अगले जन्म मोहे पतला ही कीजो….
ज्ञान सिंह
आज हमें अपने गांव के भूधर मिसिर बहुत याद आ रहे हैं। नाम तो उनका ऐसा था जैसे वह धरती को स्वयं धारण किये हों, पर हक़ीक़त में यह धरा ही उन्हें किसी तरह धारण किये रहती थी। महाकाय मिसिर जी का वजन लगभग 130 किलो का था और जब वह किसी तरह अपने को सँभाल कर चलाते थे तो रामायण की इस चौपाई की याद बरबस ही आ जाती थी ‘नाथ भूधराकार शरीरा, कुंभकर्ण आवत रणधीरा।’ गाँव में किसी के दरवाज़े जब वह जाते थे, तो लोग उन्हें तख्त या चबूतरे पर ही बैठाना बेहतर समझते थे क्योंकि समान्य प्रकार की कुर्सियाँ उनके आकार को अपने में समा नहीं पाती थीं और वह भूतकाल में 20-22 दुर्बल कुर्सियों का प्राणांत कर पर्याप्त आतंक क़ायम कर चुके थे। दूर-दूर तक ‘भोजन भट्ट‘ के रूप में उनकी ख्याति फैली हुई थी। बृहदाकार 40-50 पूड़ियां और अकूत मात्रा में सब्ज़ी और अन्य सामग्री उनके उदर-कक्ष में चुटकियों में लुप्त हो जाती थी, पर उनकी क्षुधा शांत होने को राज़ी नहीं होती थी। उनकी भोजन गटकने की गति का सामना बड़े-बड़े परोसने वाले शूरमा भी नहीं कर पाते थे और हथियार डाल देते थे तथा प्रायः एक-आध घंटे के विश्राम की ज़रूरत उन्हें आन पड़ती थी। शादी ब्याह और अन्य समारोहों में लोग उन्हें बुलाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे क्योंकि 20-25 बारातियों का भोजन वह अकेले समाप्त कर देने की सामर्थ्य रखते थे। यद्यपि वह स्वभाव से बहुत अच्छे इंसान थे, पर अपनी विशाल काया और विपुल भोजन की प्रवृत्ति के चलते उन्हें कई बीमारियाँ घर कर गई थी और वह असमय ही इस धरा को बेरौनक़ कर कूच कर गये। लगभग एक दर्जन शव यात्री महाकाय मिसिर जी को शमशान घाट तक ले जा पाए और उनके सुपुर्दे-खाक हो जाने पर पूरे गाँव ने अंतिम रूप से चैन की साँस ली।
भूदेव मिसिर तो बेचारे चले गये पर वह अपनी विरासत छोड़ने से नहीं चूके। आज पूरा देश मोटापे की महामारी की चपेट में है और यह एक राष्ट्रीय समस्या का रूप ले चुकी है। ऐसा लगता है कि मोटे लोगों ने इस कृशकाय देश को धर दबोचा है। हालात यह बन गये हैं कि छरहरे बदन व सुन्दर देहदृष्टि वाले लोगों का अकाल सा पड़ गया लगता है। जैसे-जैसे देश तरक़्क़ी कर रहा है, मोटापा भी दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहा है और देश के विकास में स्पीड-ब्रेकर का काम कर रहा है। एक एक महाकायी चार-चार व्यक्तियों का भोजन, कपड़ा, स्पेस और अन्य ज़रूरी चीजें अकेले ख़त्म करने पर उतारू हो गया है। अनेक बार ऐसी भी ख़बरें आयी हैं कि किसी अति पुष्ट पत्नी के दुर्घटना बस गिर जाने से क्रशकाय पति का असमय ही निधन हो गया अथवा किसी पत्नी का ऐसी ही मिलती जुलती परिस्थिति मे अस्पतालीकरण कराये जाने की आवश्यकता पड़ गई। सरकार को इस विकट समस्या का संज्ञान तत्काल लेने की आवश्यकता है। मेरे दिमाग़ में कुछ सुझाव खुदबुदा रहे हैं जिन्हें सरकार चाहे तो आज़मा सकती है। सार्वजनिक वाहनों ट्रेन, बस, मेट्रो और हवाई जहाज़ आदि में भार के अनुसार किराये की वसूली बहुत कारगर तरीक़ा हो सकता है। इसी तरह इनकम टैक्स की तर्ज़ पर ऐसे अर्ह नागरिकों पर अलग से ‘बोझ टैक्स‘ लगाने पर भी सरकार विचार कर सकती है जो बिना उचित कारण के अपना वजन 65 किलो से ज़्यादा बनाये हुए हैं। इसके लिए भी एक उचित स्लैब बनाया जा सकता है। इस बोझ टैक्स से सरकार का वित्तीय बोझ भी कम होगा। जनहित में सरकार मोटापा निवारण योजना भी चला सकती है, जिसमें मोटे लोगों के आहार की राशनिंग कर दी जाये और उन्हें निर्जन सड़कों पर प्रतिदिन सात-आठ किलोमीटर दौड़ाया जाय। मोटे लोगों को दिन के समय सार्वजनिक जगहों पर निकलने पर रोक लगा दी जाये ताकि दूसरे लोगों के सौन्दर्य बोध पर चोट न पहुँचे और मोटे लोग भी पतले होने पर उत्साहित और लालायित बन सकें। इसके अलावा केवल पतले व्यक्तियों को ही शादी करने की छूट दी जाये और मोटे लोग इससे वंचित बने रहे। सरकारी नौकरियों में मोटों की पदोन्नति और सालाना इन्क्रीमेंट पर रोक आदि छुटपुट उपाय भी आज़माये जा सकते हैं। राजनीतिक दल भी टिकट वितरण, मंत्री पद आदि नवाज़े जाने पर मोटे लोगों को अनफ़िट की श्रेणी में रख कर देश के प्रति अपना कर्तव्य निभा सकते हैं। शुरुआती कदम के रूप में प्रधानमंत्री जी को चाहिए कि सभी मोटे मंत्रियों की छुट्टी कर अपने मंत्रिमंडल को हल्का करने की ऐतिहासिक मिशाल कायम करें। वह किसी भी दिन अचानक रात आठ बजे इस प्रकार की राष्ट्रीय घोषणा कर पूरे राष्ट्र को गद्गद कर सकते हैं।
दोस्तों! हमारे यह सुझाव आपको कठोर और सनक भरे लग सकते हैं पर आप इन उपायों की उपयोगिता और असर पर सवाल नहीं खड़ा कर सकते हैं। जहाँ तक हमारा व्यक्तिगत प्रश्न है, तमाम कोशिश के बाद भी हमारा भार कभी भी 65 को पार नहीं कर पाया है। यदि आप लोग भी हमारे गाँव के भूधर मिसिर की दुर्गति से बचना चाहते हैं तो आज से ही देश और समाज के हित में अपना भार छाँटना शुरू कर दें। कहीं ऐसा न हो कि सरकार हमारे सुझावों को गंभीरता से ले ले और आप सभी को लेने के देने पड़ जाये। आप सभी को दीपावली की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ अपनी बात यहीं समाप्त करता हूँ।
(लेखक सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी हैं।)