विश्वकर्मा श्रम सम्मान से मिला परंपरागत पेशे के लोगों को सम्मान
-वोकल फ़ॉर लोकल के लिए मजबूत बुनियाद बनी योजना
लखनऊ (हि. स.)। पांच साल पहले शुरू ‘विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना’ परंपरागत पेशे से जुड़े स्थानीय दस्तकारों और कारीगरों के लिए संजीवनी बन गई है। साथ ही लोकल फ़ॉर वोकल और आत्मनिर्भर भारत की मजबूत बुनियाद बन रही है। योजना के तहत अब तक करीब दो लाख श्रमिकों को प्रशिक्षण देकर उनके हुनर को निखारा गया। यह हुनर उनके काम में भी दिखे। उनके द्वारा तैयार उत्पाद कीमत एवं गुणवत्ता में बाजार में प्रतिस्पर्धी हों, इसके लिए प्रशिक्षण पाने वाले एक लाख 44 हजार 212 कारीगरों को उनकी जरूरत के अनुसार निःशुल्क उन्नत टूल किट भी दिये गए।
पांच साल में पांच लाख लोगों को मिलेगा प्रशिक्षण
अगले पांच साल में इस योजना के तहत पांच लाख लोगों को प्रशिक्षित कर उनका हुनर निखारने एवं उनको टूलकिट देने का लक्ष्य रखा गया है। जरूरत के अनुसार इनको बैंक से भी जोड़ा जाएगा। बजट में भी इसके लिए 112.50 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
बढ़ई, दर्जी, नाई, सुनार, लोहार, कुम्हार, हलवाई, मोची, राजमिस्त्री योजना के केंद्र में
योजनान्तर्गत चिन्हित परम्परागत कारीगरों, हस्तशिल्पियों का हुनर निखारने के लिए उनको हफ्ते भर का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। प्रशिक्षण के उपरान्त सभी प्रशिक्षित कारीगरों को उनकी जरूरत के अनुसार नि:शुल्क उन्नत टूलकिट्स उपलब्ध कराए जाते हैं।
प्रशिक्षित कारीगरों को अपना कारोबार बढ़ाने या इसे और बेहतर बनाने में पूंजी की कमी बाधक न बने, इसके लिए उनको प्रधानमंत्री मुद्रा योजना से लिंक करते हुए बैंकों के माध्यम से ऋण भी उपलब्ध कराया जा रहा है।
एमएसएमई विभाग के अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल ने बताया कि सबका साथ, सबका विकास के तहत इस बड़े वर्ग की बेहतरी के लिए ऐसी इनोवेटिव योजना जरूरी एवं सामयिक थी। इस योजना के जरिए सरकार परंपरागत पेशे से जुड़े लोगों का जीवन स्तर सुधार के साथ इनकी सेवाओं को भी आधुनिक बनाया जा रहा है।
दिलीप शुक्ल