छठ: दूसरे दिन व्रती महिलाएं खरना पूजन में जुटी, शाम से 36 घंटे का कठिन निराजल व्रत

-अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद कोसी भरने की परम्परा भी निभाई जाएगी

वाराणसी (हि.स.)। लोक आस्था के महापर्व डाला छठ के दूसरे दिन गुरुवार को व्रती महिलाएं निर्जला खरना पूजन में जुटी हुई हैं। सुबह स्नान ध्यान के बाद व्रती महिलाओं ने छठ माता की आराधना की। इसके बाद नाक से सिर ​के मांग तक सिंदूर लगाया। 
पूरे दिन व्रत रहने के बाद महिलाएं संध्या समय में फिर स्नान कर छठी मइया की पूजा विधि विधान से करने के बाद उन्हें मिट्टी के चुल्हें में लकड़ी जलाकर बने रसियाव, खीर, शुद्ध घी लगी रोटी, केला का भोग लगायेंगी। फिर इस भोग को स्वयं खरना करेंगी। खरना के बाद सुहागिनों की मांग भरकर उन्हें सदा सुहागन रहने का आर्शिवाद देंगी। इसके बाद खरना का प्रसाद वितरित किया जायेगा। शाम से ही 36 घंटे का निराजल कठिन व्रत शुरू होगा। 
बिहार की मूल निवासी व्रती गीता पांडेय, सृष्टि पांडेय, राधिका पाठक, स्नेहलता सिंह और चंदौली की मंजूलता उपाध्याय,श्यामा दुबे, कंचन सिंह ने बताया कि पिछले सात—आठ वर्षों से छठ माता का व्रत रखती हैं। माता रानी की कृपा से परिवार में सुख शान्ति है। व्रती महिलाओं ने बताया कि विश्वास है खरना पूजा के बाद ही घर में छठी मइया का आगमन हो जाता है। 
भगवान सूर्यदेव और छठ मैया की पूजा में जो भी कामना (मन्नत) निष्छल हृदय से मांगा जाता है। वो कामना छठ मैया की कृपा से पूरी हो जाती है। गीता पांडेय ने बताया कि छठ पूजा में कोसी भरने की परंपरा है। जिन्हें सन्तान नहीं होती या किसी बीमारी से पीड़ित है। सूर्यषष्ठी की संध्या में (व्रत के तीसरे दिन) कोसी भरी जाती है। 36 घंटे के निर्जला व्रत में महिलाएं सायंकाल तालाब, नदी या घर में अस्ताचलगामी सूर्य और छठी मइया का पूजा कर अर्घ्य देने के बाद घर लौटने पर आंगन में या छत पर कोसी भरी जाती है। इसके लिए सात गन्ने से मंडप बनाया जाता है। इसमें बने कोसी के चारों ओर अर्घ्य की सामाग्री से भरी सूप, डगरा, डलिया, मिट्टी के ढक्कन व तांबे के पात्र को रखकर दीया जलाते हैं। 
मिट्टी के बने हाथी को रखकर उस पर घड़ा रखा जाता है, कोसी भरते वक्त महिलाएं छठ पूजा के गीत गाती हैं। फिर छठ व्रतियों के साथ अन्य महिलाएं भी छठी मइया से परिवार में सुख शान्ति की कामना करती है। उन्होंने बताया कि जिनकी कामना पूरी हो जाती है। वे भी कोसी भराई कर माता के प्रति आस्था जताती है। 
गौरतलब हो कि भविष्य पुराण में एक कथा है कि सतपुरा में एक दम्पति ने कात्यायन ऋषि की पूजा कर पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछा। ऋषि ने सूर्योपासना कर कोसी भरने की मन्नतें मांगने की सलाह दी। उपासना के बाद दम्पति को कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को भवार्ण ऋषि के रूप में पुत्र रत्‍‌न की प्राप्ति हुई। तब से व्रत छठी मइया के नाम से विख्यात हुआ। द्वापर में इन्द्रप्रस्थ में महारानी द्रोपदी ने छठ व्रत रखते हुए कोसी भरा था। त्रेता युग में रावण पर विजय हेतु अगस्त ऋषि के कहने पर श्रीराम ने सूर्योपासना करते सीता के साथ कोसी भरा था।

error: Content is protected !!