यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के बेहतर परिणामों के लिए उचित माहौल जरूरी

संवाददाता

बहराइच। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि उचित माहौल और सही सूचनाओं व सेवाओं संबंधी गतिविधियों को मजबूत करने से ‘यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य’ परिणामों में काफी सुधार लाया जा सकता है। किशोरों और युवा वयस्कों के जीवन को समझने के लिए संस्था उदया ने वर्ष 2015-16 और 2018-19 में उत्तर प्रदेश के 10-19 वर्ष की आयु के 10,000 से अधिक किशोरों पर अध्ययन किया। इसके अनुसार सही उम्र में शादी करना, लड़कियों को उच्च शिक्षा दिलाना तथा स्कूली शिक्षा के दौरान किशोरों को गर्भनिरोधक विधियों की जानकारी देने के साथ ही अविवाहित और विवाहित किशोरों तक अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की पहुँच बनाने से किशोरों के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सकता है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ राजेश मोहन श्रीवास्तव ने बताया कि गर्भ निरोधक साधनों तक युवाओं की पहुँच बनाने के साथ ही युवा जोड़ों और उनके परिवार के साथ युवा महिलाओं की गर्भनिरोधक जरूरतों, उनके अधिकारों और परिवार नियोजन के उपलब्ध विकल्पों के बारे में बातचीत करके यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य में बेहतर सुधार किए जा सकते हैं।
पापुलेशन काउंसिल के निदेशक डॉ. निरंजन सगुरति के अनुसार उदया अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि स्कूल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और शादी में देरी का महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य और उनके परिवार नियोजन सम्बन्धी निर्णयों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अध्ययन के अनुसार अधिक उम्र की अविवाहित या नव-विवाहित किशोरियों का स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से पहला संपर्क अभी भी सीमित है। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से पहला संपर्क विवाहित किशोरियों से सीधे प्रसव के दौरान या पहले बच्चे के जन्म के बाद होता है। इससे किशोरियों को परिवार नियोजन की उचित जानकारी नहीं मिल पाती, जिससे कम उम्र में माँ बनने, बार-बार गर्भधारण करने और बाल मृत्यु जैसी समस्याओं का सामना पड़ता है। अध्ययन के अनुसार आशा कार्यकर्ता द्वारा केवल 12.5 प्रतिशत अविवाहित लड़कियों को किशोरावस्था के दौरान होने वाले शारीरिक बदलावों, 0.3 प्रतिशत को सुरक्षित यौन व्यवहार और एसटीआई/एचआईवी/एड्स तथा 3.3 प्रतिशत को गर्भनिरोधकों के बारे में जानकारी दी गई थी। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत चलाये जा रहे पीयर एजुकेटर (साथिया) कार्यक्रम के बारे में भी बहुत कम युवा जागरूक थे। केवल 2.6 प्रतिशत अविवाहित (13-17 वर्ष) लडकियों और 1 प्रतिशत लड़कों को ही इस कार्यक्रम की जानकारी थी। स्थानीय जनपद में इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों के बारे में बताते हुये राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य की नोडल अधिकारी एसीएमओ डॉ योगिता जैन ने बताया कि पियर एजुकेटर और सथियाँ केंद्र के माध्यम से किशोरों के बेहतर स्वास्थ्य की पहल की जा रही है। उन्होने बताया जनपद में अभी तक 17000 किशोरों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम से जोड़ कर उन्हे ‘यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य’ संबंधी परामर्श एवं संवेदीकरण किया जा रहा है।
अपर मिशन निदेशक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन उत्तर प्रदेश डॉक्टर हीरालाल ने अध्ययन के आंकड़ों को गंभीरता से लेते हुए कहा कि इस रिसर्च के जो नतीजे हैं, इनमें जो भी कमियां इंगित की गई हैं। उनको दूर करके इससे बचा जा सकता है और इससे जुड़े सभी लोगों को इस दिशा में प्रयास करने होंगे। सेंटर फॉर एक्सिलेंस की डॉ सुजाता देब का कहना है कि प्रजनन और यौन स्वास्थ्य को किशोर किशोरियों के साथ प्रारम्भ से ही व्यावहारिक ज्ञान के रूप मे साझा किया जाना जरूरी है, जिससे वे न सिर्फ शारीरिक विकास की अवधारणा को समझ सकें बल्कि उसके देखभाल संबंधी तकनीकी पहलू से भी परिचित हो सके। गवर्मेंट गर्ल्स इंटर कालेज की प्रिंसिपल किरन देवी का कहना है कि यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य की स्थिति को बेहतर करने के लिए किशोरावस्था में बेटे-बेटियों को ज्यादा से ज्यादा जानकारी देने की जरूरत है। अगर हम स्कूल-कालेजों में किशोर/किशोरियों को प्रजनन स्वास्थ्य से सम्बंधित जोखिमों, गर्भनिरोधकों की जानकारी व उपयोगिता के बारे में बताएंगे तो इससे उन बच्चों की जिंदगी भी बेहतर बनेगी और साथ ही देश का भविष्य भी बेहतर होगा।
वर्ष 2015-16 में 10वीं पास अविवाहित युवतियां वर्ष 2018-19 के दौरान निर्णय लेने, आत्मनिर्भरता, गतिशीलता और लिंग समानता की सोच रख्नने जैसे सूचकांकों पर बेहतर अंक प्राप्त किये। वहीं वर्ष 2015-16 में किशोर कार्यक्रमों में भाग लेने वाली लड़कियों ने भी वर्ष 2018-19 के दौरान इन सूचकांकों पर अधिक अंक प्राप्त किये। वर्ष 2015-16 में फील्ड कार्यकर्ताओं के संपर्क में रहने वाली लड़कियों ने भी इन सूचकांकों पर अधिक अंक प्राप्त किये सकारात्मक तौर पर देखा जाए तो शिक्षा के हर एक वर्ष में वृद्धि से युवा लड़कियों की यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रमों के प्रति समझ और उनके बारे में खुलकर बात करने की क्षमता में भी वृद्धि होती है। आधारभूत शिक्षा का ज्ञान रखने वाली महिलाओं में कम बच्चे, गर्भपात की कम दर, गर्भनिरोधको की बेहतर समझ और संस्थागत प्रसव अपनाने की ओर रुझान देखने को मिला है।

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