उतरौला बलरामपुर।
सुभाष नगर हाटन रोड निवासी गिरजा देवी ने गलत मजिस्ट्रेटी जांच का आरोप लगाते हुए प्रकरण की जांच डीआईजी या अन्य एजेंसी से जांच कराने की मांग करते हुए सीएम समेत अन्य अधिकारियों से न्याय की फरियाद की है। इस प्रकरण में डीएम व पुलिस विभाग के बीच मतभेद का भी आरोप विभागीय कर्मचारी भी लगा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि मजिस्ट्रेटी जांच उतरौला में तैनात रहे पूर्व एसडीएम संतोष ओझा ने की थी। इनकी जांच के आधार पर ही 19 मार्च को उच्च न्यायालय ने प्रभारी निरीक्षक समेत 16 पुलिस कर्मियों के विरुद्ध टिप्पणी करते हुए विवादित मकान पर गिरिजा देवी के कब्जे से मुक्त कराने का आदेश दिया था। इसी प्रकरण मे ही डीएम ने पुलिस कर्मियों के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा की थी। 23 मार्च को गैर थानों के पुलिसकर्मियों ने न्यायालय के आदेश का अनुपालन कराया था। गिरिजा देवी ने प्रार्थना पत्र में कहा कि स्वर्गीय जगन्नाथ प्रसाद ने अपना मकान अपने दोनों पुत्र छैल बिहारी व द्वारिका प्रसाद को बराबर बराबर अपने जीवन काल में ही बांट दिया था। द्वारिका प्रसाद की पत्नी बच्ची देवी अपने पति के मृत्यु के बाद इसी मकान में रहती थी और छैल बिहारी के पुत्र रामप्रताप वर्मा अपने हिस्से में रहते हैं। बच्ची देवी इस मकान का नियमित गृहकर अदा कर रही थी। दोनों का मकान नंबर भी अलग अलग है। नवंबर 2017 न्यायालय सिविल जज जूनियर डिवीजन द्वारा कराए गए कमीशन रिपोर्ट में भी बच्ची देवी का निवास उसी मकान में पाया गया था। उन्होंने जून 2020 में मेरे सेवाभाव से खुश होकर रजिस्टर्ड वसीयतनामा मेरे कर दिया था। दिसंबर 2023 में बच्ची देवी के मृत्यु हो गई। जिसके बाद विपक्षी द्वारा मेरे मकान पर जबरन ताला लगा दिया। ताला लगाने की शिकायत मुख्यमंत्री पोर्टल व कोतवाली में किया था। कोतवाली में दोनों पक्षों का सुलहनामा कराकर ताला खुलवा कर मुझे कब्जा दिया गया था। सत्रह जनवरी की रात जब मेरे पति इस मकान पर गए तो विपक्षी व उसके परिवार ने उन पर हमला बोलकर मारपीट कर घायल कर दिया और फिर मकान पर कब्जा कर लिया। पुलिस अधीक्षक थाना व समाधान दिवस में प्रार्थना पत्र के बाद पुलिस ने दोनों पक्षों में समझौता कराकर मेरा ताला दोबारा लगवा दिया। इसी बीच जिलाधिकारी के आदेश पर गठित टीम ने मौके का सत्यापन किए या स्थानीय लोगों का बयान लिए बिना गलत जांच रिपोर्ट लगा दी। इसी गलत रिपोर्ट का फायदा उठाते हुए विपक्षी ने उच्च न्यायालय से कब्जा परिवर्तन का आदेश प्राप्त कर मुझे मेरे मकान से बेदखल करा दिया। जिससे मेरे साथ अन्याय हुआ है। पीड़िता ने पूर्व एसडीएम पर दुर्भावना पूर्ण जांच रिपोर्ट तैयार कराने का आरोप लगाते हुए किसी अन्य एजेंसी से जांच की मांग की है। उधर मामले की जांच कर रहे अतिरिक्त एसडीएम संतोष ओझा का कहना है कि उन्होंने ने डीएम के आदेश पर मामले की जांच की थी और अपनी रिपोर्ट भेजी थी। मामले में पक्षपात करने का आरोप निराधार है।
पहले भी विवादों में रहे हैं जांच अधिकारी
उतरौला में एसडीएम के पद पर तैनात रहे एसडीएम संतोष ओझा का विवादों से पुराना नाता रहा है। इनकी गलत कार्यशैली से नाराज वकीलों ने इनके अनेक गलत फैसलों का हवाला देते हुए लंबे समय तक आंदोलन भी किया था। इनके कार्यकाल के दौरान ही पुलिस- लेखपाल विवाद व अधिवक्ता -लेखपाल विवाद काफी लंबा चला था। आखिरकार अधिकारियों ने इन्हे हटाकर जिले में एक्स्ट्रा मजिस्ट्रेट बनाया था जो आज तक उसी पद पर काबिज हैं।





