अरबी माह रज्जबुल मुरज्जब की 27 वीं रात यानी बुधवार रात बड़ी फजीलत वाली रात रही
रोहित कुमार गुप्ता
बलरामपुर। अरबी माह रज्जबुल मुरज्जब की 27 वीं रात यानी बुधवार रात बड़ी फजीलत वाली रात रही। जिसे शब-ए-मेराज कहा जाता है। इस रात मुसलमानों ने रातभर जागकर घरों व मस्जिदों में अल्लाह की इबादत में मशगूल रहे। कुरान शरीफ का तिलावत किया।
उतरौला के अता ए रसूल जामा मस्जिद में आयोजित शबीना में तलबा मोहम्मद फैज, नायाब अली, शान ए आलम, मोहम्मद आसिफ रज़ा, शकील अहमद, अब्दुल मजीद ने एक बैठक में मुंह जबानी मुकम्मल कुराने पाक पढ़कर सुनाया। इन सभी तलबा को 20 फरवरी को आयोजित होने वाली दस्तारबंदी में प्रबंधक अबुल हसन खान द्वारा 5100-5100 रुपए नकद देकर पुरस्कृत किया जाएगा।
जामिया अली हसन अहले सुन्नत के मौलाना एजाज रज़ा हशमती ने शब-ए-मेराज की फजीलत, अहमियत पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि अल्लाह ने अपने सबसे प्यारे नबी हजरत मोहम्मद (स ) को मेराज की रात अता फरमाई यानी कि पैगंबर हजरत मोहम्मद (स ) को अपने करीब आने का मौका दिया। उन्होंने कहा कि 27 रज्जब की रात अल्लाह ने अपने नबी को पास बुलाया, अपना दीदार कराया और एक बड़ा तोहफा नमाज के रूप में दिया। नबी पैगंबर हजरत मोहम्मद (स ) के मार्फत मुसलमानों पर पांच वक्त की नमाज पढ़ना फर्ज (अनिवार्य) करार दिया। इस रात नमाज का एहतमाम अधिक से अधिक करनी चाहिए और जीवन में पांच समय के नमाज को नहीं छोड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि कुफ्र और ईमान के बीच का फर्क नमाज है। अल्लाह की वहदानियत और रसूल पर इमान यानी कलमा तैयबा के बाद कोई व्यक्ति ईमान में दाखिल होता है, इसके बाद उन्हें नमाज ,रोजा ,जकात और हज जैसे फर्ज अदा करने होते हैं। इसके अलावा मां -बाप की सेवा, मानव मूल्यों के अन्य आचरण जो कि कुरान हदीस में वर्णित है, उन्हें अपने जीवन में उतारने की जरूरत है।