महिला कृषक समूहों के माध्यम से मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ावा दे रही वैश्विक पर्यावरण सुविधा परियोजना

महिला कृषक समूहों के माध्यम से मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ावा दे रही  वैश्विक पर्यावरण सुविधा परियोजना-दीनदयाल शोध संस्थान के कृषि विज्ञान द्वारा संचालित हो रही परियोजना    चित्रकूट,24 अगस्त (हि.स.)।  ग्रामीण अथवा शहरी कोई भी क्षेत्र हो, महिलाएँ आबादी का लगभग आधा अंश होती हैं। वे परिवार, समाज, समुदाय का एक बड़ा ही सार्थक अंग हैं। जो समाज के स्वरूप को सशक्त रूप सेे प्रभावित करती हैं। महिलाएँ राष्ट्र के विकास में पुरूषों के बराबर ही महत्त्व रखती हैं। तुलसी कृषि विज्ञान केंद्र गनीवा द्वारा संचालित वैश्विक पर्यावरण सुविधा परियोजना के शोध सहायक सत्यम चौरिहा ने सोमवार को बताया कि हमारे देश में 70 प्रतिशत आबादी आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। उनमें से अधिकांश कृषि कार्यों पर निर्भर हैं। उसी के अन्तर्गत महिलाओं की कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दृष्टि से दीनदयाल शोध संस्थान के द्वारा संचालित तुलसी कृषि विज्ञान केंद्र गनीवा के माध्यम से चल रही वैश्विक पर्यावरण सुविधा परियोजना जो चित्रकूट जनपद के 05 ग्रामो मे  चल रही है, जिसके अंतर्गत मोटे अनाजों, सांवा, कोदो, कुटकी, रागी का संरक्षण एवं संवर्धन किया जा रहा है।ग्रामीण महिलाएँ गृह कार्य तथा बच्चों को सम्भालने के साथ-साथ खेत के काम में भी हाथ बँटाती हैं। कृषि उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका होते हुए भी उन्हें बहुत सी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि सहकारी समितियों में महिलाओं को सदस्य बनाने के लिये अभियान चलाने की आवश्यकता है, जिससे महिलाओं को भी सहकारी समितियों से ऋण, तकनीकी मार्गदर्शन, कृषि उत्पादों का विपणन आदि की सुविधा उपलब्ध हो सके। महिलाओं को संस्थागत-ऋण प्राप्त हो, इसके लिये खेत पर पति-पत्नी के नाम पर संयुक्त पट्टा होना चाहिए। महिलाओं की कुशलता और उनके कृषि औजारों की दक्षता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। राष्ट्र के विकास के लिये कृषि कार्यों में जुड़े ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण पर ध्यान दिया जाना बहुत जरूरी है। ऐसा ही प्रयास दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा संचालित वैश्विक पर्यावरण सुविधा परियोजना के माध्यम से किया जा रहा है। इसी क्रम में खरीफ सीजन में मानिकपुर ब्लॉक के ग्राम खरौध में राष्ट्रीय आजीविका मिशन की महिला समूहों को मोटे अनाजों में सांवा की फसल का बीज प्रदर्शन हेतु वितरित किया गया था, जिस पर समूह की दीदियों ने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सांवा की फसल को तैयार किया है एवं वे सब इनका संरक्षण एवं संवर्धन आगे भी करना चाहती है।महिला कृषको से पूछने पर यह ज्ञात हुआ की इन मोटे अनाजों  को अपने दैनिक आहार मे शामिल करने पर शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। जो आज के दौर मे काफी आवश्यक है। चर्चा के दौरान यह भी सामने आया कि पहले इन बीजो की खेती बहुतायत होती थी, लेकिन डंकल, हाइब्रिड बीजो के चलन से इन बीजो का क्रम भी टूट गया। इस मौके में तुलसी कृषि विज्ञान केंद्र गनीवा के अन्तर्गत वैश्विक पर्यावरण सुविधा परियोजना के शोध सहायक ने सांवा की फसल में लगने वाले रोग एवं बीमारियों के बारे में एवं उनके नियंत्रण के लिए बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में भी अवगत कराया।

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