वायु प्रदूषण के कारण सुबह का घूमना अब सेहत पर पड़ सकता है भारी
लखनऊ(हि.स.)। सुबह की हवा कभी अमृत के समान होती रही है इसीलिये सुबह घूमने के साथ ही प्राणायाम जैसी यौगिक अभ्यास भी सेहत के लिये लाभप्रद है लेकिन अब सुबह का घूमना सेहत पर भारी साबित पड़ सकता है।
अक्टूबर मास के शुरू होते ही उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ सहित देश के दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, कानपुर, आगरा, सिंगरौली ग्वालियर समेत अनेक बड़े शहरों की सुबह की हवा अब बहुत जहरीली हो चुकी है। इन शहरों में पीएम-10, पीएम-2.5, एनओ-2, एसओ-2, सीओ, ओ-3, एनएच-3 व पीबी की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन जरिये तय किये गये मापदंड से अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में वायु प्रदूषण के कारण हर साल 8 लाख लोगों की मौतें हो रही है। इनमें 75 फीसद से अधिक मौतें तो भात में ही हो रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र से हवा के जो नमूने मिले है उसके आधार पर कहा जा सकता है कि यह क्षेत्र आपातकालीन स्थिति में है। हर दस में से नौ लोग ऐसी हवा में सांस ले रहे है जो उनकी सेहत को सीधे तौर पर नुकसान पहुंचा रहे है।
पर्यावरणविद् डा. सुशील द्विवेदी ने बताया कि उत्तर प्रदेश में किए गए एक सर्वे के अनुसार लखनऊ के तालकटोरा ओद्योगिक क्षेत्र की हवा बहुत खराब होने का कारण हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर के साथ, कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइड्रोजन डाई ऑक्साइड, ओजोन गैसों का स्तर है। जो मौसम में बदलाव, साफ आसमान न होने (बादल) हवा के रुके रहने एवम् औद्योगिक गतिविधियों में बढ़ोत्तरी है। सप्ताह के अंत तक वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 के पार अर्थात बेहद खतरनाक स्तर पर जा सकता है।
हैल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार के अनुसार इस जहरीली हवा का बहुत खतरनाक असर आठ साल से छोटे उम्र के बच्चों, 18 साल तक के स्कूल जाने वाले बच्चों के साथ साथ 60 साल से ऊपर के वरिष्ठ जनों एवम् कोरोना संक्रमित मरीजों पर पड़ सकता है। इसके साथ साथ स्वस्थ व्यक्तियों में सांस लेने में दिक्कत, आंखों में जलन भी देखी जा सकती है। अधिक समय तक हवा खराब रहने से फेफड़ों एवम् दिल की बीमारी भी हो सकती है। दिल्ली में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण के कारण जाने वाले 10 प्रतिशत से अधिक बच्चे अस्थमा अर्थात दमा से पीड़ित हैं। यदि दमे को ठीक से नियंत्रित नहीं किया गया तो बच्चे की शारीरिक वृद्धि में बाधा आ सकती है। बच्चे के जल्दी-जल्दी स्वास्थ्य देखरेख सुविधाएं लेने की वजह से उसके कक्षा में अनुपस्थित रहने और अपने साथियों के साथ कदम से कदम नहीं मिला पाने के कारण इसका बच्चे पर मनोवैज्ञानिक असर भी पड़ सकता है।
एयर क्वालिटी इंडेक्स क्या है
एयर क्वालिटी इंडेक्स या वायु गुणवत्ता सूचकांक मुख्य रूप से 8 प्रदूशकों से मिलाकर बनाया जाता है। वायु प्रदूषण का मतलब है हवा में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय किए गए मापदंड से अधिक हैं। अन्य इंडेक्स की तरह की ही एयर क्वालिटी इंडेक्स भी हवा की गुणवत्ता को बताता है। यह बताता है कि हवा में किन गैसों की कितनी मात्रा घुली हुई है। हवा की गुणवत्ता के आधार पर इस इंडेक्स में कैटेगरी बनायी गयी हैं। जैसे अच्छी, संतोषजनक। थोड़ा प्रदूषित, खराब, बहुत खराब और गंभीर जैसे जैसे हवा की गुणवत्ता ख़राब होती जाती है। वैसे ही रैंकिंग अच्छी से ख़राब और फिर गंभीर की श्रेणी में आती जाती है। 0-50 तक का अच्छा माना जाता है। 51-100 तक संतोषजनक, 101-200 मध्यम, 201-300 खराब, 301-400 बहुत खराब और इससे ऊपर गंभीर श्रेणी में आता है। 500 के ऊपर गंभीर और आपतकाल स्थिति के लिए होता है।
क्या करें
अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या और कुछ आदतों में बदलाव लाकर हम एक बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। हालांकि, कई लोग अपने स्तर पर ऐसी छोटी-छोटी कोशिशें कर भी रहे हैं, ताकि सांस लेने के लिए हर किसी को साफ हवा मिले। इसमें कारपूल करना, वाहन को दुरुस्त रखना (ताकि वह प्रदूषण न फैलाए) आदि शामिल है।
सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों में ऑटो ईंधन नीति के अनुसार आधारित या बैटरी आधारित ई परिवहन को बढ़ावा, ओड-ईवन फॉर्मूला लागू करना, वृक्षों पर पानी छिड़कना, निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाना जिससे सीमेंट प्रदूषण कम हो सड़कों से धूल हटाना, सार्वजनिक परिवहन को मजबूत बनाना, कोयले से चलने वाली ताप बिजली परियोजनाओं का ऑपरेशन रोकना इत्यादि को शामिल किया जा सकता हैं। इसके ज्यादा पेड़ पौधे लगाने पर भी ध्यान देना होगा। कोरोना संक्रमण काल में लगाए जा रहे मास्क से न केवल से बचाव बल्कि हवा में मौजूद धूल के कणों को फेफड़ों में जाने से रोक सकते हैं, स्कूली बच्चों में जागरूकता एवम् बचाव हेतु वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने बच्चों का ‘कवच’ बनते हुए अस्थमा मैनुअल बनाया है। इस मैनुअल को देशभर के स्कूलों में लागू किया जा रहा है। अस्थमा मैनुअल का 11 भाषाओं में अनुवाद होने के साथ-साथ इसके लिए एनीमेशन फिल्म भी बनाई गई है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने लंग केयर फाउंडेशन की देखरेख में यह मैनुअल तैयार कराया है। अस्थमा मैनुअल से स्कूलों के वातावरण को पर्यावरण के अनुकूल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। दमा को लेकर स्कूलों के प्रबंधन को भी जागरूक किया जा रहा है। साथ ही इस मैनुअल को राज्य सरकार के माध्यम से लागू कराया जा रहा है।