हलाल उत्पाद क्या हैं? इस पर प्रतिबंध क्यों?

जानकी शरण द्विवेदी

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा बीते शनिवार को हलाल प्रमाणित खाद्य पदार्थों को बनाने, बेचने और भंडारण पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिए जाने के बाद यह विषय न केवल समाज के आम लोगों, अपितु सामान्य व्यापारियों में भी चर्चा का केन्द्र है। कुछ इसके पक्ष तो कुछ विपक्ष में तर्क देते हैं, किन्तु अधिकांश लोग ऐसे हैं, जिन्हें इसके बारे में कुछ पता ही नहीं है। तो आइए, हम आपको विस्तार से बताते हैं कि हलाल क्या है? इसका प्रमाणन कैसे होता है और उप्र की योगी सरकार ने इस पर क्यों प्रतिबंध लगाया है? सरकार का कहना है कि शाकाहारी उत्पाद जैसे तेल, साबुन, टूथपेस्ट, नमकीन, बिस्कुट, दुग्ध उत्पाद आदि के लिए हलाल प्रमाण पत्र आवश्यक नहीं है। आदेश में कहा गया है “खाद्य उत्पाद का हलाल प्रमाणीकरण से पदार्थ की गुणवत्ता के बारे में भ्रम पैदा होता है और यह पूरी तरह से कानून के खिलाफ है।”

हलाल क्या है?

हलाल अरबी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है इस्लाम के अनुसार वैध और स्वीकार्य। तो उसका प्रतिवाचक शब्द है ‘हराम’ अर्थात इस्लाम के अनुसार अवैध, निषिद्ध या वर्जित। इस्लाम में पांच ‘अहकाम’ (निर्णय अथवा आज्ञाएं) मानी गई हैं, उनमें फर्ज (अनिवार्य), मुस्तहब (अनुशंसित), मुबाह (तटस्थ), मकरूह (निंदनीय) और हराम (निषिद्ध) अंतर्भूत हैं। इनमें से ‘हलाल’ की संकल्पना में पहले तीन अथवा चार आज्ञाएं अंतर्भूत होने के संदर्भ में इस्लामी जानकारों में मतभेद हैं। ‘हलाल’ शब्द का मुख्य उपयोग मांस प्राप्त करने हेतु पशु की हत्या करने के संदर्भ में किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से कुर्बानी करने वाला (कसाई) इस्लाम को मानने वाला अर्थात मुसलमान होना चाहिए। जिस पशु को हलाल करना है, वह पशु स्वस्थ और सशक्त होना चाहिए। उसे खुले वातावरण में रखा जाना चाहिए। उसे जिब्हा करते (मारते) समय इस्लामी प्रथा के अनुसार ‘अल्लाहू अकबर’ कहा जाना चाहिए। गले पर चाकू घुमाते समय उस पशु की गर्दन मक्का स्थित काबा की दिशा में होनी चाहिए। तत्पश्चात धारदार चाकू से पशु की सांस नलिका, रक्त को प्रवाहित करने वाली नसें और गले की नसों को काटकर उस पशु का संपूर्ण रक्त बहने देना चाहिए। इस पशु को पीड़ा न हो; इसके लिए पहले उसे बिजली का झटका देना अथवा अचेत करना इस्लाम में निषेध माना गया है। पाश्चात्य देशों में पशु वध की इस पद्धति को क्रूरता माना जाता है; परंतु इस्लाम के अनुसार, केवल हलाल मांस को ही पवित्र और वैध माना जाता है। इसके कारण आज गैर इस्लामी देशों में भी 70 से 80 फीसद मांस हलाल पद्धति से अर्थात उक्त मापदंडों का पालन कर ही प्राप्त किया जाता है। केवल मछलियां और समुद्र में मिलने वाले जलचरों के लिए हलाल पद्धति आवश्यक नहीं है।

हराम क्या है?

इस्लाम में निषिद्ध बातों को हराम कहा गया है। हराम में मुख्यतः निम्नांकित बातें अंतर्भूत हैं। सुअर, जंगली सुअर, उनकी प्रजाति के अन्य पशु तथा उनके अंगों से बनाए जाने वाले जिलेटिन जैसे अन्य पदार्थ। नुकीले पंजे वाले तथा नुकीले खांग वाले हिंसक और मांसाहारी प्राणी पक्षी, उदा, सिंह, बाघ, वानर, नाग, गरुड़, गीदड़ इत्यादि। जिन्हें मारना इस्लाम के अनुसार निषेध है जैसे चींटी, मधुमक्खियां, कठफोड़वे इत्यादि। भूमि और पानी दोनों स्थानों में रहने वाले उभयचर प्राणी जैसे मगरमच्छ, मेढ़क इत्यादि। गला दबाकर अथवा सिर पर आघात कर मारे गए पशु, साथ ही सामान्य रूप से मृत पशु और उनके अवशेष। विषैली तथा मादक वनस्पतियां। अल्कोहल अंतर्भूत पेय जैसे मदिरा, स्प्रिट एवं सॉसेजेस। ‘बिस्मिल्लाह’ न बोलकर गैर इस्लामी पद्धति से बलि चढाए गए पशुओं का मांस। कुरान में हराम का पदार्थ खाने से पाप लगने तथा मृत्यु के पश्चात दंडित किया जाना बताए जाने के भय से मुसलमान हलाल खाने का आग्रह रखते हैं। हलाल पदार्थ बनाते समय उसमें हराम माने जाने वाले किसी एक भी घटक को शामिल कर लिया गया, तो वह खाद्य पदार्थ हलाल नहीं रह जाता। इसलिए दुनिया भर में हलाल प्रमाणन के उपरांत ही सूखे (पैक्ड) मांस की बिक्री की जाती है। आज भारत पंथ निरपेक्ष देश होते हुए भी यहां से निर्यात किया जाने वाला मांस हलाल पद्धति का ही होता है। हलाल मांस होने की आश्वस्तता न होने पर कई देशों में मुसलमानों ने बडे़-बडे़ प्रतिष्ठानों पर धर्म भ्रष्ट किए जाने का आरोप लगाकर अभियोग चलाया और करोडों रुपए की क्षतिपूर्ति का भुगतान करने के लिए बाध्य किया। हाल के वर्षों में इस कारण भी ‘हलाल’ संकल्पना को काफी महत्व मिला। पुराने समय में इस्लाम में पर्दा प्रथा तो थी ही, शृंगार (मेकअप) करना भी हराम माना जाता था; परंतु जैसे-जैसे आधुनिक समाज की महिलाएं और युवतियां इसे स्वीकार करने लगीं, अब सौंदर्य प्रसाधन भी हलाल प्रमाणित किए जाने लगे। और तो और, सुप्रसिद्ध ‘हल्दीराम’ का शुद्ध शाकाहारी नमकीन भी अब हलाल प्रमाणित हो चुका है। सूखे फल, मिठाई, चॉकलेट, अनाज, तेल, साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट, काजल, नेल पॉलिश, लिपस्टिक आदि सौंदर्य प्रसाधन भी इसके दायरे में आ गए। यूनानी व आयुर्वेदिक औषधियां और शहद में भी हलाल की संकल्पना आ गई। अब मैकडोनाल्ड का बर्गर, डॉमिनोज का पिज्जा जैसे अधिकांश विमानों में मिलने वाला भोजन भी हलाल प्रमाणित हो रहा है। यहां तक कि केरल के कोच्चि में शरीयत नियमों के आधार पर हलाल प्रमाणित पहला अपार्टमेंट बना है, जिसमें महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग स्वीमिंग पूल, अलग-अलग प्रार्थना घर, नमाज के समय दिखाने वाली घडियां, प्रत्येक घर में नमाज सुनाई देने की व्यवस्था आदि विविध सुविधाओं तथा शरीयत के नियमों का उन्होंने उल्लेख किया है। तमिलनाडु के चेन्नई में स्थित ‘ग्लोबल हेल्थ सिटी’ चिकित्सालय को हलाल प्रमाणित घोषित किया गया है। उनका यह दावा है कि वे इस्लाम के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्वच्छता और आहार देते हैं। युवक-युवतियों का एक-दूसरे से परिचय कराने वाले, उनसे मित्रता और भेंट कराने वाले अनेक वेबसाइट्स भी शरीयत के आधार पर ‘हलाल’ प्रमाणित हैं। ‘मिंगल’ इनमें से एक मुख्य वेबसाइट है।

हलाल प्रमाणन क्यों जरूरी?

उत्पादों को इस्लामिक देशों में निर्यात करने के लिए कंपनियां उनका हलाल प्रमाणन कराती हैं क्योंकि कई इस्लामिक देश केवल हलाल प्रमाणित उत्पादों के व्यापार की ही अनुमति देते हैं। भारत में हलाल प्रमाण पत्र उत्पाद का आयात करने वाले देशों द्वारा मान्यता प्राप्त निजी संगठन प्रदान करते हैं क्योंकि इस क्षेत्र में कोई सरकारी विनिमय नहीं है। हलाल प्रमाणीकरण वध किए गए मांस के लिए पहली बार 1974 में शुरू किया गया था। इससे पहले हलाल प्रमाणीकरण का कोई रिकॉर्ड नहीं मिलता। 1993 में हलाल प्रमाणीकरण को अन्य उत्पादों तक बढ़ाया गया। दुनिया के कई इस्लामिक देशों में सरकार हलाल प्रमाणीकरण देती है, जबकि भारत में यह काम निजी कंपनियों द्वारा किया जाता है। भारत में लगभग सभी प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) प्रमाण देखा जा सकता है, लेकिन यह प्राधिकरण हलाल प्रमाण नहीं देता है। यूरोपियन यूनियन में हलाल प्रमाणन का काम करने वाली एक आयरिश सार्टिफिकेशन संस्था का कहना है कि हलाल मांस उसी जानवर का होता है, जो वध के समय जीवित हो। उसके वध करने की विधि के संदर्भ में कई अन्य मानदंडों के अलावा, एक नियम यह भी है कि केवल एक समझदार वयस्क मुस्लिम द्वारा उसका वध किया गया हो। इसका अर्थ है कि गैर मुस्लिम द्वारा प्रसंस्कृत किया गया मांस हराम होगा। वधशालाओं में मशीनों से मारे गए जानवर भी योग्य नहीं हैं।

हलाल प्रमाणन देने वाली प्रमुख कंपनियां :

हलाल सार्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
जमीयत उलेमा ए महाराष्ट्र (जमीअत उलमा ए हिंद की एक इकाई)
हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
जमीयत उलेमा ए हिंद हलाल ट्रस्ट
हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया
ग्लोबल इस्लामिक शरिया सर्विसेस

विवाद की शुरुआत

भारत में पिछले वर्षों में इस विवाद की शुरुआत उस समय हुई, जब एक नामी कम्पनी मैकडोनल्ड्स ने कहा कि उसके सभी रेस्त्रां हलाल प्रमाणित हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि वह हलाल मटन का उपयोग करता है। जानकारी के अनुसार, 22 अगस्त 2019 को किसी ने ट्वीट कर मैकडोनल्ड्स इंडिया से पूछा कि क्या मैकडोनल्ड्स इंडिया हलाल प्रमाणित है? मैकडोनल्ड्स ने इसका जवाब ट्वीट के जरिए दो हिस्सों में दिया। एक हिन्दी समाचार पत्र ने इसका हिन्दी अनुवाद छापा था। जवाब देते हुए कंपनी ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, ‘वक्त निकालकर मैकडोनल्ड इंडिया से संपर्क करने के लिए धन्यवाद। आपके सवाल का जवाब देने के लिए मिले इस मौके से हम बेहद खुश हैं। हम सभी रेस्टोरेंट्स में जिस मांस का इस्तेमाल करते हैं, वह उच्चतम गुणवत्ता वाला होता है और एचएसीसीपी सार्टिफिकेट रखने वाले सरकारी मान्यता प्राप्त आपूर्तिकर्ताओं से लिया जाता है।“ दूसरे हिस्से में लिखा था, “हमारे सभी रेस्टोरेंट्स हलाल सार्टिफिकेट्स प्राप्त हैं। आप अपनी संतुष्टि और पुष्टि के लिए संबंधित रेस्टोरेंट मैनेजर से प्रमाण पत्र दिखाने के लिए कह सकते हैं।”
एक रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2022 में वरिष्ठ अधिवक्ता विभोर आनंद ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर करके हलाल उत्पादां और हलाल प्रमाणन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। याचिका में दावा किया गया था कि हलाल प्रमाणित उत्पाद इस्तेमाल करने वाली 15 फीसद आबादी के लिए 85 फीसद नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है, जो नहीं होना चाहिए। हाल ही में भारत में दौड़ने वाली वंदे भारत ट्रेन में चाय प्रीमिक्स के एक पाउच को लेकर हंगामा हुआ था। इस दौरान यात्रियों ने सवाल भी उठाया था कि अगर प्रोडक्ट वेज है, तो इसे हलाल सार्टिफिकेट के साथ क्यों बेचा जा रहा है? अगर यह सिर्फ मुसलमानों के लिए ही जरूरी है, तो दूसरे धर्मों के लोग इसे इस्तेमाल करने के लिए क्यों बाध्य हों। प्रमाणन का महत्व इतना है कि आईटीसी, हल्दीराम को तो छोड़िए, योग गुरु बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद संस्था को भी अपनी औषधियों के निर्यात के लिए हलाल प्रमाण पत्र लेना पडा। बताते हैं कि पहले हलाल इंडिया संस्था ने उन्हें यह प्रमाणपत्र इस आधार पर देना अस्वीकार कर दिया था कि उनकी औषधियों में गोमूत्र का उपयोग किया जाता है। हालांकि संबंधित औषधियों में किन-किन तत्वों का उपयोग किया गया है, यह उस औषधि के डिब्बे पर स्पष्टता से लिखा जाता है। बाद में कई उत्पादां को अलग कारखानों में बनाए जाने का प्रमाणपत्र देने के बाद उन्हें प्रमाणन मिल सका। कॉस्मेटिक कंपनियों में इबा, इमामी, केविनकेयर, तेजस नेचरोपैथी, इंडस कॉस्मेटिकल्स, माजा हेल्थकेयर और वीकेयर ने अपने कई उत्पादों के लिए हलाल प्रमाणन लेना पड़ा है। हालांकि इसके तहत बनने वाले उत्पाद में एनिमल फैट या कीड़ों के रंग के अलावा दूध से बनी चीजों और बीवैक्स का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता है और न ही वे इन उत्पादों का परीक्षण जानवरों पर कर सकते हैं अर्थात् पूरी तरह शाकाहारी उत्पादां को भी मजबूरी में हलाल प्रमाणन लेना होता है।

तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है हलाल अर्थव्यवस्था

विश्व स्तर पर इस्लामी देशों का संगठन (ऑर्गनाईजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज : आइओसी) ‘उम्माह’ अर्थात इस्लाम के अनुसार देश और सीमा रहित धार्मिक भाईचारे की संकल्पना पर व्यापार करता है। इसलिए भारत, चीन जैसे गैर इस्लामी देशों के उत्पादों का मुसलमान देशों में निर्यात करना हो, तो पहले उन्हें अपने देश में स्थित वैध इस्लामिक संगठन से अच्छी खासी रकम का भुगतान करके हलाल प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य है। किसी उत्पाद को हलाल प्रमाण पत्र देने हेतु भारत में सामान्य रूप से वार्षिक शुल्क के नाम पर 20 हजार रुपए का भुगतान करना पडता है। उसमें जीएसटी की वसूली अलग से होती है। प्रत्येक उत्पाद के लिए अलग से शुल्क देना पडता है। वर्ष भर के पश्चात प्रमाण पत्र का नवीनीकरण करना हो, तो 15 हजार रुपए देने पडते हैं। इस प्रकार से वैश्विक स्थिति का विचार करने पर हलाल अर्थव्यवस्था आज विश्व की सबसे तीव्र गति से बढ रही अर्थव्यवस्था मानी जा रही है। वर्ष 2017 में हलाल अर्थव्यवस्था 2.1 ट्रिलियन अमेरिकन डॉलर्स थी, जो वर्ष 2023 में बढ़कर तीन ट्रिलियन अमेरिकन डॉलर्स तक पहुंच रही है। वर्ष 2019 में भारत की कुल अर्थ व्यवस्था 2.7 ट्रिलियन अमेरिकन डॉलर्स थी। इसका अर्थ यह हुआ कि हलाल अर्थव्यवस्था बहुत जल्द भारतीय अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ देगी। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि निजी इस्लामी संस्थाओं द्वारा संचालित हलाल अर्थ व्यवस्था बहुत ही तेजी से आगे बढ़ रही है। सरकार का उस पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं है। ऐसे समय में इससे प्राप्त धन का उपयोग किस प्रकार और कहां किया जाता है, इस पर भी संदेह व्यक्त किया जाता रहा है। ऑस्ट्रेलिया के एक सांसद जॉर्ज क्रिस्टेंसेन ने हलाल अर्थव्यवस्था से प्राप्त धन का उपयोग ऑस्ट्रेलिया में शरीयत लागू करने तथा कट्टरतावादी विचारधारा वाले संगठनों को आगे बढ़ाने हेतु किए जाने का संदेह व्यक्त किया गया था। भारत में हलाल प्रमाण पत्र देने वाले प्रमुख संगठन ‘जमीयत उलेमा ए हिंद’ की स्थापना वर्ष 1919 में ब्रिटिश राजसत्ता का विरोध करने के लिए की गई थी। देश विभाजन के समय यह दो धड़ों में बंट गया। दूसरे धड़े ‘जमीयत उलेमा ए इस्लाम’ ने पाकिस्तान का समर्थन किया और आज यह एक शक्तिशाली मुस्लिम संगठन के रूप में जाना जाता है। इस संगठन के बंगाल प्रदेश अध्यक्ष सिद्दीकुल्ला चौधरी ने सीएए कानून के विरोध में, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को कोलकाता हवाई अड्डे से बाहर न आने देने की धमकी दी थी। इसी संगठन ने उत्तर प्रदेश के हिन्दू नेता कमलेश तिवारी की हत्याभियुक्तों का अभियोग लड़ने का ऐलान किया था। जानकार बताते हैं कि इसी संगठन ने 7/11 का मुंबई रेल बम विस्फोट, वर्ष 2006 का मालेगांव बम विस्फोट, पुणे में जर्मन बेकरी बम विस्फोट, 26/11 का मुंबई आक्रमण, मुंबई के जवेरी बाजार में बम विस्फोटों की शृंखला, दिल्ली का जामा मस्जिद विस्फोट, कर्णावती (अहमदाबाद) बम विस्फोट आदि अनेक आतंकी घटनाओं के आरोपियों के लिए कानूनी सहायता उपलब्ध कराया है। इस प्रकार कह सकते हैं कि अप्रत्यक्ष रूप से देश का बहुसंख्यक समुदाय उन्हें हलाल प्रमाण पत्रों के शुल्क द्वारा आवश्यक धन की आपूर्ति उपलब्ध करा रहा है।

हलाल प्रतिबंध के कारण

उपरोक्त सभी तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए लखनऊ के ऐशबाग निवासी शैलेंद्र कुमार शर्मा ने हजरतगंज थाने में बीते 16 नवंबर को हलाल प्रमाणपत्र जारी करने वाली चार कंपनियों हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड चेन्नई, जमीयत उलेमा हिंद ट्रस्ट दिल्ली, हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया मुंबई और जमीयत उलेमा मुंबई समेत कई अन्य के खिलाफ भादवि की धारा 120बी, 153ए, 298, 384, 420, 471 और 505 के तहत एफआइआर दर्ज कराई। यह कंपनियां शाकाहारी खाद्य पदार्थों का भी प्रमाणन कर रही थीं। इसके बाद योगी सरकार ने सम्यक विचारोपरांत 18 नवंबर 2023 को हलाल उत्पादों के निर्माण, पैकेजिंग, भंडारण और ब्रिकी पर प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि यदि कोई निर्माता अपने उत्पादों को उन देशों में निर्यात के लिए तैयार करता है, जहां केवल हलाल प्रमाणित उत्पाद ही बेंचे जा सकते हैं, तो उन्हें इससे छूट दी जाएगी। उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश में कहा गया है कि खाद्य उत्पादों का हलाल प्रमाणीकरण एक समानांतर प्रणाली है, जो भ्रम पैदा करती है और खाद्य कानून, खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम की धारा 89 के तहत स्वीकार्य नहीं है। इसमें कहा गया है, “खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता तय करने का अधिकार केवल उक्त अधिनियम की धारा 29 में दिए गए अधिकारियों और संस्थानों के पास है, जो अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार प्रासंगिक मानकों की जांच करते हैं।“ यूपी सरकार को मिली जानकारी में यह संकेत दिया गया है कि दुग्ध उत्पादों, बेकरी उत्पाद, नमकीन, चीनी, पिपरमेंट ऑयल, रेडी टू ईट पेय पदार्थ और खाद्य तेल जैसे उत्पादों को हलाल प्रमाणीकरण के साथ लेबल किया जा रहा है। सरकारी नियम के अनुसार दवाओं, चिकित्सा उपकरणों और सौंदर्य प्रसाधन से संबंधित उत्पादों में लेबल पर हलाल प्रमाणीकरण को चिन्हित करने का कोई प्रावधान नहीं है। इन पर हलाल प्रमाणीकरण का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उल्लेख अधिनियम के तहत इसे दंडनीय अपराध बनाता है। यूपी सरकार से की गई एक शिकायत में उन उत्पादों की कम बिक्री होने देने की संभावित साजिश का आरोप लगाया गया है, जिनके पास हलाल प्रमाणपत्र नहीं है। शिकायत में कहा गया है कि इससे अन्य समुदायों के व्यापारिक हितों को नुकसान पहुंच रहा है। इस तरह का दुर्भावनापूर्ण प्रयास न केवल आम नागरिकों के लिए वस्तुओं के लिए हलाल प्रमाणपत्र जारी करके अनुचित वित्तीय लाभ चाहता है, बल्कि वर्गों के बीच घृणा पैदा करने, समाज में विभाजन पैदा करने और देश को कमजोर करने की पूर्व नियोजित रणनीति का हिस्सा है। जिन संस्थाओं के खिलाफ शिकायत की गई है उनमें से एक जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट ने इन आरोपों को “निराधार“ बताया है। उसने कहा है कि उसके पास हलाल को लेकर वाणिज्य मंत्रालय का वैध प्रमाणपत्र है। वह “जरूरी कानूनी उपाय“ करेगा।

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