बिहार विस चुनाव : जहां मिली थी जनसंघ को पहली जीत, वहां मजबूत है माय समीकरण
बेगूसराय(हि.स.)। बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्म भूमि और बिहार केसरी डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की कर्मभूमि बेगूसराय के राजनीतिक तापमान में पूरी तरह से गर्माहट आ गई है। सभी सीटों पर होने वाली कांटों की टक्कर को लेकर दोनों गठबंधन प्रत्याशियों के चयन में पूरी सतर्कता बरत रहे हैं। तीन-चार अक्टूबर तक प्रत्याशियों के नामों की घोषणा हो जाएगी। अभी विधानसभा क्षेत्रों के समीकरण घंटे-दो घंटे पर बदल रहे हैं। ऐसे में पूर्वी सीमा पर गंगा और बूढ़ी गंडक नदी के बीच बसा साहेबपुर कमाल विधानसभा सुर्खियों में है।
हमेशा से ही राजनीतिक सरगर्मी को लेकर सुर्खियों में रहा यह क्षेत्र पहले बलिया के नाम से जाना जाता था। 2008 में जब नया परिसीमन हुआ तो बलिया लोकसभा के साथ-साथ बलिया विधानसभा भी विलुप्त कर दिया गया और साहेबपुर कमाल के नाम से नए विधानसभा क्षेत्र का गठन हुआ। विधायक बनी आईएएस अधिकारी अफजल अमानुल्लाह की पत्नी परवीन अमानुल्लाह। परवीन अमानुल्लाह ने जीतकर बिहार सरकार में मंत्री का पद संभाला, लेकिन 2014 में उनके इस्तीफा देने के बाद हुए उप चुनाव में गार्जियन के नाम से चर्चित वरिष्ठ राजद नेता और पूर्व मंत्री श्रीनारायण यादव ने फिर से इस सीट पर कब्जा जमा लिया।
2015 में भी श्रीनारायण यादव ही यहां से सातवीं बार विधायक बने लेकिन इस बार उम्र को देखते हुए श्रीनारायण यादव अपने पुत्र को चुनाव लड़ाना चाहते हैं। हालांकि राजद उनके पुत्र ललन यादव के बदले अनिल यादव या तनवीर हसन को भी टिकट दे सकती है। दूसरी ओर एनडीए गठबंधन ने यहां माय समीकरण को ध्वस्त करने की पूरी तैयारी कर ली है। विगत चुनावों में श्रीनारायण यादव के हाथों पराजित हो चुके अमर कुमार जहां भाजपा से टिकट के लिए काफी प्रयासरत हैं, वहीं रघुनाथपुर निवासी और श्रीनारायण यादव के ही बिरादरी के आशीष यादव को भाजपा में लाकर एनडीए यहां बड़ा दांव खेलना चाह रही है।
यह वही सीट है जहां से बेगूसराय में जनसंघ के सबसे पहले विधायक चुने गए थे। बेगूसराय 1972 में जिला बना था और उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में चंद्रचूड़ देव ने जनसंघ के टिकट पर विजय हासिल कर जिला ही नहीं राज्य भर में जनसंघ के पटाखा को ऊंचाई पर पहुंचा दिया था। इसके बाद 1977 में हुए चुनाव में भी जिले के सात विधानसभा क्षेत्रों में से सिर्फ इसी क्षेत्र से जनता पार्टी प्रत्याशी के रूप में चंद्रचूड़ देव चुनाव जीत सके थे। उसके बाद भाजपा ने कई प्रयास किए, लेकिन सफलता नहीं मिली।
इस बार जब गठबंधन का स्वरूप बदला-बदला सा है तो भाजपा ने बड़ा दांव खेलने की तैयारी कर ली है और ऐन वक्त पर भाजपा में शामिल हुए सामाजिक कार्यकर्ता आशीष यादव को आलाकमान की ओर से सिग्नल मिल चुका है। आशीष यादव ही यहां ऐसे दावेदार हैं जो माय समीकरण के इस किला को भेद सकते हैं। हालांकि पूर्व में प्रत्याशी रहे अमर कुमार सिंह भी पूरी तैयारी में हैं। अगर लोजपा भी चुनाव में एनडीए के साथ रहती है तो उसका यहां दावा काफी मजबूत है, सामाजिक कार्यकर्ता और बड़े कारोबारी वरिष्ठ लोजपा नेता सुरेंद्र विवेक यहां लंबे समय से लगातार जनता के बीच हैं।
1980 ,1990, 1995, 2000, 2005, 2014 एवं 2015 में यहां से चुनाव जीतनेवाले श्रीनारायण यादव चार बार बिहार सरकार में मंत्री भी रहे लेकिन क्षेत्र का संपूर्ण विकास नहीं हो पाया। क्षेत्र में एक भी डिग्री कॉलेज नहीं रहने के कारण छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए दर-दर भटकना पड़ता है। बलिया प्रखंड के दर्जनों गांव गंगा के कटाव में विलीन हो गए, लेकिन आज तक वहां के विस्थापितों के पुर्नवास की कोई व्यवस्था नहीं हो पाई है।
जमीन संबंधी विवाद और आपसी वर्चस्व के जंग में खूनी संघर्ष होता रहता है। जलजमाव के कारण खेती योग्य जमीन होने के बाद भी किसानों को रोजी-रोटी के लिए दूसरा जुगाड़ करना पड़ता है। फिलहाल दावेदारों की धड़कनें तेज हैं, वहीं जिला प्रशासन शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए एक्टिव मोड में है। दो लाख 46 हजार 924 मतदाताओं के लिए 359 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। मतदाता जागरुकता कार्यक्रम तथा मतदान केंद्र पर आधारभूत सुविधा उपलब्ध कराने की प्रक्रिया जोर-शोर से चल रही है।