धर्म-कर्म डेस्क
चैत्र शुक्ल नवमी को मनाई जाने वाली रामनवमी पर इस बार पूजा के मुहूर्त को लेकर उलझन देखने को मिल रही है। पंचांग के अनुसार नवमी तिथि की शुरुआत भले ही पांच अप्रैल की शाम हो चुकी हो, लेकिन व्रत और पर्व की गणना उदया तिथि से होती है, इसलिए 6 अप्रैल को ही श्रीराम जन्मोत्सव पूरे श्रद्धा और विधि-विधान से मनाया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पूजा निर्धारित मुहूर्त में न की जाए तो इसका पुण्य प्रभाव कम हो सकता है।
रामनवमी 2025ः मुहूर्त चूकना बन सकता है अशुभ संकेत
रामनवमी की तिथि इस बार शनिवार शाम 7 बजकर 26 मिनट से प्रारंभ होकर रविवार शाम 7 बजकर 22 मिनट तक है। लेकिन उदया तिथि के आधार पर पर्व रविवार को मनाया जा रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, पूजा का शुभ मुहूर्त रविवार पूर्वाह्न 11ः08 से दोपहर 1ः29 बजे तक है। इसी दौरान श्रीराम जन्म का प्रतीकात्मक पूजन और आरती की जानी चाहिए।
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रामनवमी की पूजा विधि में लापरवाही से घट सकता है पुण्य
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रामनवमी पर भगवान राम का पूजन यदि शास्त्र सम्मत विधि से किया जाए तो जीवन में सुख, शांति और विजय की प्राप्ति होती है। सुबह स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करने के बाद घर के मंदिर या पूजन स्थल को स्वच्छ किया जाना चाहिए। इसके बाद भगवान श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान जी की मूर्ति अथवा चित्र स्थापित करें। जल, अक्षत, पुष्प लेकर व्रत का संकल्प लें। इसके पश्चात भगवान का गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं, वस्त्र व आभूषण पहनाएं और भोग लगाएं। पंजीरी, खीर, फल, मिठाई आदि का भोग अर्पित करें। धूप, दीप जलाकर भगवान के मंत्रों का जाप करें और रामचरितमानस या रामायण का पाठ करें। अंत में आरती और क्षमा याचना के साथ पूजा का समापन करें।
रामनवमी पर पंजीरी और खीर का विशेष भोग है श्रेष्ठ
रामनवमी के दिन भगवान को प्रसन्न करने के लिए विशेष तौर पर पंजीरी और खीर का भोग अर्पण किया जाता है। इन दोनों पदार्थों को शुभ और सात्विक माना गया है। इसके साथ ही फल, पंचमेवा, नारियल, मिश्री और ताजे पुष्पों का उपयोग भी पूजा में शुभ माना जाता है।
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रामनवमी के मंत्र और आरती का जप लाता है आध्यात्मिक लाभ
इस दिन भगवान श्रीराम के निम्नलिखित मंत्रों का जप करने से आध्यात्मिक उन्नति मानी जाती है..
ॐ श्रीरामाय नमः
श्री राम जय राम जय जय राम
ॐ राम ॐ राम ॐ राम ह््रीं राम ह््रीं राम श्रीं राम श्रीं राम
श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः
आरती के रूप में “श्रीरामचंद्र कृपालु भजमन…“ का गान किया जाना चाहिए, जिसे तुलसीदासजी ने लिखा था।
रामनवमी की कथा
रामनवमी की पौराणिक कथा रावण के अत्याचारों से प्रारंभ होती है। रावण ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर यह वरदान प्राप्त किया था कि उसे देवता, यक्ष, गंधर्व और दानव नहीं मार सकेंगे। अमरता का वरदान न मिलने पर ब्रह्मा जी ने उसकी नाभि में अमृत स्थापित कर दिया। इसके बाद रावण का आतंक बढ़ता गया। तब देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की। विष्णु जी ने पृथ्वी पर धर्म की पुनर्स्थापना हेतु राजा दशरथ के घर कौशल्या की कोख से श्रीराम के रूप में जन्म लिया। राम ने न केवल रावण का अंत किया, बल्कि मर्यादा, धर्म, त्याग और आदर्श का प्रतीक बनकर युगों-युगों तक पूजित हो गए।

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