उप्र उपचुनाव : कई मुद्दों पर लगनी है मुहर, यदि नहीं मिली कामयाबी तो प्रदेश सरकार में दिखेंगे कई परिवर्तन
-यदि भाजपा अधिकांश सीटों पर नहीं हो पाई काबिज तो सरकार कर सकती है रणनीति में बदलाव
-कई जगहों पर भाजपा के लिए अपने ही बने हैं घातक, वहीं दूसरी ओर कार्यकर्ताओं में है काफी उत्साह
– विपक्ष कानून व्यवस्था पर सरकार को घेरने में जुटा
लखनऊ (हि.स.)। उत्तर प्रदेश में विधानसभा की सात सीटों पर हो रहे उपचुनाव के परिणाम आगामी 2022 के विधान सभा चुनाव के लिए बहुत कुछ संदेश देने वाला है। इस चुनाव में यह तय हो जाएगा कि भाजपा द्वारा हाल में किये गये संविधान संशोधन तीन तलाक कानून, अनुच्छेद 370 के साथ ही राम मंदिर के मुद्दे पर आम जन की मुहर लगती है अथवा जनता इसे नकार देती है।
इसके साथ ही उप्र सरकार व केन्द्र सरकार द्वारा किसानों के हित में किये गये अनेकों कार्यों पर भी मुहर लगने की परीक्षा है। इधर विपक्ष भी कानून व्यवस्था पर सरकार को घेरने में जुटा है। लेकिन फिलहाल सरकार विपक्ष को मौका गवाएं बगैर घेरने में कामयाब हो रही है। यदि इस सात विधानसभा सीटों के उप चुनाव में भाजपा के अनुकुल परिणाम नहीं आये तो आने वाले दिनों में प्रदेश सरकार द्वारा अपनी रणनीति में बदलाव किए जाने के भी आसार बढ़ जाएंगे।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा की सात सीटों पर उपचुनाव की प्रक्रिया जारी है। इन सात सीटों में केवल मल्हनी सीट को छोड़कर सभी सीटें भाजपा के पाले में रही हैं। इस कारण भी भाजपा के लिए सभी सीटों पर काबिज होना उसके लिए चुनौती है। इस समय प्रदेश में कोरोना संकट, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की तैयारी और हाथरस कांड के बाद होने जा रहे उपचुनाव पर सबकी निगाहें टिकी हैं। इस चुनाव के नतीजों से मतदाताओं का रूख पता चलेगा। इससे यह भी पता चलेगा कि आम जन अभी भाजपा के कार्यों से संतुष्ट है अथवा नहीं। भाजपा ने दो सीटों पर दिवंगत नेताओं की पत्नियों को भी उतारकर सहानुभूति लेने की कोशिश की है। भाजपा ने सभी सीटों के लिए अपने कार्यकर्ताओं और दो दिवंगत नेताओं की पत्नियों को मैदान में उतार कर इमोशनल कार्ड खेलने की कोशिश की है। सभी सीटों पर अलग-अलग समीकरण काम कर रहे हैं।
पारस नाथ की सीट बचाना सपा के लिए चुनौती
जौनपुर जिले की मल्हनी सीट सपा के दिग्गज नेता पारस नाथ यादव के निधन के कारण खाली हुई है। इसको बरकरार रखने के लिए सपा ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। इधर भाजपा ने भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रनेता मनोज सिंह को उतारकर युवा वर्ग को लुभाने की कोशिश की है। उधर धनन्जय सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े होकर मनोज सिंह के वोट में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह के अनुसार इस चुनाव में इस बात की तकरीर होगी कि क्षत्रिय अपना नेता योगी आदित्यनाथ को मानते हैं अथवा नहीं। वहीं बसपा ने जयप्रकाश दुबे और कांग्रेस ने राकेश मिश्र को मैदान में उतारकर ब्राह्मणों को रिझाने की कोशिश की है।
जेल में कैद कुलदीप सिंह सेंगर की सीट पर त्रिकोणीय संघर्ष
उन्नाव की बांगरमऊ सीट भाजपा से विधायक रहे कुलदीप सिंह सेंगर की सदस्यता जाने के कारण खाली हुई है। कुलदीप सिंह सेंगर इन दिनों जेल में हैं। उन पर दुराचार व हत्या का मुकदमा चल रहा है। भाजपा ने यहां से उन्नाव के पूर्व जिलाअध्यक्ष श्रीकांत कटियार को उतारा है। समाजवादी पार्टी ने सुरेश कुमार पाल और बसपा ने महेश प्रसाद को टिकट दिया है। इस सीट पर तीनों दलों में त्रिकोणीय संघर्ष है। भाजपा अपने बूथ कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कोशिश कर रही है।
सुरक्षित सीट पर प्रेमपाल धनगर को भाजपा ने उतारा है मैदान में
फिरोजाबाद की टूंडला सुरक्षित सीट योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री एसपी सिंह बघेल के सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई है। काफी दिनों से खाली इस सीट पर भाजपा ने प्रेमपाल धनगर को मैदान में उतारा है। इनके सामने सपा के महराज सिंह धनगर चुनाव मैदान में हैं। बसपा ने संजीव कुमार चक को और कांग्रेस ने यहां से स्नेहलता को प्रत्याशी बनाया है। इस सीट पर एसपी सिंह बघेल का वर्चस्व माना जाता है।
मंत्री कमलरानी के निधन से खाली हुई घाटमपुर सीट
घाटमपुर सुरक्षित सीट योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री कमलरानी वरुण के कोरोना के कारण दिवंगत होने से खाली हुई है। भाजपा ने यहां से कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र में अनुसूचित मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र पासवान प्रत्याशी बनाया है। सपा ने 2017 के चुनाव में इंद्रजीत कोरी पर दांव खेला है। बसपा ने कुलदीप कुमार संखवार को और कांग्रेस ने कृपा शंकर को टिकट दिया है। यहां त्रिकोणीय मुकाबले के बीच कृपा शंकर भी अपनी साख जमाने की कोशिश कर रहे हैं।
जन्मेजय के बेटे ने बगावत कर भाजपा के लिए रास्ता किया कठिन
देवरिया सदर विधानसभा सीट भाजपा के विधायक रहे जन्मेजय सिंह के निधन के कारण खाली हुई है। यहां पर सभी दलों ने ब्राह्मण प्रत्याशियों पर दांव खेला है। भाजपा ने सत्यप्रकाश मणि को टिकट दिया है। वहीं एसपी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे ब्रह्माशंकर त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया है। बसपा ने यहां से अभयनाथ त्रिपाठी, जबकि कांग्रेस ने मुकुंद भास्कर मणि त्रिपाठी को चुनाव में उतारा है। दिवंगत जन्मेजय के बेटे यहां पर बीजेपी से बगावत करके चुनाव लड़ रहे हैं। वह सियासी समीकरण में कुछ उलटफेर कर सकते हैं।
बुलंदशहर में रालोद सपा का गठबंधन ने चुनाव बनाया रोचक
भाजपा विधायक वीरेंद्र सिंह सिरोही के निधन से रिक्त हुई बुलंदशहर की सीट पर बीजेपी ने उनकी पत्नी ऊषा को प्रत्याशी बनाया है। सपा ने इस सीट पर राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन किया है। रालोद ने प्रवीण सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है। बसपा से मोहम्मद युनूस और कांग्रेस से सुशील चौधरी चुनाव लड़ रहे हैं। सपा व रालोद के गठबंधन ने चुनाव को रोचक बना दिया है।
सपा और सपा ने मुस्लिम उम्मीदवार पर जताया है भरोसा
अमरोहा की नौगावां सादात सीट पर कैबिनेट मंत्री रहे चेतन चौहान के निधन के कारण चुनाव हो रहे हैं। इस सीट पर भाजपा ने दिवंगत मंत्री चेतन चौहान की पत्नी संगीता चौहान को टिकट दिया है। इनका मुकाबला एसपी के सैय्यद जावेद अब्बास, बीएसपी के मोहम्मद फुरकान अहमद और कांग्रेस के कमलेश सिंह से है।