आजाद की जांबाजी से प्रेरित होकर अंग्रेज अफसर ने शव को दी थी सलामी : कुलपति

कानपुर(हि.स.)। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में रविवार को महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की पुण्यतिथि मनाई गई।

इस अवसर पर कुलपति डॉ डीआर सिंह ने बताया कि देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की आज पुण्यतिथि है। डॉक्टर सिंह ने बताया कि 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों से लड़ते हुए वे शहीद हो गए थे।

कुलपति ने कहा कि दरअसल आजाद अल्फ्रेड पार्क में भगत सिंह को जेल से निकालने समेत कई महत्वपूर्ण विषयों पर अपने साथियों के साथ बैठकर चर्चा कर रहे थे। लेकिन तभी उन्हें पता चला कि अंग्रेजों ने पार्क को चारों तरफ से घेर लिया है। आजाद ने अकेले ही अंग्रेजों का मुकाबला करते हुए अपने साथियों को पार्क से बाहर निकाल दिया है जिससे देश की आजादी के लिए बनाई गई योजनाओं पर प्रभाव न पड़े। उनकी रिवाल्वर में जब आखरी गोली बची तो उन्होंने अंग्रेजों के हाथों के बजाय खुद के जीवन को खत्म करना उचित समझा।

कुलपति ने कहा कि अंग्रेज आजाद का नाम बहुत सम्मान के साथ लिया करते हैं। उन्होंने बताया कि आजाद के शहीद होने के बाद भी अंग्रेजों में इतना साहस नहीं था कि वे आजाद की शरीर के पास भी जा सकते। अंग्रेज अफसर आजाद की जांबाजी से प्रेरित होकर अपनी टोपी उतार कर आजाद के शव को सलामी दी थी।

अजय

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