पहली गदर क्रांति का गवाह शहीद स्मारक सेनापुर आज भी उपेक्षा का शिकार
पहली गदर क्रांति का गवाह शहीद स्मारक सेनापुर आज भी उपेक्षा का शिकार
-उच्चाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों के संज्ञान में होते हुए भी मामला जस का तस
जौनपुर। केराकत तहसील अंतर्गत सेनापुर गांव में बना शहीद स्मारक आज भी अपनी उपेक्षा के कारण सुर्खियों में बना रहता है। आज हम उन अमर वीर शहीदों के अनसुनी पहलुओं वीर गाथाएं से अवगत कराने जा रहा हूं जिसे सुनने के बाद हमें गर्व होगा कि हम उस सरजमी से आते हैं जहां अपनी जान से ज्यादा अपने वचन और मर्यादा को तवज्जो दी जाती है।
सन् 1857 से लेकर 1947 के भारत के 90 साल की पहली ग़दर क्रांति आज भी तरोताजा करती हुई नजर आती है। जालिम अंग्रेजों की बेड़ियों से जकड़ी हुई भारत मां को आजाद कराने के लिए डोभी के वीर सपूतों ने अंग्रेजों को चने चबाने पर मजबूर कर दिए। डोभी की सरजमी ने कभी भी किसी की अधीनता को स्वीकार नहीं की है। डोभी हमेशा से ही अपनी पराक्रम और साहस के लिए सुर्खियों में बना रहता था लेकिन अंग्रेजों कूटनीति चाल एक बार फिर रंग लाई जब पंचायत करने के बहाने बुलाकर 23 अमर वीर शहीदों को आम एक पेड़ पर लटकाने के बाद गोलियों से भूनकर अपनी क्रूरता का परिचय दिया। उनकी याद में सेनापुर में बना शहीद स्मारक आज भी उपेक्षा का शिकार है।
इस समस्या को लेकर गांव के सामाजिक कार्यकर्ता विनोद कुमार ने तत्कालीन उपजिलाधिकारी से मिले तो उन्होंने कहा जिलाधिकारी से मुलाक़ात करे। इस पर विनोद कुमार राज्य मंत्री गिरीश चंद यादव से मिलकर समस्या बताई तो मंत्री ने तत्कालीन जिलाधिकारी को पत्रक पर लिखपढ़ कर मामले को हल करते हुए सूचित करने को कहा पर नतीजा कागज पर ही सिमट कर रह गया।आज भी शहीद स्थल अपनी ही दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है।
विनोद कुमार ने हिन्दुस्थान समाचार से बात करते हुए बताया कि पिछले दो साल से शहीद स्मारक पर 100 फुट ऊंचा तिरंगा झंडा हर वक़्त फहराने की मांग की जा रही पर आज तक ना तो प्रशासन की तरफ से कुछ पहल की गई ना तो सांसद व विधायक की तरफ से कोई पहल की गई है।
बताते चलें कि एक ही दिन एक ही समय 23 लोगों की फांसी दिया जाना भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी फांसी है। जो इसी स्थान पर हुई थी। अफसोस होता है कि इतिहास के अतीत के पन्नों में यह फांसी दर्ज होकर रह गई।
जब तिरंगा यात्रा के संयोजक व समाजसेवी अजीत सिंह से बात की गई तो उन्होंने बताया कि हर वर्ष सबसे पहले डॉ राम उग्र सिंह, बाबा भीमराव अम्बेडकर व भगत सिंह को माल्यार्पण करते हुए शहीद स्मारक तक तिरंगा यात्रा निकाली जाती थी। इस वर्ष कोरोना प्रकोप को देखते तिरंगा यात्रा को रद्द कर दिया गया। शहीद स्मारक के दुर्दशा को देखकर हैरानी होती है। शहीद स्थल के प्रांगण में 100 फुट में तिरंगा झंडा लगाने की मांग 2 सालों से चल रही है वह बिल्कुल सही है प्रशासन व जनप्रतिनिधियों को ध्यान देना चाहिए।
ग्राम प्रधान रमेश कुमार से बात की गयी तो उन्होंने बताया कि शहीद स्मारक हमारे गांव का ही नहीं प्रदेश का ही नहीं बल्कि देश की धरोहर है और मैं इस गांव का प्रधान होने के नाते शासन प्रशासन व जनप्रतिनिधियों से विनम्र निवेदन है कि शहीद स्मारक का संपूर्ण जीर्णोद्धार व उस पर 100 फुट का तिरंगा झंडा लगाया जाय।
इस बाबत जब गांव के धर्मेंद्र गुप्ता से बात की गई तो उन्होंने बताया कि शहीद स्थल पर केवल 15 लोगों का नाम अंकित है। बाकी आठ शहीदों के नाम आशातीत बनकर रह गया जो दुर्भाग्यपूर्ण है। शहीद स्मारक के पास एक भव्य गेट का निर्माण होना चाहिए और जितनी भी चीज शहीद स्मारक के लिए प्रस्तावित की गई है उन सब पर विचार करके तत्काल बनवाई जाए। साथ ही 100 फुट का तिरंगा झंडा शहीद स्तंभ के पास लगाया जाए।