आंसुओं ने बयां किया, जेल है, पांच सितारा होटल नहीं!

के. विक्रम राव

टेनिस दिग्गज बोरिस बेकर पिछले, बृहस्पतिवार (15 दिसंबर 2022), को वैंडसर (लंदन) जेल में रो दिए। आंसुओं का कारण? यह अरबपति खिलाड़ी बोला, “पहली बार जेल में जाकर ही मैंने जाना भूख क्या होती है?’ आठ माह यह जर्मन खिलाड़ी इस जेल में रहा, जहां से विंबलडन केवल सवा मील है। इसी स्टेडियम में वे तीन बार शीर्ष पदक जीते थे। गृहनगर बर्लिन भेजे जाने की राह में बेकर ने जर्मन प्रसारक (एस. ए. टीवी) से कहा, “मुझे खाने मे केवल चावल, चटनी और आलू मिलते थे।” तीन बार के विश्व चैंपियन रहे बेकर द्वारा अपने को दिवालिया घोषित किए जाने के बावजूद अवैध रूप से बड़ी मात्रा में धन हस्तांतरित करने और संपत्ति छिपाने के आरोप में उन्हें गत अप्रैल में जेल की सजा सुनाई गई थी। तुलना कीजिए इस विश्व-विख्यात खिलाड़ी की दिल्ली सरकार के जेल मंत्री सत्येंद्र जैन से! तिहाड़ जेल में कैद इस जेल मंत्री के दो वीडियो आए हैं। इनमें वे मसाज कराते नजर आ रहे थे। दूसरे में फल और ड्राई फ्रूट्स के अलावा बाहर का खाना भी खाते। दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने इस मसाज वाले वीडियो पर ट्वीट कर लिखा, “आप ने कानून की क्या खूब धज्जियां उड़ाई! देखिए कैसे हवाला मामले में लंबे अरसे से बंद सत्येंद्र जैन तिहाड़ जेल से अपने गुर्गों के साथ मौज कर रहे हैं। बड़े आराम से पांव दबवा रहे हैं।” मंत्री सत्येंद्र जैन को तिहाड़ जेल में मौज करते देखकर निजी तौर पर मुझे बड़ा रश्क हो आया। हदस (डाह) नहीं, सिर्फ खीझ! भारत में पांच जेलों और हिरासत में तेरह माह (1975 आपातकाल) में गुजार कर मुझे ऐसा लगना वस्तुतः स्वभाविक ही है। बड़ौदा जेल में मुझे नाश्ते में चना और गुड़ मिलता था। चींटी को गुड़ और चिड़िया को चना खिला देता था। तन्हा कोठरी में और कोर्ट ले जाते वक्त हथकड़ी पहनाते थे। वाजिब था, क्योंकि जॉर्ज फर्नांडिस, मैं और 23 अन्य साथी डायनामाइट षडयंत्र केस में कांग्रेसी सत्ता के खूंखार शत्रु करार दिए गए थे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण का चंडीगढ़ जेल मे तो यकृत (लिवर) ही सड़ा दिया गया था। ताउम्र डायलिसिस पर रहे। ब्रिटिश गुलामी के राज में तो कस्तूरबा गांधी (1944) यरवदा जेल में ही यातना से मर गईं थीं। आजादी से लाभ यह हुआ कि अब जेल में राजनीतिक कैदियों को कोड़ों से नहीं मारा जाता जो गुलाम भारत के कारागारों में रिवाज था। वाह! क्या सुख मिला माफिया विधायक मियां मोहम्मद मुख्तार अहमद अंसारी को! बांदा जेल में ट्रांसफर करते वक्त उनके बैरेक से खजूर, कीवी फल, मुर्गी की अस्थियाँ आदि मिले थे। रोपड़ (कांग्रेस शासित) जेल में तो मुख्तार मियां की चांदी थी। रसोईया अलग था। योगी सरकार की जद्दोजहद के बाद मुख्तार को रोपड़ से बांदा जेल लाया गया था। जेलों के किस्से में एक अजूबा भी हुआ था। तब (1967) यूपी सरकार दिल्ली के तिहाड़ जेल से चली थी। लखनऊ सचिवालय से वित्त विभाग की फाइलें लेकर अधिकारीजन तिहाड़ जेल जाते थें जहाँ मंत्री जी उसे पढ़ते थें। टिप्पणी लिखते थे। आदेश देते थें। मगर ये मंत्री कोई जरायम पेशेवाले नहीं थें। खांटी लोहियावादी सोशलिस्ट थें जो हिन्दी समर्थक आन्दोलन में सत्याग्रह करने दिल्ली गये थें। रामस्वरूप वर्मा और उनके साथ दूसरे मंत्री श्रमिक पुरोधा प्रभु नारायण सिंह थें।
याद आई बड़ौदा जेल की सौ वर्गफीट की तन्हा कोठरी। दो लौह फाटकों से बंद। सवा सौ साल पूर्व फांसी के सजायाफ्ता कैदियों हेतु बनी इसी इमारत के अड़तीस नम्बर की कोठरी में मेरा अड़तीसवाँ जन्मदिन गुजरा था, बिलकुल एकाकी। हाल ही में प्रमुदित हुआ मैं बड़ौदा यात्रा पर जब जेल अध्यक्ष विष्णु पटेल ने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री मोदी ने इन कोठरियों को, जिन्हें अँधेरी कहते थे, तोड़कर विस्तृत बैरक बनाने का आदेश दिया था। इतिहास ही मिटा दिया था। अमानवीयता के प्रतीक भी ख़त्म हो गए थे। यहीं बालुई जमीन पर क्यारियां बनाकर हम सात कैदियों ने तुलसी की खेती लगाई थी। श्याम भी, हरित भी। नाम जप में रत हो जाने से अकेलापन कट जाता था। मगर समाचारपत्र नहीं मिलते थे। जल बिन मछली की भांति मेरा गति थी। पत्रकार बिन अख़बारों के! जेल अधीक्षक मोहम्मद मलिक (खुदा के नेक बन्दे) से मैंने अपना दुखड़ा गाया। उन्हे तरस आयी तो सप्ताह बाद से दैनिकों का बंडल मिलने लगा। अचरज मधुर था। मगर रहस्य उजागर हुआ 39 वर्षों बाद, मंगलवार, 11 अक्टूबर 2016 के दिन, लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर। तब दिल्ली के विज्ञान भवन में इमरजेंसी में नजरबंद रहे कुछ लोगों (लोकतंत्र-प्रहरी) का सम्मान हुआ। उस वक्त के काबीना मंत्री और बाद में उपराष्ट्रपति बने एम. वेंकैया नायडू अध्यक्षता कर रहे थे। स्व. कल्याण सिंह (राजस्थान के राज्यपाल), ओम प्रकाश कोहली (गुजरात राज्यपाल) आदि के साथ मुझे भी मंच पर बैठाया गया था। मुख्य अतिथि ने तब मेरा उल्लेख करते हुए बताया पच्चीस वर्ष की उम्र के स्वयंसेवक के रोल में वे बड़ौदा जेल में कैदियों को मदद पहुंचाते थे। अख़बारवाली मेरी तलब को सुनकर वे मुझे जेल में बण्डल पहुंचाते थे। इस मुख्य अतिथि का नाम नरेंद्र दामोदरदास मोदी। संदर्भ फिर बोरिस बेकर की क्षुधा-जनित यातना का। पढ़िये यूपी के फतेहगढ़ जिला जेल की दास्तां। यहां कैदियों को पांच-सितारा भोजन और खाना (सामिष) मिल जाता है। तंदूरी रोटी अलग से मात्र, चपाती नहीं। मगर इसके लिए यहां के कैदियों को दंगे, नारेबाजी और बवाल करना पड़ा था। दो कैदी मरे भी थे। फिर रसोई सुधरी। दही भी मिलने लगा। मगर अभी भी यूपी की जेलें लंदन के वैंडसर जेल से बेहतर नहीं है। जब दक्षिण अफ्रीका की जेल में अधीक्षक ने महात्मा गांधी से कहा था, “आप सजायाफ्ता कैदी यहां स्वास्थ्य लाभ हेतु नहीं आए हैं।” तब बापू ने नमक मांगा था। तभी से बापू ने नमक आजीवन छोड़ दिया। लाभ हुआ, शरीर का नहीं, मस्तिष्क का! अर्थात जेल से फायदे भी हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं आइएफडब्लूजे के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)

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