हाईकोर्ट ने यूपी में हेड कान्सटेबिलों को रिवर्ट कर पीएसी में भेजने के आदेश पर लगाई रोक

प्रयागराज (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरूवार को हेड कान्सटेबिल से कान्सटेबिल पद पर रिवर्ट (पदावनत) किए गये सैकडों हेड कान्सटेबिलों की याचिका पर सुनवाई के बाद पदावनत आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। 

कोर्ट के पूर्व पारित आदेश पर आज इस याचिका की सुनवाई हुई। शासन की तरफ से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल तथा हेड कान्सटेबिलों की तरफ से सीनियर एडवोकेट विजय गौतम ने बहस की। कोर्ट में आज शासन की तरफ से लिखित में प्राप्त जानकारी दी गयी कि इन कान्सटेबिलों के पदावनत आदेश को संशोधित कर दिया गया है। 
यह आदेश जस्टिस अजय भनोट ने हेड कान्सटेबिल पारस नाथ पाण्डेय समेत सैकडों हेड कान्सटेबिलों की याचिका पर दिया है। याचिका में 9 सितम्बर 2020 व 10 सितम्बर 2020 को पारित डीआईजी स्थापना, पुलिस मुख्यालय, उप्र व अपर पुलिस महानिदेशक, पुलिस मुख्यालय उ प्र के आदेशों को चुनौती दी गयी है। इन आदेशों द्वारा प्रदेश के विभिन्न जिलों में तैनात 890 हेड कान्सटेबिलों को पदावनत कर आरक्षी बना दिया गया है और उन्हें पीएसी में स्थानांतरित कर दिया गया है। कोर्ट के कहने पर शासन से प्राप्त लिखित इन्स्ट्रक्शन को कान्सटेबिलों की तरफ से बहस कर रहे सीनियर को पिछली तिथि पर मुहैया करा दिया गया था। 
मालूम हो कि प्रदेश सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने  कोर्ट में सुनवाई की पहली  तिथि पर इस केस में कोर्ट से तीन दिन का समय मांगा था तथा कहा था कि हम शासन से इस मामले में आवश्यक जानकारी भी हासिल कर लेगें। हेड कान्सटेबिलों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम ने कोर्ट से पदावनत आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी, परन्तु कोर्ट ने कहा था कि शासन से जरूरी जानकारी आने के बाद ही वह इस मामले को सुनेगी।
याचिकाओं में मुख्य रूप से कहा गया है कि इतने वृहद स्तर पर हेड कान्सटेबिलों को पदावनत बगैर उन्हें सुनवाई का अवसर दिए करना नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्त के विपरीत है। याचियों को 20 वर्ष के बाद सिविल पुलिस से पीएसी में वापस भेजना शासनादेशों के विरूद्ध है। कोर्ट अब इन याचिकाओं पर एक माह बाद सुनवाई करेगी।

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