो ले जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनकी ज़िंदगी की ये पहली विदेश यात्रा होगी। मैंने उन्हें खूब हौसला दिया और कहा कि वहां खूब मजा आएगा। बेटी का साथ मौसम की खूबसूरती दोनों आपका मन मोह लेंगे। मैंने शंभू जी से ये भी कहा कि ट्रैवेल लाइट। शंभू जी ने कहा कि यार, सब सामान खरीद लिया हूं। चार महीने की तैयारी करके जा रहा हूं। नवंबर में वापसी होगी। दामाद ने कहा था कि कलेवा से मिठाई लेते आइएगा तो चार किलो मिठाई ले जा रहा हूं। मैंने इतना ही कहा, शंभू जी वहां सब मिल जाता है।
पर, “संजय बुकनु तो नहीं मिलेगा न? मैं बुकनु भी लेकर जा रहा हूं।”
“ले जाइए। कोई रोके तो वहीं छोड़ दीजिगा।”
“यार, बुकनु में क्या है। ये तो एक तरह का नमक ही है।”
“पार हो जाए तो ठीक नहीं तो कस्टम वालों को चखा दीजिएगा, इट इज इंडियन साल्ट।”
मेरा बहुत मन था कि शंभू जी विदेश जाएं। अपने अमेरिका प्रवास में मैंने उन्हें बहुत बार अमेरिका बुलाया था। पर आदमी की बहुत सी चाहतें संतान के हाथों पूरी होती हैं। जब आप ये पोस्ट पढ़ रहे होंगे, शंभू जी एयर कैनडा की उड़ान में सवार होंगे। करीब अठारह घंटे की उड़ान के बाद वो कैनेडा के आसमान में होंगे। अब देखना ये है कि शंभू जी कैनेडा से हमारे लिए क्या लेकर आते हैं? पहले तो लोग विदेश जाते थे तो कैलकुलेटर, डिजिटल डायरी, महिलाओं के लिए लिपस्टिक, परफ्यूम, बड़े लोगों के लिए स्कॉच, वाइन लेकर आते थे। अब नवंबर का इंतज़ार है अपने दत्तक पिता के आगमन पर सीधे एयरपोर्ट पर मिलने का। अगर कोई अपना विदेश से आए तो एयरपोर्ट पर धावा बोलना चाहिए क्योंकि गिफ्ट पहले आओ, पहले पाओ वाले हड़प लेते हैं। शंभू जी कानपुर के रहने वाले हैं। कानपुर टू कनाडा की दूरी 10804 किलोमीटर है। इतनी लंबी दूरी में दामाद के लिए मिठाई और बुकनु ले गए हैं। देखना ये है कि उतनी ही दूरी तय कर नवंबर में बेटा के लिए क्या आ रहा है?
पापाजी, इंतज़ार रहेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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