अयोध्या में शहीद कारसेवकों को संतों ने दी श्रद्धांजलि
मनोज तिवारी
अयोध्या। राम नगरी में राम मंदिर का निर्माण शुरू हो चुका है, लेकिन आज भी तीन दशक पूर्व 1990 की घटना शहीद कारसेवकों की याद दिला रही है। अयोध्या गोली काण्ड की बरसी पर दिगंबर अखाड़ा में आयोजित एक कार्यक्रम में साधु संतों ने आंदोलन में शहीद कारसेवकों को श्रद्धांजलि दी। उल्लेखनीय है कि 30 अक्टूबर व दो नवम्बर के दिन अयोध्या पहुंचे बड़ी संख्या में कारसेवकों ने भगवान श्री राम के मंदिर को आजादी दिलाने के लिए विवादित ढांचे पर चढ़कर भगवा ध्वज फहराया था। इसके बाद मुलायम सिंह यादव की सरकार ने कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया था, जिसमें कई कारसेवकों को गोली मारी गई थी। आज भी अयोध्या कि वह गलियां शहीद कारसेवकों की याद दिलाती हैं। रामजन्मभूमि से लगभग 500 मीटर दूर हनुमानगढ़ी चौराहे से लालकोठी जाने वाले मार्ग को 1990 की घटना के बाद कारसेवकों की याद में शहीद मार्ग कहा जाने लगा। वहीं इन शहीदों को लेकर दिगंबर अखाड़ा में शहीदों के स्मारक चिन्ह भी स्थापित किया गया। जिस पर प्रत्येक वर्ष राम भक्त इन कार सेवकों को दो नवंबर के दिन श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। आज भी कोरोना को लेकर जारी एडवाइजरी के तहत सीमित संख्या में साधु संतों ने श्रद्धांजलि दी। इस दौरान मंच पर राघवाचार्य, दिगंबर अखाड़ा के महंत सुरेश दास, दंतधावन कुंड के महंत नारायणाचारी, बड़ा भक्त महल के महंत अवधेश दास, हिंदू नेता मनीष पांडे, विहिप प्रवक्ता शरद शर्मा मुख्य रूप से मौजूद रहे।
दिगंबर अखाड़ा के महंत सुरेश दास ने बताया कि जिंदगी संग्राम है। लड़ना तो पड़ेगा और जो लड़ नहीं सकेगा वह आगे बढ़ नहीं सकेगा। भिक्षा मांगने से कोई काम नहीं होता। संग्राम किया तो भारत को स्वतंत्र कराया। राम जन्मभूमि के लिए संग्राम हुआ तो आज मंदिर का निर्माण होने जा रहा है। संग्राम में अनेकों कारसेवकों ने अपना बलिदान दिया है। प्रवक्ता शरद शर्मा ने बताया कि 30 अक्टूबर व 2 नवंबर की घटना अयोध्या के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखी गई है। यह गली जिस प्रकार से रक्त रंजित हुई, उसे हम कभी भी भुला नहीं सकते। यहां पर आने वाली जगदीश भारती, रामसेवक कारसेवक थे। उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी है। 30 अक्टूबर और दो नवम्बर की घटना अगर अयोध्या में नहीं होती तो छह दिसंबर की घटना कभी नहीं हो पाती और न ही आज मंदिर निर्माण का कार्य भी शुरू हो पाता।