यूएन में नाकाम हो सकती है नेपाल की ‘नक्शेबाजी’ वाली चाल

इंटरनेशनल डेस्क

संयुक्त राष्ट्र। भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर तनाव बढ़ता ही जा रहा है। दोनों ही देशों का एक दूसरे पर वार-पलटवार का सिलसिला लगातार जारी है। इस बढ़ते विवाद के बीच नेपाल सरकार ने कहा है कि वह अगस्त के मध्य तक विवादित नक्शे को भारत, गूगल और संयुक्त राष्ट्र संघ में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भेजेगी। हालांकि यूएन में नेपाल की नक्शेबाजी की यह चाल कामयाब होती नहीं नजर आ रही है। दरअसल, संशोधित नक्शे में नेपाल ने भारतीय क्षेत्र लिंप्युधारा, लिपुलेख और कालापानी पर अपना दावा किया है। लेकिन नेपाल अपने इस मंसूबे में कामयाब होता नहीं दिखा रहा है। कारण कि यूएन की ओर से जारी होने वाले नक्शों में एक डिस्क्लेमर भी होता है। इस डिस्क्लेमर में साफ लिखा होता है कि इस नक्शे में उपयोग किए गए पदनाम, सीमाओं और नामों को संयुक्त राष्ट्र आधिकारिक तौर पर समर्थन या स्वीकृति नहीं देता है। ऐसे में इस डिस्क्लेमर से साफ है कि यूएन किसी भी तरह के विवादित नक्शे का प्रयोग आधिकारिक या प्रशासनिक तौर पर नहीं करेगा। इस लिहाज से नेपाल को विवादास्पद मानचित्र के मामले में संयुक्त राष्ट्र से खाली हाथ ही लौटना पड़ेगा।
बता दें कि नेपाल में केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार ने 20 मई को संशोधित राजनीतिक और प्रशासनिक मानचित्र जारी किया था। संसद द्वारा विवादास्पद मानचित्र को पारित करने के बाद सरकार अब अपने संशोधित मानचित्र को अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भेजने की तैयारी में है। इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के आठ मई को उत्तराखंड के धारचूला से लिपुलेख पास को जोड़ने वाली 80 किलोमीटर लंबी रणनीतिक सड़क का उद्घाटन करने के बाद भारत और नेपाल के बीच द्विपक्षीय संबंध में तनाव और बढ़ गया था। नेपाल ने सड़क उद्घाटन पर प्रतिक्रिया देते हुए दावा किया था कि सड़क का कार्य नेपाली क्षेत्र में किया जा रहा है। भारत ने उसके इस दावे को खारिज कर दिया था और कहा था कि सड़क पूरी तरह से उसके क्षेत्र में है।

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