कम्युनिस्टों द्वारा सुन्नियों का संहार!

के. विक्रम राव

विश्व मानव अधिकार आयोग की ताजा रपट के अनुसार कम्युनिस्ट चीन के उइगर प्रांत के सुन्नी मुसलमान अपना मजहब बचाने के खातिर भाग कर कश्मीरी गिलगिट में बस रहे हैं। गिलगिट कभी महाराजा हरी सिंह के राज का भूभाग था। मगर 1947 से पाकिस्तानी सेना के कब्जे में है। उइगर की राजधानी काशगर से चार सौ किलोमीटर दूर पर बसे गिलगिट में इस्लाम महफूज है। वहां इन उइगर मुसलमानों को सुअर का गोश्त जबरन नहीं खिलाया जाता है। वे मस्जिद भी जा सकते हैं। उन्हें बस खतरा है पाकिस्तानी फौजियों से जो रिश्वत पाकर चीन के सैनिकों से उन्हें पकड़वा देते हैं।
पाकिस्तानी व्यापारी मिर्जा इमरान बेग की बेगम मलिका मामिति उइगर सुन्नी हैं। मगर 26 सिम्बर 2018 के बाद से बेगम मलिक अपने शौहर से नहीं मिल पायी। शायद उन्हें चीन की जनवादी सरकार ने फौजी शिविर में कैद रखा है। पतिकृपत्नी ईद साथ नहीं मना पाये। उइगर के कालीन उत्पादक अब्दुल वली इस्लामाबाद में दुकान पर कार्यरत थे। यहां उनके वालिद ने 1960 में विक्रय केन्द्र खोला था। वली ने बताया कि चीन के कम्युनिस्ट पुलिस गिलगिट से उइगर के सुन्नियों को वापस काशगर की जेल में ले जा रही है। हाल ही में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने इन उइगर सुन्नियों को गिलगिट से काशगर खदेड़ने के आदेश दिये थे। इमरान खान साफ कहते है कि चीन की सरकार इन सुन्नियों पर कतई जुल्म नहीं कर रही है। तो वास्तविकता क्या है? पाकिस्तानी पुलिस इन उइगर सुन्नियों पर जासूसी करती है। फिर गिरफ्तार और दरबदर करती है। बीजिंग में पाकिस्तानी दूतावास भी ऐसी ही कारस्तानी करता है। वीजा जारी नहीं करता। चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने दस लाख उइगर लोगों को जेलनुमा शिविरों में कैद कर रखा हे। उनके बच्चों पर भी नाना प्रकार के अत्याचार करते हैं। मसलन कोई भी उइगर दंपत्ति अपने बेटे का नाम मोहम्मद नहीं रख सकता। एक विशेष कानून बना दिया है। इसके तहत प्रतिबंधित सुन्नी शब्दों में इस्लाम, कुरान, मक्का, जिहाद, ईमाम, सद्दाम, हज, मदीना आदि हैं। कारण यही कि अब ऐसे हरफों से इस्लामी उत्साह बढ़ता है। राजधानी काशगर में अब एक भी मस्जिद नहीं है।
चीनियों ने अब तक 386 बुद्धिकर्मियों को कैद कर रखा है। अथवा गायब करा दिया है। शायद दुनिया से ही उठा दिया हो। उइगर अर्थशास्त्री इल्हाम तोहती आजीवन कारावास में है। प्रमुख नृशास्त्री (एंथ्रोपोलोजिस्ट) राहिल दावत गायब कर दिये गये। प्रो. राहिल ने असंख्य इस्लामी तीर्थस्थलों, अरबी और तुर्की गीतों और जनसंस्कृति को संजोये रखा था। एक पांच सितारा ईमाम थे अब्दुल रहवर अहमद। उन्होंने अपने बेटे को निजी मदरसे में दाखिला कराया था। नतीजन पांच साल की कैद भुगत रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की रपट है कि उइगर युवतियों को चीन के फौजी जबरन अपनी हवस का शिकार बनाते हैं। पुरुषों की बलपूर्वक नसबंदी कर दी जाती है। महिलाओं का गर्भपात आम शिकायत है। उजबेकी महिला अध्यापिका सायरागुल सौयतवे ने बीबीसी को बताया कि महिला कैदियों को बैरक में ठूंस कर बंद किया गया। उनके गुप्तांगों में मिर्ची पाउडर तथा बिजली के छड़ घुसेड़े गये। बाल काट देना और सामूहिक बलात्कार तो आम चलन है। अर्थात ये चीनी जनवादी सैनिक इन उइगर सुन्नियों के साथ जो जुल्म कर रहे उनके सामने तैमूर लंगड़े का दिल्ली की हिन्दू प्रजा पर ढाये अत्याचार भी फीके हैं। हिटलर द्वारा यहूदियों पर, स्टालिन द्वारा सोवियत रुसी किसानों पर, भी इतने अत्याचार नहीं हुए जितने असहाय उइगर सुन्नियों पर कम्युनिस्ट चीन ने ढाया है। मगर त्रासदपूर्ण बात तो यही है कि भारतीय इस्लामी मिल्लत ने इन पड़ोसी अकीदतमंदों से तनिक भी हमदर्दी नहीं दिखायी। रोहिंगिया मुसलमानों, बाटला हाउस मुठभेड़ आदि मसलों पर तो मुस्लिम जमातें (पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी) ओवरटाइम करते है। पर उइगर सुन्नियों की सुरक्षा पर उफ तक नहीं? क्या मायने हैं? क्या इसीलिये कि चीन का यार पाकिस्तान इन मजलूम मुसलमानों पर खामोश रहता है? यह बड़ी शर्मसार करने वाली बात होगी। इसको खत्म करना चाहिये, क्योंकि इस्लाम खतरे में है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं आइएफडब्लूजे के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)

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