सच्चाई : गोण्डा के पांच वर्ष से कम उम्र के 60 प्रतिशत बच्चे बौने

गर्भावस्था से पहले दो साल तक बच्चों को मां के दूध के साथ पूरक आहार जरूरी : डा. राम लखन

जानकी शरण द्विवेदी

गोण्डा। बच्चों के लिए गर्भावस्था से लेकर दो वर्ष तक का समय उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है। इसी दौरान बच्चों के संपूर्ण स्वास्थ्य एवं उनके वृद्धि-विकास की आधारशिला तैयार होती है, जो पूरे जीवन बच्चों के काम आती है। यह कहना है एसएनसीयू (सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट) प्रभारी व नवजात शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ राम लखन का। वह बताते हैं कि पहले एक हजार दिन बच्चे के जीवन की नींव होते हैं। यह नहीं सोचना चाहिए कि बच्चा जब दुनिया में आएगा, तब ही उसके खान-पान पर ध्यान देना है। बल्कि बच्चा जिस दिन से मां के गर्भ में आता है, उसी दिन से उसका शारीरिक और मानसिक विकास होना प्रारंभ होने लगता है। उन्होंने बताया गर्भावस्था के दौरान मां को आयरन, फोलिक एसिड युक्त भोजन व संतुलित आहार का सेवन कराना चाहिए।
मुजेहना ब्लॉक की बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) अंकिता श्रीवास्तव ने गांवों में आयोजित पोषण माह के आखिरी वीएचएसएनडी सत्रों का पर्यवेक्षण किया। इस दौरान उन्होंने क्षेत्र की गर्भवती एवं धात्री महिलाओं के घर गृह-भ्रमण कर उनका और बच्चों का हाल जाना तथा उन्हें स्वस्थ एवं सुपोषित रहने की जानकारी दी। सीडीपीओ ने बताया कि प्रसव के बाद छः माह तक शिशु को केवल स्तनपान कराना चाहिए तथा छः माह के बाद बच्चे को स्तनपान के साथ कम से कम दिन में दो से तीन बार ऊपरी आहार भी कटोरी-चम्मच से खिलायें ताकि बच्चें को आदत पड़ सके। उन्होंने कहा कि शुरू-शुरू में बच्चा खाने में रूचि नहीं लेता है क्योंकि वह छः महीने से केवल दूध ही पी रहा होता है, लेकिन बार-बार और लगातार प्रयास किये जाने पर उसके आदत में बदलाव आने लगती है और खाने में बच्चे की रूचि बढ़ने लगती है। पूरक आहार न लेने से बच्चा इसी उम्र से कुपोषित होना शुरू हो जाता है द्य बच्चे को एनीमिया, विटामिन ए की कमी तथा जिंक की कमी हो सकती है। रुपईडीह ब्लॉक की सीडीपीओ नीतू रावत ने बताया कि एक शिशु के विकास के एक हजार दिनों का विभाजन शिशु के जन्म से दो साल तक के लिए होता है। इसमें 270 दिन यानी 9 महीने तक गर्भावस्थां के दौरान पोषण तथा दो साल यानी 730 दिनों के लिए विकास की विभिन्नि प्रक्रियाओं के दौरान पोषण का होता है, जिसमें हम बच्चे व मां को सही समय व सही पोषण प्रदान कर उसे एक स्वस्थ व खुशहाल जीवन दे सकते हैं। कुपोषण का एक चक्र होता है और इस चक्र को तोड़ना अत्यंत आवश्यक है। वहीं जिला पोषण विशेषज्ञ अमित त्रिपाठी ने बताया कि एक कुपोषित बच्चे में सही समय पर कुपोषण की पहचान और सही निदान बहुत महत्त्वपूर्ण है, ताकि कुपोषण से बच्चे पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को रोका जा सके और समय रहते बेहतर इलाज किया जा सके।
एनएफएचएस-4 यानी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (2015-16) के आंकड़े बताते हैं कि गोण्डा जनपद में 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 56.9 फ़ीसदी बच्चे बौने हैं यानि उम्र की तुलना काफी छोटे हैं। 9.8 फ़ीसदी बच्चे शरीर की लंबाई की तुलना में कम वजन के हैं, जो कि पोषक आहार न मिलने के कारण हो सकता है। इसके अलावा लगभग 38.6 फ़ीसदी बच्चों का वजन उनकी उम्र के अनुसार कम है। वहीं 3.5 फ़ीसदी बच्चे ऐसे हैं, जो गंभीर सूखापन से ग्रसित हैं।

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