राममंदिर और बदली अयोध्या के हर स्वरूप में विद्यमान रहेंगे प्रभु श्रीराम

(5 अगस्त: भूमिपूजन की दूसरी सालगिरह पर विशेष)

गिरीश पाण्डेय

पांच अगस्त 2020, अयोध्या में जन्मभूमि पर भव्यतम राममंदिर के निर्माण के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा संत समाज एवं गणमान्य लोगों की मौजूदगी में भूमि पूजन की ऐतिहासिक तारीख। इस शुभ घड़ी की देश-दुनिया के करोड़ों हिंदुओं को करीब 500 साल से प्रतीक्षा थी।

वह मंदिर जिसके लिए 1528 से लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतिम फैसला आने तक कई संघर्ष हुए। इन संघर्षों में हजारों की संख्या में साधु-संतों और रामभक्त शहीद हुए। अयोध्या के उस जन्मभूमि पर अब भव्यतम राममंदिर का स्वरूप आकार लेने लगा है। बुनियाद का काम पूरा हो चुका है। जिस युद्धस्तर पर निर्माण कार्य चल रहा है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद इसके निर्माण में रुचि ले रहे हैं। नियमित अंतराल पर इसकी प्रगति जानने अयोध्या जा रहे हैं उससे इस बात का पूरा भरोसा है कि 2024 तक इसका निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा। मालूम हो कि दोबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी का पहला दौरा अयोध्या का ही था। चंद रोज पहले भी वह अयोध्या के दौरे पर थे। हर दौरे में वह अनिवार्य रूप से रामलला के दर्शन-पूजन के साथ निर्माणाधीन स्थल का दौरा कर इस बाबत जरूरी निर्देश देते हैं।

देश-दुनिया में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की व्यापकता में कोई संदेह नहीं है, पर अयोध्या में बन रहे राममंदिर की भव्यता यकीनन उनकी स्वीकार्यता को और बढ़ाएगी। जहां तक भगवान श्रीराम के व्यापकता एवं स्वीकार्यता की बात है तो पूरे देश के लोकरंग,परंपरा, संस्कार, संस्कृति और रामलीला में वह आप्त हैं। रोम-रोम में राम और सबके राम जैसे शब्द इसके सबूत हैं। पर देश के अलग-अलग हिस्सों में उनके अलग-अलग स्वरूपों की अधिक मान्यता है। जिस हिस्से में वह जिस रूप में रहे, उसी रूप में उनकी मान्यता भी है।

मिथिला में राम पाहुन बन जाते हैं

मिथिला जहां रामचंद्र का सीता से ब्याह हुआ था। वहां उनका दूल्हा (पाहुन) स्वरूप अधिक स्वीकार्य है। मिथिला की विश्व प्रसिद्ध पेंटिंग में सीता-राम के विवाह प्रसंगों की भरमार है। यही नहीं इस क्षेत्र में लड़कियों की शादी एक ही वर से दो बार होती है। तर्क यह है कि राजा जनक की शर्त के अनुसार सीता तो राम की तभी हो गयी थीं जब उन्होंने धनुष तोड़ा था। बावजूद इसके शादी की रस्म निभाने राजा दशरथ बारात लेकर अयोध्या से जनकपुर आए थे। यहां की रामलीलाएं अक्सर सीता-राम विवाह के बाद खत्म हो जाती है।

गोरक्षपीठ के लिए सामाजिक समरसता के मानक हैं श्रीराम

गोरक्षपीठ, जिसके मौजूदा पीठाधीश्वर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, उसके लिए प्रभु श्रीराम अपने सर्वस्व खूबियों के साथ सामाजिक समरसता के भी प्रतीक हैं। वह पूरे प्रेम से शबरी के जूठी बेर खाने वाले, निषादराज को गले लगाने वाले, गीद्धराज जटायू के उद्धारक और गिरजनों की मदद से अन्याय के प्रतीक रावण को पराजित करने वाले राम हैं।

मंदिर आंदोलन की अगुआई करने वालों के शीर्षस्थ लोगों में शामिल योगी जी के गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ अपने हर प्रवचन में श्रीराम के इस उदात्त चरित्र के जरिये समाज को सामाजिक समरसता का संदेश देते रहे। अयोध्या में जब उनकी मौजूदगी में प्रतीकात्मक रूप से भूमि पूजन हुआ तो उनकी पहल पर पहली शिला रखने का अवसर कामेश्वर चौपाल को मिला। एक हरिजन से ऐसा करवाकर उन्होंने पूरे समाज को सामाजिक समरसता का संदेश दिया। राममंदिर और इसी बहाने अयोध्या का जो कायाकल्प हो रहा है, उसमें राम अपने इन सभी व्यापक स्वरूपों में मौजूद रहेंगे।

विपरीत परिस्थितियों में धैर्य की मिसाल थे राम

यूं तो अपने राम सबके लिए मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। वह राम जो तबके संपन्न राजवंश (इक्ष्वाकु वंश) में पैदा होने के बाद भी शायद ही कभी सुख देखा हो। बचपन, ऋषि-मुनियों की सुरक्षा में लगाया। ब्याह कर आए तो 14 वर्ष का वनवास मिला। वन में ही पत्नी सीता का अपहरण हुआ तो रावण से संघर्ष। ऐसा संघर्ष जिसमें वह भाई लक्ष्मण को खोते-खोते बचे। इस प्रकार प्रभु श्रीराम ने अपने पूरे जीवन काल के दौरान मानव कल्याण के लिए कार्य कर तमाम राजाओं और प्रजा को संदेश दिया। यही वजह है कि आज भी रामराज्य की कल्पना की जा रही है। राम के राज्य से बेहतर कोई राज न हुआ। आज हम सब प्रभु श्रीराम को नमन कर रहे हैं।

(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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