काटे चाटे स्वान के दोऊ भांति समान

महेश चंद्र द्विवेदी

मुझे कुत्तों से कोई लगाव नहीं है और मैं उनसे बचकर चलता हूँ। मैं इस राज़ का पर्दाफ़ाश करने से भी गुरेज़ नहीं करूंगा कि मुझे कुतियों से भी कोई उन्सियत नहीं है और मैं उनसे भी दूर रहता हूँ। मैं रहीम का कायल हूँ, जो सदियों पूर्व लिख गये हैं ‘रहिमन ओछे नरन सों बैर भलो न प्रीत, काटे चाटे स्वान के दोऊ भांति विपरीत’। एक बार मेरे बेटे की ज़िद पर उसकी माँ ने एक पोमेरेनियन पिल्ला पाल लिया था, तो मैंने उसे कभी मकान के बाहरी बरामदे से अंदर नहीं आने दिया था और उसका नाम रख दिया था ‘चाऊ-माऊ’ अर्थात चाऊ-एन-लाई और माओ-त्ज़े-दुंग का ख़तरनाक सम्मिषण। वह भी यथा नाम तथा गुण निकला और अक्सर लोगों को छुपकर काट लेता था। फिर जब मैं इंग्लैंड जाकर वहां साल भर रहा तब मैंने देखा कि अधिकतर अंग्रेज़ अपने घरों में कुत्ता पालते हैं। पति-पत्नी में मनमुटाव के कारण अथवा दोनों में किसी को खर्राटे आने के कारण अथवा अपनी स्वच्छंदता में खलल न पड़ने देने की नियत से चाहे वे दोनां अलग-अलग कमरे में सोयें, परंतु अपने कुत्ते को अपने साथ कमरे में (और अक्सर अपने पलंग पर) ही लिटाते हैं। फिर सुबह-सुबह जागने पर सर्वप्रथम उससे अपना मुंह चटवाकर अपरिमित आनंद को प्राप्त होते हैं। अंग्रेज़ सुंदरियां अपने बच्चे की पीठ में पट्टा बांधकर पैदल चलाते हुए और अपने कुत्ते को अपनी गोद में लिये हुए शान से टहलती हुई जगह-जगह दिखाई देती हैं। मेरा एक मित्र उन्हें देखकर अक्सर आह भरते हुए कहने लगता था, ‘काश मैं हिंदुस्तान में आदमी पैदा होने के बजाय इंग्लैंड में कुत्ता पैदा हुआ होता!’ अंग्रेज़ों के कुत्ता-प्रेम के समक्ष अपनी कुत्ता-वितृष्णा का विचार कर मुझे स्वयं में हीनभाव अनुभव होने लगा था। परंतु लखनऊ वापस लौटने पर कुत्तों को दुरदुराते रहने की अपनी बुद्धिमत्ता का भान मुझे तब हुआ, जब मैंने अखबार में पढ़ा कि लखनऊ में एक पिटबुल नस्ल के कुत्ते ने अपनी मालकिन को काट लिया है। अखबार में यह समाचार जितनी जगह में छपा था, उससे कहीं अधिक जगह में उस पिटबुल की फोटो छपी थी। इससे उस पिटबुल को बड़ी प्रसिद्धि मिली थी। उसकी यह हिमाकत कुछ वैसी ही थी जैसे कुछ वर्ष पहले मीका ने एक पार्टी के दौरान राखी सावंत को खींचकर ज़ोरदार चुम्बन ले लिया था। अंतर बस इतना था कि कुत्ते वाली घटना में मालकिन के बजाय पिटबुल को अधिक ख्याति मिली थी, जबकि मीका वाली घटना में सारी ख्याति राखी सावंत ने हथिया ली थी।
कानपुर के एक पिटबुल ने जब यह समाचार टीवी में देखा, तो वह यह सोचकर हीनभाव से ग्रस्त हो गया कि मैं तो आज तक मालिक पर ज़ोर से भौंका भी नहीं हूँ और यह लखनौआ पिटबुल मेरे से इतना आगे निकल गया है। अतः उसने टहलाने के दौरान मालिक की टांग पर हमला बोल दिया। इस पिटबुल की तस्वीरें भी छपीं और इसको भी ख़ूब ख्याति मिली। इससे उत्साहित होकर अन्य कुत्तों में भी काटो प्रतियोगिता प्रारम्भ हो गई और कुत्तों ने ‘काटो अभियान’ चला दिया। अब कभी एक कुत्ता लिफ़्ट में किसी बच्चे को काट लेता है तो दूसरा पड़ोसी पर झपट पड़ता है और यदि आदमी न मिला तो गाय-बैल पर ही हमलावर हो जाता है। कुछ कटखने कुत्तों ने ‘कुत्ता गैंग’ भी बना लिये हैं और वे किसी आदमी को अकेला पाकर एक साथ हमला बोल देते है। इन कुत्तों में से कुछ की अवश्य ऊंची राजनैतिक पहुंच होगी जिसके कारण पुलिस ने आज तक किसी कुत्ता-गैंग पर गैंगेस्टर नहीं लगाया है। मैं भी कुत्तों के इस ‘काटो अभियान’ से अछूता नहीं रह पाया हूँ। हुआ ये कि एक दिन मैं अपने मित्र के साथ पार्क में टहल रहा था, तो एक देशी कुत्ता मेरे निकट आने लगा। मैंने उसे दुरदुरा दिया, जिस पर उसे अपनी बड़ी बेइज़्ज़ती महसूस हुई और वह मुझे काटने के इरादे से झपट पड़ा। चूंकि मैं कुत्तों से चौकन्ना रहता हूँ, अतः मैं तो हट गया, परंतु मेरे मित्र की टांग कुत्ते के मुंह के रास्ते में आ गयी। ग़नीमत यह हुई कि कुत्ता अपने दांत गड़ा पाता, उसके पहले ही मित्र ने टांग झटक कर छुड़ा ली। कुत्ता के दांत तो नहीं गड़े, पर उसकी लार टांग में लग गई। हम जानते हैं कि कुत्ता काटे की मौत सबसे दयनीय मौत होती है। अतः हम एहतियातन कुत्तों के डाक्टर के पास चले गये। उसने कहा कि पूरे इंजेक्शन लगवाइये। इस पर मैंने कहा कि क्या कुछ कम से काम नहीं चलेगा, क्योंकि कोई दांत तो गड़ा नहीं है, बस टांग में लार लग गई थी, जिसे तुरंत पोंछ दिया गया था। डाक्टर भी रहीम का पक्का चेला निकला। वह बोल पड़ा कि पूरे लगवाइये, एक भी कम नहीं क्योंकि ‘काटे चाटे स्वान के दोऊ भांति समान।’
(लेखक उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रहे हैं।)

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