एनकाउंटर पर सवाल क्यों ?
प्रभुनाथ शुक्ल
उत्तर प्रदेश में अपराधियों के खिलाफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति ने अतीक जैसे माफिया को घुटनों के बल आने पर मजबूर कर दिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि पूरे देश में एक अलग तरह के तटस्थ शासक के रूप में उभरी है। अपराधियों में मुख्यमंत्री की इस नीति को लेकर खौफ है। अब किसी भी घटना को अंजाम देने से पहले अपराधी और दंगाई 100 बार सोचने लगे है। यही कारण है कि रामनवमी जैसे पवित्र दिवस पर पश्चिम बंगाल, बिहार और दूसरे राज्यों में आगजनी और हिंसा हुईं की घटनाएं हुईं, लेकिन उत्तर प्रदेश में इस तरह की कोई वारदात नहीं हुई। योगी की कार्यशैली को लेकर पूरे देश में सियासी बहस छिड़ी है। माफिया अतीक के बेटे असद और शूटर गुलाम के एनकाउंटर पर ओवैसी और अखिलेश यादव धर्म और मजहब का तड़का लगा रहे हैं। निश्चित रूप से सवाल उठाना विपक्ष का राजनीतिक धर्म है। लेकिन अपराध और माफिया को राजनीतिक संरक्षण देना कहां की नीति है। धर्म और जाति को हम वोट बैंक का सहारा कब तक बनाएंगे।
प्रयागराज में बसपा विधायक रहे राजूपाल की हत्या के चश्मदीद गवाह उमेश पाल की फरवरी के अंतिम सप्ताह में हत्या कर दी गई। हत्या के बाद पूरे प्रदेश में सियासी माहौल गर्म हो गया। योगी सरकार पर लोग सवाल उठाने लगे। प्रदेश को माफिया मुक्त करने के दावे को हास्यापद बताया गया। कहा गया कि अतीक जैसे माफिया जेल में होने के बाद भी खुली सड़क पर निर्दोष लोगों की हत्या कर रहे हैं। पुलिस को भी निशाना बनाया जा रहा है। इस घटना में निर्दोष गनर भी हत्या के शिकार हुए। सरकार को बुलडोजर नीति और अपराध मुक्त प्रदेश को लेकर कठघरे में खड़ा किया जाने लगा।
इस घटना को मुख्यमंत्री योगी ने बेहद गंभीरता से लिया। उन्होंने विधानसभा में ऐलान किया कि अपराधियों को मिट्टी में मिला देंगे। जब अतीक जैसे माफिया के खिलाफ सरकार एक्शन मोड में आ गई तो विपक्ष फिर वोट बैंक के डर से धर्म और मजहब की आड़ लेने लगा। उमेशपाल की हत्या पर जो समाजवादी पार्टी घड़ियाली आंसू बहा रहीं थी वहीं अतीक के खिलाफ कार्रवाई पर सियासी राग अलापने लगी। योगी की एनकाउंटर नीति पर सवाल उठाने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि क्या उत्तर प्रदेश में कानून और संविधान को खत्म कर देना चाहिए। ओवैसी सवाल उठा रहे हैं कि संविधान और कानून का क्या मतलब है। फिर अदालत और जज जैसे पद को खत्म कर दिया जाना चाहिए।
2017 के बाद से उत्तर प्रदेश में 10713 से भी अधिक एनकाउंटर हुए हैं। पूरे देश में उत्तर प्रदेश शायद इस तरह का इकलौता प्रदेश है। एनकाउंटर में 183 से अधिक अपराधियों का सफाया हुआ। मेरठ पुलिस ने सबसे अधिक 3152 एनकाउंटर किए हैं। कुछ कथित समाजशात्री कहते हैं कि एनकाउंटर किसी समस्या का समाधान नहीं है। पर यह समाजशास्त्री अपराध और अपराधियों के राजनीतिक संरक्षणवादी नीति पर बिलकुल नहीं बोलते।
सवाल यह भी उठता है कि ओवैसी को उस दौरान मजहब क्यों नहीं दिखता। उस दौरान संविधान की याद क्यों नहीं आती। उस दौरान मजहब कहां चला जाता है जब हैदराबाद में एक डॉक्टर बेटी से बलात्कार होता है। बाद में आरोपितों का एनकाउंटर कर दिया जाता है। उत्तर प्रदेश में 40 साल तक अतीक अहमद ने कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखाया है। हजारों लोगों की जिंदगी वह तबाह कर चुका है। राजूपाल की हत्या के बाद खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए चश्मदीद गवाह उमेशपाल की प्रयागराज में हत्या करवा दी जाती है। अखिलेश और ओवैसी से पूछा जा सकता है कि उमेश और राजूपाल की हत्या के समय उन्होंने सवाल क्यों नहीं उठाया। उस समय उनका धर्म और मजहब क्यों नहीं जागा। संविधान और न्याय की बात कहां चली गई।
इस बीच खुलासा हो रहा है कि उसके संबंध माफिया डॉन अबू सलेम और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई एवं लश्कर-ए-तैयबा से भी हैं। वैसे इस पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी। यह जांच का विषय है। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि अतीक के अपराध का साम्राज्य बहुत बड़ा था। उससे लोग डरते थे। योगी सरकार के पूर्व प्रदेश में जितनी भी सरकारें रहीं सभी ने माफिया को संरक्षण दिया। कई को माननीय बनवाया। सवाल उठाने सवाल उठाते रहें पर सबसे बड़ा सच यह है कि योगी सरकार की अपराधियों के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति से आम लोग खुश हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)