कर्बला के 72 शहीदों की याद में मनाए जाने वाला मोहर्रम का चांद रविवार को दिखने के बाद इसका आगाज़ हो गया।
रोहित कुमार गुप्ता उतरौला (बलरामपुर)
कर्बला के 72 शहीदों की याद में मनाए जाने वाला मोहर्रम का चांद रविवार को दिखने के बाद इसका आगाज़ हो गया। आठ जुलाई सोमवार मोहर्रम की पहली तारीख शुरू हो गई। मोहर्रम कमेटी के जनरल सेक्रेटरी डॉ आरिफ रिज़वी ने बताया कि माहे मोहर्रम तैयारियां पूरी हों चुकीं हैं। इमामबाड़ा व घरों में साफ-सफाई का काम मुकम्मल हो चुका है। मोहर्रम क्षेत्र के कस्बा उतरौला, अमया देवरिया, रेहरामाफी, रैगांवा सादुल्लाह नगर मीरपुर, पचपेड़वा, तुलसीपुर व बलरामपुर सहित अन्य इलाकों में पूरी अकीदत के साथ मनाया जाता। नौ मोहर्रम की रात इमाम हुसैन के रौजे की नकल ताजिया को घरों के चौक व इमामबाड़ा में रखकर फातिहा दिलाने की परंपरा है। 10 मोहर्रम की शाम ताजिया को कर्बला में दफन किया जाता है। उतरौला व आसपास क्षेत्रों के घरों व इमामबाड़ा में बड़े व छोटे ताजिया बांस व कागज से बनाकर तैयार किए जा रहे हैं। डॉ आरिफ ने बताया कि बकरीद माह के 30वीं तारीख रविवार की शाम मोहर्रम का चांद निकलेगा। जिसे देखते ही लोग गमजदा हो जाते है। उसी रात से इमामबाड़ा व घरों में मजलिस का दौर शुरू होकर 10 वीं मोहर्रम तक चलता है। उन्होंने बताया कि नौवीं तारीख की शाम को कस्बा सहित अन्य गांवों में ताजिया रखने के बाद 10वीं तारीख को मजलिस के बाद अलम का मातमी जुलूस निकाला जाता है। कहा कि गम का यह महीना पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम व उनके 71 साथियों की हक के रास्ते पर चलकर मिली अजीम शहादत, पूरी दुनिया में मशहूर हैं। इसलिए हम लोग शांति एकता व भाईचारे के साथ सरकारी निर्देशानुसार मनाएं ताकि किसी को कोई असुविधा न होने पाए। उतरौला तहसील व आसपास के क्षेत्र में बड़े शानो शौकत के साथ शिया सुन्नी समुदाय के लोग मिलजुल कर माहे मोहर्रम का एहतमाम करते हैं। उतरौला में पहली मोहर्रम से लेकर 10 मोहर्रम तक 26 से ज्यादा इमामबाड़ों में फजर नमाज के बाद से देर रात तक मजलिसों का सिलसिला जारी रहता है और अजादारी की जाती है। शिया सुन्नी समुदाय के साथ-साथ हिंदू भाइयों को भी ताजिया में बड़ी आस्था है। रानीपुर, बदलपुर, गैड़ास बुजुर्ग, गायडीह, हुसैनाबाद, इटईरामपुर जैसे गांव में हिंदू मुस्लिम मिलकर इमाम हुसैन की याद में आलीशान ताजिया रखते हैं। मोहर्रम से पहले शहर में साफ सफाई इमामबाड़ों की पुताई का कार्य अपने अंतिम पड़ाव पर है। उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन की याद में पूरी दुनिया में लोग बगैर मजहब मिल्लत में फर्क के अकीदत के साथ जारी रखते हैं। इमाम हुसैन और उनके परिवार की याद में जगह-जगह मुस्लिमों के अलावा हिंदू भाई भी पानी की सबील नियाज़ फातिहा आदि करते है। उतरौला में इस वर्ष मौलाना सिबते हैदर, मौलाना मोहम्मद अली, मौलाना फिदा हुसैन के अलावा बाहरी उलेमा भी मजलिस को खिताब ताब करेंगे। देश विदेश में रहकर काम करने वाले लोग भी मोहर्रम में अपने वतन आकर इमाम हुसैन की अज़ादारी करते हैं।
डॉक्टर आरिफ ने नगरपालिका, बिजली विभाग व शासन प्रशासन से सहयोग की मांग भी की है।