फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाने से होगा आर्थिक लाभ: डॉ.खलील खान
कानपुर, 24 सितम्बर (हि.स.)। फसल अवशेषों में आग लगाने से वातावरण में हानिकारक गैसों की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे मानव एवं पशु-पक्षियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है,जबकि फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाने से आर्थिक लाभ होता है। यह जानकारी रविवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के कृषि विज्ञान केंद्र दलीप नगर के मृदा वैज्ञानिक डॉ.खलील खान ने दी।
उन्होंने किसानों से अपील की है कि फसल अवशेषों को न जलाएं,बल्कि खाद बनाकर भूमि की उर्वरक शक्ति को मजबूत बनाएं। फसल अवशेषों में आग लगाने से वातावरण में हानिकारक गैसों की मात्रा बढ़ जाती है,जिससे मानव एवं पशु-पक्षियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही सूक्ष्म जीवों की भी मृत्यु हो जाती है, जो मिट्टी की उपजाऊ शक्ति एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि फसल अवशेषों के जलाने से फास्फोरस और पोटाश जैसे पोषक तत्व अघुलनशील अवस्था में हो जाते हैं। जिससे मृदा का पीएच मान बढ़ जाता है और उसकी उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है। इसके अतिरिक्त पशुओं के लिए चारे की कमी हो जाती है।
डॉ.खान ने बताया कि कृषि अवशेष एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है जो मिट्टी के स्वास्थ्य और संरचना के लिए बहुत ही आवश्यक है। उन्होंने किसानों को बताया कि धान की पुआल को मृदा में मिलाने से 0.36 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.10 प्रतिशत फॉस्फोरस, 1.70 प्रतिशत पोटाश,जबकि मक्का के फसल अवशेष में 0.47प्रतिशत नाइट्रोजन,0.50 प्रतिशत फॉस्फोरस एवं 1.65 प्रतिशत पोटाश मिट्टी को प्राप्त हो जाता है, जिससे मृदा उपजाऊ हो जाती है और किसान भाइयों को आर्थिक लाभ होता है।
डॉ. खलील खान ने बताया कि फसल अवशेषों को मृदा में मिलाने से उनकी संरचना में सुधार, पर्यावरण सुधार, मृदा क्षरण व पोषक तत्वों की अधिकता, जल क्षमता में वृद्धि तथा आर्थिक लाभ में वृद्धि होती है।उन्होंने किसानों से फसल अवशेष न जलाने की अपील की है।
राम बहादुर/दीपक/सियाराम