उप्र में पंचायत चुनाव को लेकर सियासी दल चले गांवों की ओर

लखनऊ (हि.स.)। उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत के चुनाव मार्च के अंतिम सप्ताह में आयोजित हो सकते हैं। इसके मद्देनजर सतारुढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समेत सभी राजनीतिक दलों ने इस समय गांवों का रुख कर लिया है। भाजपा नेता गांव-गांव घूमकर किसानों को नये कृषि कानूनों का लाभ बता रहे हैं तो विपक्षी इससे होने वाले नुकसान को बताने में जुटे हैं।

प्रदेश में 25 दिसम्बर आधी रात से गांवों की सरकारें समाप्त हो गई हैं। ग्राम प्रधानों की प्रधानी चली गई। ग्राम पंचायतों का कामकाज सहायक विकास अधिकारियों (एडीओ) के जिम्मे डाल दिया गया है। योगी सरकार 31 मार्च तक त्रिस्तरीय पंचायतों के चुनाव की तैयारी में है। राज्य निर्वाचन आयोग भी चुनाव की तैयारियों में जुटा हुआ है। 
ऐसे में सियासी दलों ने गांवों में अपनी गोट बिछानी शुरू कर दी है। चुनावी चक्रव्यूह को रचने के लिए भाजपा ने सबसे पहले कमर कस ली है। पार्टी नेतृत्व ने जिला स्तरीय पदाधिकारियों का गांवों में प्रवास सुनिश्चित कर दिया है। चुंकि इस समय नये कृषि कानूनों को लेकर जगह-जगह आंदोलन चल रहे हैं। इसलिए भाजपा नेता गांववालों को कृषि कानूनों की बारीकियां और उससे किसानों को होने वाले फायदे भी गिना रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से लेकर पार्टी के बड़े नेता और सरकार के मंत्री तक सभी विकास खंड स्तर पर किसान सम्मेलनों का आयोजन भी कर रहे हैं।  
उधर प्रदेश की प्रमुख विपक्षी समाजवादी पार्टी (सपा) ग्रामीण स्तर पर चौपालों के सहारे किसानों को यह बताने में लगी है कि नये कृषि कानून किसानों के एकदम खिलाफ है। पिछले पंचायत चुनाव में प्रदेश के अंदर सपा का शासन था और पार्टी ने अधिकतर जिला पंचायतों पर अपना कब्जा किया था। ऐसे में इस बार सपा को अपना वर्चस्व बनाये रखने की चुनौती भी है। इसके लिए पार्टी ने विधानसभा वार अपने संगठन को भी मजबूत करना प्रारम्भ कर दिया है।
सपा की तरह बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और कांग्रेस ने भी गांवों में अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती का 15 जनवरी को जन्मदिन है। पार्टी इसके बाद पंचायत चुनाव को लेकर अपनी गतिविधियां और तेज करेगी। 
उधर, कांग्रेस पिछले कई चुनावों में भारी शिकश्त खाने के बाद भी पंचायत चुनावों में सफलता की उम्मीद जागाए तैयारी में जुटी है। इसके लिए पार्टी ने जिलेवार बैठकें भी शुरु कर दी है। दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (आप) और शिवसेना भी पंचायत चुनाव में जोर आजमाने की कोशिश में है। 
हालांकि इन दोनों दलों का उप्र में सांगठनिक ढांचा उतना मजबूत नहीं है लेकिन पंचायत चुनाव के बहाने अपने शक्ति प्रर्दशन के लिए ये भी तैयारी में जुट गए हैं। शिवसेना की प्रदेश इकाई ने तो सोमवार को राजधानी लखनऊ में बैठक करके पंचायत चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों से आवेदन भी मांगा है। पार्टी पंचायत चुनाव को लेकर प्रदेश भर में प्रभारी भी नियुक्त करने जा रही है। 
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में 25 दिसम्बर की आधी रात के बाद ग्राम प्रधानों का कार्यकाल समाप्त हो गया। उनके सारे अधिकार छीन लिए गए। राज्य में 25 दिसम्बर से पहले पंचायतों के चुनाव हो जाने थे। लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते चुनाव की तैयारियां नहीं हो सकीं। ऐसे में चुनाव होने तक गांवों में एडीओ प्रशासक के रूप में नियुक्त किए गए हैं। 
प्रदेश की योगी सरकार त्रिस्तरीय पंचायत यानी ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के चुनाव 31 मार्च तक कराने की तैयारी में है। पंचायती राज विभाग जनवरी के अंतिम सप्ताह से फरवरी के प्रथम सप्ताह के बीच चुनाव के संबंध में संभावित कार्यक्रम देने पर विचार कर रहा है। राज्य निर्वाचन आयोग भी चुनाव की तैयारी में जुटा हुआ है। आयोग ने अधिकारियों को 22 जनवरी तक मतदाताओं की सूची तैयार कर लेने का निर्देश भी दिया है। 
दरअसल प्रदेश में नगरीय सीमा का विस्तार होने से ग्राम पंचायतों और क्षेत्र पंचायतों की संख्या में कमी आई है। सरकार द्वारा इनके पुनर्गठन के लिए परिसीमन का काम शुरू किया गया है। उम्मीद है कि यह कार्य 15 जनवरी तक पूरा हो जाएगा। परिसीमन के साथ जनवरी माह में ही आरक्षण का काम भी समाप्त करने की योजना है। इस तरह परिसीमन और आरक्षण का कार्य पूरा होते ही राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव की अधिसूचना जारी कर देगा। अप्रैल में बोर्ड की परीक्षाएं भी हैं। ऐसे में चुनाव की तिथियां परीक्षा को ध्यान में रखते हुए निर्धारित की जाएंगी। 
पंचायतीराज विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि प्रदेश के 98 ग्राम प्रधानों के अधिकार अभी समाप्त नहीं हुए हैं। वे अपने पद पर अभी बरकरार रहेंगे। इन ग्राम पंचायतों में प्रशासक भी नियुक्त नहीं किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि गौतमबुद्धनगर जनपद के 88 और गोंडा के दस गांवों में पंचायत चुनाव देर से हुए थे। ऐसे में इन 98 प्रधानों के कार्यकाल अभी समाप्त नहीं हुए हैं। प्रदेश में कुल 58758 ग्राम पंचायतें, 821 क्षेत्र पंचायतें और 75 जिला पंचायतें हैं। 

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