इलेक्ट्रिक वाहनों की मदद से वायु गुणवत्ता में होगा सुधार
निशान्त
जहां एक ओर भारत ने साल 2070 तक नेट ज़ीरो होने का अपना लक्ष्य दुनिया के सामने रखा है। वहीं इस संदर्भ में दुनिया की सबसे बड़ी उप-राष्ट्रीय इकाई, उत्तर प्रदेश, न सिर्फ राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप होने की कोशिशें कर रही है, बल्कि वह भारत की सबसे बड़ी यातायात व्यवस्था को भी प्रदूषण मुक्त करने की कवायद में सक्रिय है। भारत की तेज़ गति से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक उत्तर प्रदेश देश से सकल घरेलू उत्पाद में आठ फीसद का योगदान देता है। इसके चलते आज यह प्रदेश निवेशकों के लिए ख़ासा आकर्षक हो चुका है और जहां भारत ने अगले दो सालों में पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की महत्वाकांक्षा दिखाई है। वहीं अकेले उत्तर प्रदेश ने इसमें एक ट्रिलियन डॉलर के योगदान की घोषणा की है। यहां यह याद रखना ज़रूरी है कि अमूमन आर्थिक प्रगति, प्रकृति पर भारी पड़ती है और जिस आकार और प्रकार की आर्थिक प्रगति का लक्ष्य उत्तर प्रदेश ने अपने लिए रखा है, वह तमाम पर्यावरणीय चिंताओं को जन्म देता है। लेकिन प्रदेश में हो रहे घटनाक्रम को देखते हुए लगता है उत्तर प्रदेश ने इस समस्या से निपटने की रणनीति पहले ही बना ली है। दरअसल प्रदेश की हाल ही में जारी हुई इलेक्ट्रिक वाहन नीति पर एक नज़र डालें तो पता चलता है कि प्रदेश सरकार न सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहन इकोसिस्टम के लिए व्यापक विकास सुनिश्चित करना चाहती है, बल्कि ऐसा लगता है कि इलैक्ट्रिक वाहनों के बाज़ार कि मदद से भी प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना चाहती है। सरल शब्दों में कहें तो उत्तर प्रदेश सरकार इलैक्ट्रिक वाहनों की मदद से कार्बन उत्सर्जन को कम कर अपनी कमाई बढ़ाने की कवायद कर रही है। लेकिन ध्यान रहे कि अर्थव्यवस्था का विकास भले ही इस नीति का बोनस हो, मगर इसके केंद्र में है एक मजबूत चार्जिंग ढांचागत व्यवस्था, ग्राहकों के लिए इलैक्ट्रिक वाहनों का तेज़ी से रुख़ करने की वजहें, और प्रदेश में इन वाहनों के उत्पादन को बढ़ावा देना।
इस पॉलिसी पर टिप्पणी करते हुए क्लाइमेट ट्रेंड्स संस्था में एलेक्ट्रिक मोबिलिटी एक्सपेर्ट अर्चित फुरसूले कहते हैं, “उत्तर प्रदेश की ईवी नीति इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा देने और उत्सर्जन को कम करने के लिए जिस तरह की प्रतिबद्धता दिखाती है, वह काबिल-ए-तारीफ है। राज्य ने न केवल राष्ट्रीय नेट ज़ीरो लक्ष्यों के साथ अपना तालमेल बैठाया है, बल्कि ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश सरकार इस नीति की मदद से एक ऐसा इलेक्ट्रिक मोबिलिटी इकोसिस्टम बनाना चाहती है जो प्लस वन ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य में खास योगदान भी दे। ध्यान रहे कि इस इलैक्ट्रिक वाहन नीति का लक्ष्य सीधे तौर पर प्रदेश में 30,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश को आकर्षित करना है। अर्चित आगे बताते हैं, “जिस जज़्बे और रणनीति से यूपी में ईवी निर्माण को बढ़ावा देने के लिए इस नीति में ध्यान दिया गया है उससे प्रदेश में निवेश आना तय है। साथ ही, इसके चलते ऐसा अनुमान है कि राज्य में 1 मिलियन के करीब प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार भी पैदा होंगे। इस पैमाने पर रोजगार सृजित होने का सीधा मतलब अर्थव्यवस्था का विकास होना है। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि यह नीति यूपी की अर्थव्यवस्था के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती है।“ अर्चित की बात को आगे ले जाते हुए, द एनर्जी कंपनी के सीईओ, राहुल लांबा कहते हैं, “इस नीति ने लोगों के लिए पेट्रोल/डीज़ल कि गाड़ियों को छोड़ बैट्री गाड़ियों का रुख़ करना आसान और सस्ता कर दिया है। साथ ही, बैट्री स्वेपिंग स्टेशनों के लिए सब्सिडी और इस सबसिडी को 100 स्टेशन प्रति सेवा प्रदाता तक सीमित कर सरकार ने एक शानदार पहल की है। ऐसा करने से न सिर्फ बाज़ार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी बल्कि बाज़ार का आकार भी बढ़ेगा। इस नीति में पुरानी बैट्री के फिर से प्रयोग और उससे जुड़ी सब्सिडी के बारे में थोड़ी और स्पष्टता दी जा सकती थी, लेकिन बावजूद इसके, यह एक स्वागत योग्य नीति है जिसकी मदद से न सिर्फ ईवी इकोसिस्टम का आकार बढ़ेगा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी शानदार विकास का मौका मिलेगा।“ वर्ड मोबिलिटी के बिजनेस डेवलपमेंट एक्जीक्यूटिव हर्ष वर्मा को लगता है यह नीति सबका साथ सबका विकास के मंत्र के साथ व्यापार को आसान बनाने पर भी केन्द्रित है। हर्ष कहते हैं, “भारत में ईवी इकोसिस्टम तेज गति से बढ़ रहा है, मगर ध्यान रहे कि भारत एक बेहद बड़ा बाज़ार पहले से ही है। इस नीति के संदर्भ में अच्छी बात ये है कि इसमें बाज़ार के आकार को ध्यान में रखते हुए एक साथ कई व्यापारियों को बाज़ार में आने का मौका देने पर ज़ोर है। खास तौर से चार्जिंग के क्षेत्र में यह बात व्यापार की नज़र से ख़ासी महत्वपूर्ण है। और यह न केवल उपभोक्ता के लिए अच्छा है, बल्कि यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बहुत फायदा पहुंचाएगा।“
यूपी ईवी पॉलिसी में क्या है ख़ास?
अपने इस वृहद स्वरूप और उससे जुड़ी व्यावहारिक चुनौतियों के बावजूद उत्तर प्रदेश भारत का एकमात्र राज्य है जिसने अपनी ईवी नीति में, इस संदर्भ में, राष्ट्रीय उद्देश्य के साथ तालमेल बैठाया है। यूपी की ईवी नीति सिर्फ़ शहरी क्षेत्रों तक सीमित नहीं। यह गांव और पंचायत स्तर पर भी संसाधनों के उपयोग और बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देने की बात करती है। देश में किसी भी राज्य ने बैटरी स्वैपिंग स्टेशन स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन नहीं दिया है। यूपी ने पहले 1,000 स्वैपिंग स्टेशनों के लिए पांच लाख रुपये तक की 20 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान करके एक उदाहरण स्थापित किया है। यूपी ओपन एक्सेस चार्जिंग/स्वैपिंग स्टेशनों को बढ़ावा देता है, जो अन्य चीजों के अलावा रीयल-टाइम चार्जिंग इन्फ्रा-उपलब्धता डेटा देखने में मदद करेगा। इस नीति ने इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने को बढ़ावा देने के लिए उपभोक्ताओं के लिए सीधे तौर पर मौद्रिक लाभ पेश किया है। यहाँ इलैक्ट्रिक वाहन अपनाने को बढ़ावा देने के लिए रेट्रोफिटिंग को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। दिल्ली के बाद, यूपी दूसरा राज्य है जहां सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों की रेट्रोफिटिंग को बढ़ावा दिया जाएगा। नई नीति की प्रभावी अवधि के पहले तीन वर्षों के दौरान इलैक्ट्रिक वाहन के सभी प्रकारों की खरीद पर रोड टैक्स और पंजीकरण शुल्क में 100 फीसद छूट मिलेगी। यदि ईवी का निर्माण राज्य में ही किया गया है तो वही छूट चौथे और पांचवें वर्ष में भी उपलब्ध होगी। शुरुआती प्रोत्साहन के रूप में ख़रीदारों को डीलरों के माध्यम से इस सब्सिडी योजना का फायदा नीति अधिसूचना की तारीख से एक वर्ष की अवधि में निम्नलिखित दर से प्रदान किया जायगा :
क) टू व्हीलर : अधिकतम 100 करोड़ का बजट और अधिकतम 2 लाख गाड़ियों तक सीमित। एक्स-फैक्ट्री लागत का 15 फीसद या अधिकतम रु 5000 की सबसिडी।
ख) थ्री व्हीलर : अधिकतम 60 करोड़ रुपये का बजट और 50000 गाड़ियों तक सीमित। एक्स-फैक्ट्री लागत का 15 फीसद या अधिकतम रु 12000 की सब्सिडी।
ग) फोर व्हीलरः अधिकतम 250 करोड़ रुपये का बजट और 25000 गाड़ियों तक सीमित। एक्स-फैक्ट्री लागत का 15 फीसद या रुपए एक लाख की अधिकतम सब्सिडी।
अब तक, राज्य सड़क परिवहन विभागों के लिए ई-बसों को बड़े पैमाने पर सब्सिडी दी जाती थी, लेकिन यूपी निजी खरीदारों के लिए भी वित्तीय प्रोत्साहन को बढ़ावा देने और प्रदान करने में अग्रणी राज्य है। ई-बसें (गैर-सरकारी, यानी स्कूल बसें, एम्बुलेंस, आदि)ः 80 करोड़ से अधिकतम बजट और 400 गाड़ियों तक सीमित। एक्स-फैक्ट्री लागत के 15 फीसद प्रति वाहन रु 20 लाख तक की अधिकतम सब्सिडी। ई-गुड्स कैरियर्सः अधिकतम बजट 10 करोड़ रुपये और 1000 ई-गुड्स कैरियर तक सीमित। एक्स-फैक्ट्री लागत के 10 फीसद और 1,00,000 रुपये तक सीमित। बैटरी की अदला-बदली को बढ़ावा देने और ईवी खरीदने की लागत को कम करने के लिए, बिना बैटरी पैक वाले वाहन को चुनने वाले खरीदार को सब्सिडी का 50 प्रतिशत मिलेगा।
आपूर्ति बढ़ाने के कदम
इलैक्ट्रिक वाहनों के इकोसिस्टेम के आपूर्ति पक्ष को एक बड़ा बढ़ावा देते हुए, राज्य में निवेश पर 30 प्रतिशत की दर से पूंजीगत सब्सिडी दी जाएगी। यह सब्सिडी अधिकतम 1,000 करोड़ रुपये प्रति परियोजना होगी और प्रदेश में 1,500 करोड़ रुपये या उससे अधिक का निवेश कर एक गीगावॉट की न्यूनतम उत्पादन क्षमता वाली पहली दो अल्ट्रा-मेगा बैटरी परियोजनाओं के लिए मिलेगी। इस नीति में राज्य में कहीं भी एकीकृत इलैक्ट्रिक वाहन परियोजना और अल्ट्रा मेगा बैटरी परियोजना सुविधाएं स्थापित करने के लिए निर्माताओं को 100 प्रतिशत तक की दर से स्टांप शुल्क में प्रतिपूर्ति की बात की गयी है। यह प्रतिपूर्ति पूर्वांचल और बुंदेलखंड क्षेत्र में मेगा, लार्ज, एमएसएमई परियोजनाओं के लिए स्टांप शुल्क में 100 प्रतिशत की दर से मिलेगी, मध्यांचल और पश्चिमांचल (गाजियाबाद और गौतम बौद्ध नगर जिले को छोड़कर) में 75 प्रतिशत और गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर जिले में 50 प्रतिशत मिलेगी। ग्रोस केपेसिटी युटिलाइज़ेशन मल्टीपल की शुरूआत से इस नीति के लाभार्थियों द्वारा स्थापित क्षमता का सबसे बढ़िया उपयोग सुनिश्चित होगा। निवेशकों के लिए अपेक्षाकृत सहज और सिंगल विंडो अनुभव के लिए, प्रदेश में इस वर्टिकल में व्यवसाय स्थापित करने से संबंधित हर चीज के लिए सिंगल विंडो के रूप में प्रस्तुत किया गया है। नीति राज्य में ईवी/ईवी बैटरी के लिए अनुसंधान एवं विकास और परीक्षण सुविधाओं को विकसित करने के लिए ओईएम को प्रोत्साहित करने की बात करती है। यूपी ने सीईएमपी नाम से एक व्यापक इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्लान पेश किया है और इसे लखनऊ से शुरू किया जाएगा और बाद में इसका विस्तार 17 शहरों में होगा। इस योजना के हिस्से के रूप में, शहरों के लिए ग्रीन मोबिलिटी के लिए स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किए जाएंगे और 2030 तक 100 फीसद सार्वजनिक परिवहन इलैक्ट्रिक वाहनों से सुनिश्चित किया जाएगा। यूपी ने सरकारी बेड़े के लिए इलेक्ट्रिक वाहन रखना अनिवार्य कर दिया है। इस संदर्भ में किसी भी राज्य ने कोई समय सीमा नहीं दी है, लेकिन यूपी इस संदर्भ में साफ लक्ष्य सामने रखे हैं। नीति में राज्य सरकार के कर्मचारियों को इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने के लिए आर्थिक रूप से प्रोत्साहित करने की बात भी है। ईवी अपनाने की सफलता और गति के लिए जागरूकता महत्वपूर्ण है। यूपी ने अपनी ईवी नीति में इसे शामिल किया है और जागरूकता अभियान चलाने और उसकी निगरानी करने के लिए 12 सदस्यीय समिति का भी गठन किया है।
भारत को अपने जलवायु लक्ष्य अगर हासिल करने हैं तो उसमें उत्तर प्रदेश की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रहेगी। औद्योगीकरण के मामले में भले ही यह प्रदेश पीछे हो, मगर कुल जनसंख्या के मामले में यहाँ देश की लगभग बीस फीसद जनता रहती है। अधिक जनता मतलब हर तरह की मांग और उपभोग उसी अनुपात में। बात परिवहन की करें तो भारत का परिवहन क्षेत्र कुल राष्ट्रीय ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में लगभग 10 प्रतिशत का योगदान करता है। इसमें अकेले सड़क परिवहन का योगदान लगभग 87 प्रतिशत है। ऐसी परिस्थिति में परिवहन क्षेत्र में एलेक्ट्रिक वाहनों की आमद प्रदूषण नियंत्रण में बहुत बढ़िया नतीजे सामने ला सकती हैं। इस संदर्भ में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा देश की जलवायु और उससे जुड़ी नीतियों के साथ तालमेल बैठना एक स्वागत योग्य पहल है। ऐसा प्रतीत होता है कि अगर प्रदेश में यह नीति सही रूप से लागू होती है तो देश कि जलवायु कार्यवाही कि दशा और दिशा बेहद सकारात्मक हो सकती है।
(लेखक सोसियो-पॉलिटिकल एनालिस्ट और क्लाइमेट साइंस कम्युनिकेटर के रूप में सक्रिय हैं।)
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जानकी शरण द्विवेदी