कण्डुआ निगल सकता है धान की फसल, किसान कैसे बचाएं फसल

पूर्वांचल एवं तराई इलाके में धान की फसलों में तेजी से लगता है कण्डुआ

फंफूद जनित है यह वायरस, इसे कहते हैं ”यूकटीलेजिनो आडिया वायरस”

भदोही(हि.स.)। धान की फसल में मिथ्या यानी कण्डुआ रोग किसानों की मेहनत पर पानी फेर सकता है। फसल में अब बालियां आगई हैं और निकल भी रहीं हैं। इसी दौरान इस रोग का प्रकोप होता है, लेकिन किसान फंफूद नाशक दवाओं का प्रयोग कर कण्डुआ रोग से फसल का बचाव कर सकते हैं।

क्या है मिथ्या यानी कण्डुआ रोग

जिला कृषि अधिकारी ने बताया कि धान की फसलों में मिथ्या कण्डुआ का प्रकोप बेहद प्रचलित है यह फंफूद जनित रोग है। पूर्वांचल में इसे किसान गंडो रोग के नाम से भी जानते हैं। इस फंफूद जनित वायरस को ”यूकटीलेजिनो आडिया वायरस” कहते हैं। इस रोग का प्राथमिक स्रोत प्राइमरी सोर्स आफ इनोक्यलूम्स मृदा है। जबकि वैकल्पित स्रोत अल्टरनेटिव सोर्स प्रकोपित बीज है।

कैसे करें कण्डुआ रोग की पहचान

धान में जब बालियां निकलती हैं तभी इस रोग का प्रकोप परिलक्षित होता है। यह रोग फसलों में हवा द्वारा फैलता है। मुख्यतः इस रोग का फैलाव पुष्पावस्था में होता है। प्रकोप के पश्चात धान की बाली के दाने पीले और काले रंग के आवरण से ढक जाते है, जिनको हाथ से छूने पर हाथ में पीले, काले अथवा हरे रंग जैसे होते हैं। कभी-कभी इस रोग के लक्षण वाले बाली के कुछ की दानों पर दिखाई पड़ते है।

उन्होंने यह भी बताया कि उच्च सापेक्षित अर्द्रता 90 प्रतिशत से अधिक के साथ 25-35 सेन्टीग्रेट तापमान तथा पुष्पावस्था के दौरान छिटपुट वर्षा इस रोग के प्रकोप की अनुकूल दशायें है। इसके साथ ही अत्यधिक नाइट्रोजन युक्त उर्वरको का प्रयोग इस रोग के फैलाव में सहायक है। पुष्पावस्था के दौरान हवाओ के चलने से इस रोग के स्पोर का फैलाव तेजी से होता है।

उन्होंने बताया कि प्रदेश का तराई एवं पूर्वांचल क्षेत्र इस रोग से ज्यादा प्रभावित होता है। इसके तेजी से फैलाव के दृष्टिगत प्रदेश के समस्त धान उत्पादित क्षेत्रों में इस रोग के प्रकोप की सम्भावना है।

कण्डुआ रोग से बचाव के उपाय

जिलाकृषि ने बताया कि खेत की मेड़ो और सिंचाई की नालियों को खरपतवारों से मुक्त रखें, ताकि रोग के कारक को आश्रय न मिल सके। धान की अगैती एवं पछैती प्रजातियां इस रोग से कम प्रभावित रहती है। मध्यम अवधि की प्रजातियां इस रोग के प्रति अधिक संवेदनशील है। यूरिया का संतुलित एवं खण्डों में प्रयोग करें।फसल की नियमित निगरानी करनी चाहिए। प्रकोप की सम्भावना के दृष्टिगत ”स्यूडोमोनास फ्लोरिसेंस” 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से 15-20 दिन के अन्तराल पर सुरक्षात्मक छिड़काव करना चाहिए। रोग के लक्षण दिखाई देने पर संस्तुत फंफूदनाशकों का प्रयोग अच्छा रहेगा।

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