रक्षा बंधन के साथ आज ही मनाया जाता है संस्कृत दिवस
डा. माधव राज द्विवेदी
आज श्रावणी पूर्णिमा का पावन पर्व है। यह पर्व रक्षा-बंधन और संस्कृत दिवस के रूप में बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। संस्कृत न केवल भारत अपितु संसार की प्राचीनतम भाषा है। विश्व का प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद इसी भाषा में है। भारतीय संस्कृति के आश्रय के रूप में आज हम संस्कृत भाषा का सम्मान के साथ स्मरण करते हैं। श्रावणी का यह पुनीत पर्व रक्षा-बंधन के रूप में मनाया जाता है। व्रतार्क के अनुसार, श्रावण मास की पूर्णिमा के अपराह्ण में रक्षाबंधन का विधान है। इस पर्व पर सूर्योदय से पूर्व उठकर देवों, ऋषियों और पितरों का तर्पण करने के पश्चात् अक्षत, तिल, धागों से युक्त रक्षा बनाकर धारण करना चाहिए। राजकुलों में यह पर्व बड़े धूम-धाम से मनाए जाने का उल्लेख है। राजा के लिए महल में एक वर्गाकार भूमि स्थल पर जलपात्र रखा जाना चाहिए। राजा को अपने मंत्रियों के साथ आसन ग्रहण कर ब्राह्मणों से आशीर्वचन ग्रहण करना चाहिए। देवों, ब्राह्मणों और अस्त्र शस्त्रों का सम्मान करना चाहिए। अन्त में राजपुरोहित को चाहिए कि वे ‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल’ मन्त्र का उच्चारण करते हुए राजा को रक्षासूत्र बांधें। इस मन्त्र का अर्थ यह है कि मैं आपको यह रक्षा बांधता हूं जिससे दानवों के राजा महाबलशाली बलि बांधे गये थे। हे रक्षा तुम यहां से मत हटो, मत हटो। सभी लोगों को यहां तक कि शूद्रों को भी यथाशक्ति पुरोहितों को प्रसन्न करके रक्षा सूत्र बंधवाना चाहिए। रक्षा सूत्र बंधन से व्यक्ति वर्ष भर प्रसन्नता के साथ रहता है। हेमाद्रि ने भविष्योत्तर पुराण का उद्धरण देते हुए लिखा है कि इन्द्राणी ने इन्द्र के दाहिने हाथ में रक्षा बांधकर उन्हें इतना योग्य बना दिया कि उन्होंने असुरों को पराजित कर दिया। जब पूर्णिमा चतुर्दशी या आने वाली प्रतिपदा से युक्त हो तो रक्षा-बंधन रात में ही कर लेना चाहिए। इस पर्व को पुरोहित लोग दाहिनी कलाई में रक्षा सूत्र बांधकर यजमान से दक्षिणा प्राप्त करते हैं। गुजरात, उत्तर प्रदेश आदि में बहनें अपने भाइयों की दाहिनी कलाई में रक्षासूत्र बांध कर भेंट प्राप्त करती हैं। श्रावण की पूर्णिमा को पश्चिमी भारत विशेषकर कोंकण एवं मालाबार में न केवल हिन्दू अपितु मुस्लिम और पारसी व्यापारी भी समुद्र तट पर जाकर वहां पुष्प और नारियल चढ़ाते हैं। समुद्र देवता को नारियल चढ़ाकर वे अपनी जहाजों की सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त करते हैं। आज संस्कृत दिवस और रक्षा बन्धन के पवित्र पर्व पर मैं सभी मित्रों एवं देशवासियों को हार्दिक बधाई देता हूं और कामना करता हूं हमारा देश सुरक्षित एवं समृद्ध रहे तथा सभी लोग स्वस्थ रहें।
(लेखक एमएलके पीजी कालेज बलरामपुर में संस्कृत विभागाध्यक्ष रहे हैं।)
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