आलू की फसल में झुलसा रोग से बचाव के लिए तैयार रहें किसान : राम बटुक सिंह

कानपुर(हि.स.)। सर्दी के मौसम में अनुकूलता के आधार पर आलू की फसल में भविष्य में पिछेती झुलसा रोग आने की संभावना है। ऐसे में किसान भाइयों को फसल को सुरक्षित करने के लिए पहले से तैयार रहना है। यह जानकारी रविवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के सब्जी अनुभाग के अध्यक्ष डॉक्टर राम बटुक सिंह ने दी।

उन्होंने बताया कि इस समय मौसम में अनुकूलता के आधार पर आलू की फसल में पिछेती झुलसा भविष्य में आने की संभावना है। किसान फसल की निगरानी करते रहें। झुलसा के लक्षण दिखने पर तुरंत इसका प्रबंध करें।

आलू विशेषज्ञ डॉ. अजय कुमार यादव ने बताया कि जिन किसान भाइयों ने आलू के फसल में अभी तक फफूंद नाशक दवा का छिड़काव नहीं किया है या जिनकी आलू की फसल में अभी पिछेती झुलसा( लेट ब्लाइट ) बीमारी प्रकट नहीं हुई है, ऐसे सभी किसान मेंकोजेब या प्रोपिनेब फफूंद नाशक दवा का 2.5 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी की दर से अर्थात 2.5 किलोग्राम दवा 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव तुरंत करें।

इसके साथ ही साथ जिन आलू के खेतों में बीमारी प्रकट हो चुकी है, उनमें किसी भी फफूंद नाशक जैसे खाई मोक्सेनिल मेंकोजेब 3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (1000 लीटर पानी में) की दर से अथवा फेमनिडों मेंकोजेब 3.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (1000 लीटर पानी में ) की दर से अथवा 1.0 किलोग्राम प्लस मेकैनिज्म 2.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 1000 लीटर पानी के दर से छिड़काव करें। 10 दिन के अंतराल पर दोहराएं लेकिन बीमारी की तीव्रता के आधार पर अवधि अंतराल को कम या अधिक किया जा सकता है। किसान भाइयों को इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि एक ही फफूंद नाशक का बार-बार प्रयोग न करें।

राम बहादुर/दिलीप

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