मेरठ (हि.स.)। एक दौर में राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग करके हरित प्रदेश के निर्माण की मांग उठाई थी, लेकिन पर्याप्त समर्थन नहीं मिलने के कारण रालोद ने इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया। अब हरित प्रदेश के मुद्दे को भी राजनीतिक दल हाथ लगाने को तैयार नहीं है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की मांग कोई नई नहीं है। 1953 में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने राज्य पुनर्गठन आयोग से पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग की थी। इसके लिए 97 विधायकों ने भी अपना समर्थन दिया था। इसके बाद तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य की मांग जोर पकड़ती चली गई। 1978 में भी उत्तर प्रदेश विधानसभा में अलग राज्य का प्रस्ताव रखा गया, लेकिन पारित नहीं हो पाया।
पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग हरित प्रदेश बनाने की मांग को प्रमुखता से उठाया और इसके लिए आंदोलन भी चलाया गया। इस हरित प्रदेश में मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, बरेली, आगरा और अलीगढ़ मंडल के जनपदों को शामिल करने की मांग उठाई गई और मेरठ को राजधानी बनाने की मांग रखी गई। हरित प्रदेश की मांग को किसी अन्य दल का समर्थन नहीं मिलने के कारण रालोद ने इस मुद्दे से खुद को दूर कर लिया। अब हरित प्रदेश का नारा पूरी तरह से ठंडे बस्ते में चला गया है। अब रालोद खुद ही अपना सियासी अस्तित्व बचाने की जुगत में लगा है।
डॉ. कुलदीप/मोहित
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