विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (10 सितम्बर) पर विशेष – हताशा व निराशा में कोई भी गलत कदम न उठाएं : डा. साकेतनाथ

गाजियाबाद। जीवन अनमोल है। जीवन में कई तनाव हो सकते हैं लेकिन अपनों के साथ मिल बैठकर इनका हल भी निकाला जा सकता है। लॉकडाउन के चलते कितने ही लोगों के काम बंद हो गए, नौकरियां चली गईं लेकिन एक कहावत है, जान है तो जहान है। इसलिए आर्थिक संकट आने पर परेशान न हों, बल्कि अपनों से बात कर कोई हल निकालने का प्रयास करें। काम धंधों के लिए महानगरों में आकर बस गए लोगों ने वापस गाँव लौटकर नए सिरे से जिंदगी शुरू की है। लोग शुरू में इसे लेकर तनाव में थे लेकिन अपनों के बीच बैठकर जब समस्या रखी तो उसका कोई न कोई रास्ता जरूर निकला। 

जिला मानसिक स्वास्थ्य प्रकोष्ठ के साइकेट्रिस्ट कसंलटेंट डा. साकेतनाथ तिवारी कहते हैं कि संवाद बड़ा जरूरी है। अपनों के साथ बैठकर अपने मन की बात जरूर करें। जब भी हताशा-निराशा में कोई भी गलत कदम उठाने की बात दिमाग में आये तो सबसे पहले अपनों के करीब जाएँ। इन्हीं मामलों को देखते हुए हर साल 10 सितम्बर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। इसे मनाने का मकसद आत्महत्या को रोकने के लिए लोगों में जागरूकता पैदा करना। इसके जरिये यह सन्देश देने की कोशिश की जाती है कि आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोका जा सकता है  इस वर्ष वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे (विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस)  की थीम है- ”आत्महत्या रोकने को मिलकर काम करना।” नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश  में आत्महत्या की दर 2.4 प्रति लाख है। मतलब यह है कि एक लाख की आबादी पर दो लोगों से अधिक आत्महत्या करते हैं वहीं राष्ट्रीय स्तर पर यह दर 10.4 प्रति लाख है। सूबे  के मानसिक स्वास्थ्य के नोडल अधिकारी डा. सुनील पाण्डेय  ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति लंबे समय से हीन भावना से ग्रस्त है अथवा आत्महत्या करने की सोच रहा है तो वह एक मानसिक बीमारी से ग्रस्त है। मानसिक अस्वस्थता के कारण ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है , उचित परामर्श और चिकित्सा पद्धति के माध्यम से इसका उपचार किया जा सकता है। जिला एमएमजी अस्पताल में मानसिक स्वास्थ्य प्रकोष्ठ है। जहां इस तरह के लोगों को परामर्श और उपचार मिलता है। इसके अलावा टेलीफोन पर भी काउंसिलिंग की जाती है।

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